________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1238 ) उत्तर्गः [उद्+सज+प ] 1. राशि, हेर-अमस्य। -को जलपान, जल कलश, जम् कमल-शर्वा सुवान् राजन् उत्सर्गान् पर्वतोपमान - महा० 14185 दयोऽयुवजमध्वमतासवं ते-भाग० 1014 // 13, . 382. (पुरोहितों की) सेवाएं उपलम्प करमा -पार पानी की बाढ़।। उत्सर्ग तु प्रधानत्वात् --मी० सू० 3719 (उत्सर्ग: पास (उए+अ+बस-दिवा० पर०) फेंक देना. परिक्रयः-सा भा०)। परित्याग कर देना-जाने प्रयासमुदपास्य नमन्त एव उत्सर्गसमितिः (स्त्री) जैनमत का एक सिद्धान्त जिसके -भाग० 10 // 14 // 3 / अनुसार मलमूमोत्सर्ग करते समय ऐसी सावधानी | राग्निः [.त०] जठराग्नि, पाचक अग्नि / बरतना, जिससे कि किसी जीव जन्तु की हत्या महो। सरायः[उदर+बद+ --ब० स०] एक प्रकार का उसादामः, (--मनाः) (वि.) [उत्स+तुमुन् कीड़ा जो पेट के बल रेंगता है। +काम, मनो वा ] उत्सर्ग करने की (जाने भी दो, सः [उद्+ +धन] वृद्धि-सर्ववऍपचयोवर्कम् रहने भी दो) इन्डा वाला। -भाग० श२०१३।। उत्सपिन् (वि.) उत्+सर्प+णिनि] 1. किनारों के वस्य (वि.) [उद्+अब+सो+मर] अन्तिम, बाहर होकर बहने वाला:- उत्सर्पिणी न किम तस्य / माविरी-भाग. 41756 / तरङ्गिणी या-० 1177 2. बढ़ाने वाला, उठाने रमयजन उद्+मन+क्य+ल्युट] रुकामा / वाला। वस्त (वि०) [उद+अस्+क्त] बाहर निकला हुआ उत्तनात (वि.) [उद्+ना+त] जो स्नान करके बाहर -परिभ्रमद्गात्र उदस्तलोचनः-माग०३।१९।२६ / निकल बाया है। सत्तात् (म०) [उद्+मस्ताति] ऊपर-विधूतवल्कोऽय उल्नेहनम् [उद्+स्निह +णिच् + ल्युट्] पिसरना, हरेरुदस्तात्प्रयाति पनप शैशुभारम्-भाग० 2 / 2 / फिसलना, विचलित होना / 24 // उस्मितम् [उद्+स्मि+क्त] मुस्कराहट / सातमापक (पुं०) महाकाव्य के उपयुक्त नायक का एक उत्सोतस (वि०) [उद्++तसि] (जीवन में) ऊपर भेर-चतुर्वर्गफलोपेतं चतुरोदात्तनायकम्-काव्य० 1 / की ओर रुझान रखने वाला। रातरायः एक नाटक का नाम / उत्स्यापगिरः (2050) नींद में बोले गये शब्द-० उदास्यूहः (पु.) एक प्रकार का जल काक / 12 / 25 / जवानी (भ्वा० आ.) उठाना, उन्नत करना। उवम् [उन्+अच, नलोपः पानी, जल। उपारदीये (वि०) विपुलशक्तिसम्पन्न, महाबलशाली / कम् उन्द+दुल, नलोपः] पानी, जल। समः | ग्वारपताप (वि.) [ब० स०] जिस (रचना) में शब्द, बम्जलि: 1.चल्लभर पानी 2. सर्पण करने के। अर्थ और छन्द सभी उत्तम हो। निमित्त जल,-वेरिका जलक्रीडा जिसमें परस्पर एक | उदारसस्वामिजन (वि.) [ब० स०] जिसका उत्तम कुल दूसरे पर जल छिड़का जाता है,-प्रवेधाः जलसमाधि, में जन्म हो तपा जिसका चरित्र भी अत्युत्तम हो जलप्रवाह,-भूमः जलयुक्त या गीली भूमि, ... मम्मरी -उदारसस्वाभिजनों हनुमान-रा० 4 / 47:14 // (स्त्री०) आयुर्वेद का एक अन्य, - बाचम् जलतरंग राचसुः जनक का एक पुत्र / नामक एक वाद्ययंत्र जिसमें जल से भरे हुए प्याले / स्वयः [उद्+r+अच्] 1. उठना, उगना, ऊपर जाना छड़ी से छुए जाते हैं। 2. आरम्भ-अभिगम्योदयं तस्य कार्यस्य प्रत्यवेदयत् उत्पप्लुतत्वम् [उद्गतमप्रं यस्य+ल+क्त, तस्य भावः] --महा० 32822 3. अचूकपना, अमोषता तेज गति के कारण छलांगें लगाना-पक्ष्योदप्रप्लुतत्वात् ..-पर्याप्तः परवीरनयशस्यस्ते बलोदयः रा० 5 / वियति बहुतरं स्तोकमुक्या प्रयाति-श०१७ / 56 / 11 4. आयुष्यक में, दीर्घजीवी होने का यश उनका (वि.) [न.ब०] हस्ताञ्जलि बाँधे हए - कायेन / -हस्ते गृहीत्वा संह राममयुतं नीत्वा स्ववारं कृतविनयोपेता मौदग्रनखेन च-महा. 7.54 / 6 / यत्ययोदयम् ... भाग० 101 / 20 5. पूर्वी ज्या, सबम्बित (वि.) [उद्+अञ्च+णिच्+क्त] उठाया प्रथम चान्द्रभवन,-इनुः इन्द्रप्रस्थ नगर पुरे कुरूणाहुआ,-- सदञ्चितमुदवितनिकुञ्चितपदम्-पं० स० मुदयन्दुनाम्नि-महा. ७२३२२९,-उन्मुख (वि०) स्तु०१॥ उन्नति के द्वार पर, समृद्धि की देहली पर, भास्करः उगम (वि०) [उद्+अण्ड-+-अच्] बहुत से अंडे देने वाला। एक प्रकार का कपूर-नं० १८१०३,-राशि: नक्षत्रउखन् (नपुं०) [उन्+कनिन्] पानी, जल / सम. पुंज जिसमें कि एक ग्रह क्षितिज में उगता है। -माशमः झील, सरोवर-शरदुदाशये साधुजात-रित (वि.) [उद्++क्त] 1. विश्रुत, विख्यात सत्सरसिजोदरचीमुवा वृशा-भाग. 1013142, / __-पत्रयोषी समास्यातो बभूवातिरथोदितः --महा० अभी उत्तम जिसका अत्युत्तम ह For Private and Personal Use Only