________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रखना ! ( 1223 ) अवेक्षमाग (वि०) [अव+ई-शान] सध्यान देखने / 9 / 4 / 40 2. वह स्थान जहाँ पर कोई खाया जाता वाला - अवेक्षमाणश्च महीं सर्वांतामन्दवेक्षत-रा०५ / है-अधिकरणवाचिनश्च - पा०२।३।६८ / अवेदविद् (नि.) [अवेद---विद्+विवप वेदों को न अशकुनः,-नम् [न० त०] अशुभ शकुन, बुरा शकुन कलजानने वाला। यन्नपि सव्यथोऽवतस्थेऽशकूनेन स्खलितः किलेतरोऽपि अवेदविहित (वि.) [अवेद- विधा -क्त] जिसका वेद --शि०९।८३ / ____ में विधान न हो। अशठ (वि०) [न-शठ + अच] जो ढीठ न हो, आज्ञाअवेदना [न-विद्+युच] पीड़ा का अभाव / कारी-अजिह्मस्याशठस्य च दासवर्गस्य भागधेयम् अवयात्यम (नपुं०) लजाना, लज्जा का भावना रखना। --मनु० 31246, इदं ते नातपस्काय नाशठाय अवैशेषिक (वि.) [न+विशेष +ठक] जो किसी विशेष भग०। परिणाम को दर्शाने वाला न हो, जिसका कोई फल न अशब्दार्थः (अशब्द+अर्थः) 1. शब्द द्वारा अनभिप्रेत अर्थ निकले---अवैशेपिकोऽयं हेतु:--मी० सू० 111111 पर 2. वह अर्थ जो प्रत्यक्ष रूप से वाक्य से प्रतीत (अभिशा० भा० / हित) न होता, हो. अशब्दार्थोऽपि हि प्रतीयते -- म० अव्यङ्गन्ध / वि०) नि० ब०] 1. निरपराध 2. जिसमें सं० 4 / 1 / 14 पर शा० भा० / ध्वनि या व्यन्जना का अभाव हो (काव्य में)। अशाब्द (वि.) [न+शब्द+अण] जो शब्दों से प्रतीत न अव्यतिरेकः न० त०] अपार्थक्य, निरपवाद, (वि.) होता हो-मै० सं० 5 / 1 / 5 / न० ब०] जो भलने वाला न हो, जो कोई त्रुटि न अशिथिल (वि.) [न० ब०] 1. जो ढीला न हो, कसा करे। हुआ 2. प्रभावशाली। अव्यपदेश्य (वि.) [अव्यपदिश् + ण्यत्] जिसकी परिभाषा अशिशिर (वि.) [न० ब०] गर्म / सम० --करः, न की जा सके। ___-किरणः, - रश्मिः सूर्य- नीतोछायं मुहुरशिशिररअव्यपोह्य (वि०) अन्यप] + बह---ण्यतजिसको | इमेरुस्र:..-कि० 5 / 31 / झुठलाया न जा सके, जिससे इंकार न किया जा | अशीतल (वि.) [न० ब०] गर्म-दधत्युरोजद्वयमुर्वशीतसके। लम्-शि० 9 / 86 / अवायम् नि० त०] कुशलक्षेम, हित, कल्याण-युधिष्ठिर-। अशीतिद्वयम् (नपुं०) बयासी प्रश्न जो कृष्णयजुर्वेद के सात मथापच्छत्सर्वांश्च सुहृदोऽव्ययम् --भाग० 1083 / 1 / / काण्डों में विभक्त है। अव्यवच्छिन्न (वि०) अव छिद्---क्त] नट्टा हुआ, अशभशंसनम् [अशुभ+शंस+ल्युट बुरा समाचार देना। जिस में कोई विघ्न न पड़ा हो, निर्वाध / अशुभोदयः (अशुभ+ उदयः) [अशुभ+-उद्+इ+अच्] अव्यवसायः [अव्यव-सोधा ] निर्णायक शक्ति या | अशभ सूचक शकुन / संकला का अभाव। अशकजा (स्त्री०) एक प्रकार का चावल / अव्यवसायिन् (वि०) [अन्यबसाः --णिनि] आलसी, जो अशोकज (वि०) जो दुःख या शोक से पैदा न हुआ हो, निर्णायक बुद्धि से रहित है बहुशाखा ह्यनन्ताश्च हर्ष या खशी से उत्पन्न - अशोकजः अश्रुबिन्दुभिः बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् -- भग०२१४१ / -रा० 6.125 / 42 / अव्यविकन्यायः (पुं०) तु. 'अविरविकन्यायः', यद्यपि अशोभनम् [न---शुभ-ल्युट] अपराध, त्रुटि, दोष-रामेण 'अबि' का ही 'अविक' बनता है, परन्तु 'अविक' से यदि ते पापे किञ्चित्कृतमशोभनम् --रा०२१३८७ / 'अविक' (बकरी का मांस) जैसा कोई दूसरा शब्द अमवर्षः [प० त०] 1. ओले पड़ना 2. (शत्रु पर) पत्थर 'अवि' से नहीं बनता। फेंकना। अन्याक्षेपः नि:दि आक्षिप् / घा] अनियमितता | अश्यानम् न---श्य-क्त] अगुरु का एक प्रकार जो जमा या आरम्भिक कठिनाई का अभाव -अब्पाक्षेपी भवि- हुआ न हो-कौ० अ०२।११। ष्यन्त्याः कार्यसिद्धेहि लक्षणम् -- रघु० 1016 / | अश्री [न० त०] दुर्भाग्य, बुरी क़िस्मत / अव्याजकरुणा (स्त्री०) निष्कपट दया, स्वाभाविक सहान- अधीकरम् (नपुं०) [अश्री+कृ+अच] अशुभ / भूति अव्याजकरुणामतिः ललि। अश्वः [अश्नुते अध्वानं व्याप्नोति - महाशनो वा भवति अव्याहृतम् (नपुं.) [अव्या हुक्त चुप रहना, न - अश्+क्वन् ] घोड़ा / सम०-घासकायस्थ. बोलना--अव्याहृतं व्याहृताञ्छेय आहुः - महा० (पुं० ) घोड़ों के लिए घास का संभरण करने 5 / 36 / 12 / वाला संविदाकार, - चर्या घोड़े की देख-रेख अशितम् (नपुं०) [अश् / क्त] 1. जो खाया जाय, खाद्य करने वाला तस्याश्वचर्यां काकुत्स्थ दृढधन्वा महा .. प्राहुरब्भक्षणं विप्रायशितं नाशितं च तत्-भाग० / रथः (अंशुमानकरोत्)--रा० ११३९१६७,-जीवनः For Private and Personal Use Only