________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1235 ) स्माकं भोषस्योचित इन्द्रयज्ञो नामोरवः भविष्यतिमीका हाथी की आँख की एक पुतली / -बाल.१,-बानकम हीरे का एक प्रकार, कौ० अ० (तुदा० पर०) किसी काम को बहषा करते रहना, 2 / 11,-- सापणिः चौदहवां मनु०।। बार-बार सम्पन्न करना / इनियः [इन्द्र+घ-इय] 1. शक्ति 2. ज्ञानेन्द्रिय / सम० | इच्छामात्रम् (अ.) केवल इच्छा द्वारा रचित -- इच्छामानं -धारणा ज्ञानेन्द्रियों का नियन्त्रण, --प्रसङ्गःविषया- प्रभोः सष्टिः / / सक्ति,- संप्रयोगः विषयों से संबद्ध ज्ञानेन्द्रियों की | इच्छारूपम् (नपं०) 1. मानवीकृत इच्छा 2. इच्छानुरूप क्रिया। माना हुआ शरीर 3. दिव्य शक्ति की प्रथम अभिधनम् [इन्ध् + णिच् + ल्युट्] इच्छावशेष, वासना-ये तु व्यक्ति / दग्धेन्धना लोके पुण्यपाविवर्जिताः-महा० 12 // इष्टभागिन् (वि.) [इष्ट+भाग+णिनि] जिसकी महत्वा. 348 / 2 / कांक्षा पूरी हो गई है-अपूजयराघवमिष्टभागिनम् इभकर्णकः (पुं०) 1. एक पौरा, तांबड़ा एरंड 2. गणेश / / --रा०६।६७।१७५। हरिणम् (वेद०) [ऋ+इनन्, किदिच्च] चौसर खेलने की इष्टिः (स्त्री०) [इष्+क्तिन्] कविता के रूप में एक बिसात-प्रवातेजा इरिणे वर्वताना-ऋ० 10 // 34 // 1 // परिसंवाद, संग्रहश्लोक ---ऋ० 1166 / 14 पर हरिम्बिठिः (पुं०) कण्वकुल के एक ऋषि का नाम जो भाष्य / सम०-भारम् एक विशेष औज़दैहिक क्रिया। ऋग्वेद के कई सूक्तों का द्रष्टा है। इविका, इबीका [इष गत्यादी क्बुन्, अत इत्वम्] एक लिनी (स्त्री०) मेधातिथि की पुत्री। कांटेदार पौधा--संनिकविषीकाभिर्मोचिता परमार इल्पः (पु.) परलोक में होने वाला एक काल्पनिक वृक्ष यात्- रा०२।८।३० / __-स आगम्छतील्यं वृक्षम् - कोषी० 115 / विपुम्सा नील का पौधा / इवोपमा उपमा अलंकार जहाँ रचना में 'इव' शब्द का पति (वेद०) प्रयत्न करना / प्रयोग हुआ हो। इष्टकामात्रा ईटों का आकार प्रकार / ईक्षणभवस् (पु०) [ब० स०] सांप-- एषा नो नैष्ठिकी / ईश्वरकान्तम् (नपुं०) एक भूखण्ड जिसका समस्त क्षेत्रफल बुद्धिः सर्वेषामीक्षणश्रवः-महा० 1137 / 29 961 वर्ग में विभक्त हो जाता है---मान०७।४६।४८। ईरः [ई+अच्] वायु, हवा। सम०--जा-पुत्रः हनुमान् / विरकृष्णः (पुं०) सांख्यकारिका का कर्ता। लिनः (पुं०) तंसु के पुत्र और दुष्यन्त के पिता का नाम चित्कार्य (वि.) ईषत-+-+ज्यत्] जो थोड़े से प्रयत्न ईशः [ईश्+क] परमेश्वर, परमात्मा / सम--वास्यम् से सम्पन्न हो सके ईषत्कार्यों वधस्तस्य-महा. (ईशावास्यम्) ईशोपनिशद् (अपने प्रथमाक्षर के 574126 / आधार पर)-गोता (स्त्री०) कर्मपुराण का एक पल्ला (वि.)[ईषत्+लभ+ अच्] आसानी से उपलब्ध अनुभाग, --बडः रथ के धुरे की लकड़ी। होने वाला---० 12 / 93 / शिानकल्पः चार युगों का एक चक्र / विवीर्यः [न. ब.] बदाम का वृक्ष / ईशितव्य (वि.) [ईश्+तव्य] शासन किये जाने के योग्य, ईसराफः (पुं०) फलितज्योतिष में चौथा योग / नियन्त्रण में रखने के योग्य-ईशितन्यः किमस्माभिः | हः (वेद) [ईह,+अच्] स्तुति / -भाग० 10 // 23 // 45 // उ उका (स्त्री०) अवशेष, बचाखुचा / | उपक (0) [+] अग्नि-उत्थो नाम महाभाग उत्थम् (नपुं०) [वच्+थ] 1. जीवन, प्राण-उपपेन विभिनरभिष्टुतः-- महा० 3 / 219 / 25 / / रहितो शेष मृतक: प्रोच्यते यषा-भाग. 1156 | उसासंभरणम् (न) शतपयवाह्मण का छठा अध्याया 2. उपादान कारण-एतदेशामत्वमयो हि पाणि सत्यः (पु.) [उलायां संस्कृतः ] एक गंयाकरण का नामान्युत्तिष्ठन्ति-. / नाम। For Private and Personal Use Only