________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACT ( 1237 ) उत्तपनः [ उत्+तप्+ल्युट ] देदीप्यमान आग। उत्पारिका [ उद्+पद्+णिच्+ण्वुल ] एक जड़ी बूटी उत्तम (वि.) [उद्+तमा ] बढ़िया, श्रेष्ठ,-मः ( का नाम। ध्रुव का सौतेला भाई। सम०-वशतालम् मूर्तिकला उत्पादित (वि.) उद्+पद+णि+क्त पैदा किया गया। का शब्द जो मूर्ति की पूर्ण ऊँचाई के 120 सम | उत्पाद (वि.) [उद्+पद+णिच्+ण्यत् ] जो अभी प्रभागों को इंगित करने के लिए प्रयुक्त होता है पैदा किया जाना है-लावण्य उत्पाद्य इवास यत्नः ----वयसम् जीवन की अन्तिम अवस्था--- शत० 12 // 9 / 148, व्रता पतिव्रता स्त्री -- हृदयस्येव शोकाग्नि-उत्पलिनी [ उत्पल+णिनि, स्त्रियां ङीष् ] एक शब्दकोश संतप्तस्योत्तमवताम्-भट्टि० ९१८७,--श्रुतः उच्चतम का नाम। शिक्षा प्राप्त। उत्प्रेक्षावयवः[प० त०] एक प्रकार की उपमा / उत्समर (वि) श्रष्ठ। उत्प्रेक्षावल्लभः एक कवि का नाम / उत्सम्भः [ उद्+स्तम्भ +घञ्] आयताकार संरचना उत्प्रेक्षित (वि.) तुलना की गई (जैसा कि उपमा में -गरुड 47 / 21 / | की जाती है)। उत्तर (वि.) [उद्+तरप्] 1. उत्तर दिशा 2. ऊपर | उत्प्रेक्षितोपमा उपमा अलकार का एक भेद / का, अपेक्षाकृत ऊँचा 3. बाद का 4. आयताकर सांचा उत्प्लुत (वि.) [ उद्+प्लु+क्त ] कूदा हुआ, ऊपर को - मान०१३।६७ 5. आगे की कार्यवाही, अगली | | उछला हुआ। प्रक्रिया .. उत्तरं कर्म यत्कायं-रा० 5 / 3 6. आच्छा- उत्फुल्ल (वि.) [उद्+फुल+क्त] उद्धत ढीठ, गुस्ताख / दन, आवरण-महा०६।६०।९। सम०-अगारम् / उत्फुल्लिङ्ग (वि०) [ उद्+ स्फुल्लिङ्ग+इङ्गच् ] जिसमें (उत्तरागारम्) ऊपर का कमरा, -अभिमुख (वि०) | स्फुलिङ्ग निकले, चिंगारियाँ उगलने वाला। उत्तर दिशा की ओर मुड़ा है मुंह जिसका, -ताप- | उत्सङ्गकः [उद्+सङ्ग्+घञ्, स्वार्थे कन् ] हाथ की नीयम् नृसिंहतापनीय उपनिषद् का उत्तर भाग, विशेष मुद्रा। ---नारायणः पुरुषसूक्त का उत्तर खण्ड,+-वीथिः उत्सक्त (वि.) [ उद्+सञ्+क्त ] संवर्धमान-उत्सक्ता (स्त्री०) उत्तरीय मंडल / पाण्डवा नित्यम् --- महा० 11140 / 3 / उत्तावल (वि०) उतावला, आतुर / उत्सत्तिः (स्त्री०) [उद्-+-सा +क्तिन् ] नाश, उत्त्रस्त (वि.) [उद्+त्रस्+क्त ] डरा हुआ, भय- विनाश, क्षय / भीत / उत्सन्नकुलधर्मन् (वि.) [ब० स०] जिसकी कुल परम्पउस्थानम् [उद्-+-स्था-ल्यट] 1. मठ, विहार 2. युद्ध राएँ छिन्न-भिन्न हो गई हों--उत्सन्नकूलधर्माणां करने के लिए तैयार सेना की स्थिति - युद्धानुकूल- | मनुष्याणां जनार्दन, नरके नियतं वासः-भग० 1146 / व्यापार उत्थानमिति कीर्तितम् - (शुक्र० 11325 / / उत्सवोदयम् (नपुं०) मूर्तिकला का शब्द जो मूर्ति की सम०-वीरः कर्मशील व्यक्ति, शोलिन (वि०) | ऊँचाई के अनुसार उसके यान को इङ्गित करेसक्रिय, परिश्रमी। मान० 64 / 91-93 / / उत्पचनिपचा (स्त्री०) कोई भी कार्य जिसमें 'उत्पच+नि- उत्सवविप्रहात. स.] जलस के रूप में निकाली जाने पच' (अर्थात् पूरी तरह से और भलीभॉति पकाओ) वाली प्रतिमा, मूर्ति (विप० मूलविग्रह)। कहा जाय। उत्साहः [उद्+सह +घा ] अशिष्टता, उजड्डुपन / उत्पाटयोगः [त० स०] फलित ज्योतिष का एक योग / / उत्साहयोगः [त. स.] अपनी सामर्थ्य या शक्ति का उत्पतनिपता (स्त्री०) कोई भी कार्य जिसमें 'उत्पत (ऊपर | उपयोग करना-चारेणोत्साहयोगेन- मनु००२९८ / को उढ़ो)+निपत (नीचे उगो)' शल्दों को बार-बार | उत्सेकः [ उद्+सिच्+घश ] उत्साह,-मामकस्यास्य कहा जाय। सैन्यस्य हुतोत्सेकस्य सञ्जय-महा०८७१। उत्पातप्रतीकारः (शान्तिः) [ष० त०] अशुभ शकुनों से | उत्सूर्यशायिन् (वि०) [ उद्+सूर्यशी+णिच् + इनि ] जो बचने के लिए शान्ति के उपायों का अवलम्बन, सूर्य निकल जाने पर भी सोता रहता है,-महा० -को० अ० 217 // 12 / 228164 / उत्पत्तिः (स्त्री०) (वेद०) [उद्+पद्+क्तिन् ] 1. यज्ञ उत्सतिः (उच्छतिः) (स्त्री०) [उद्+स (श्रृ)+क्तिन् ] -उत्पत्तिरिति यजि ब्रूमः मी०स०७१॥३-७ पर उच्चतर जाति-मनु० 5 / 40 / शा० भा० 2. मूल विधि, वेद में आधारभूत अध्या- उत्सज (तुदा० पर०) व्यवस्थित करना, जमाना, निश्चित देश, इसे उत्पत्तिश्रुति और उत्पत्तिविधि भी कहते करना--आत्मानं यूपमुत्सृज्य स यज्ञो ऽनन्तदक्षिणःहैं -मनु० 4 / 3 / __ महा० 12 / 97410 / For Private and Personal Use Only