________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1221 ) राज्यात्स्वादवरोपितः-रा० 4 / 8 / 32 2. घटाया हुआ, / अवस्फूर्ज, (म्वा० पर०) खुर्राटें भरना, 'घुर्राटा' करना ऊनीकृत इतरेष्वागमाद्धर्मः पादशस्त्ववरोपित:-मनु० -महा०६७। श८२ / अवहारः [अव+ +घञ] जो उड़ा कर ले जाता है न अवर्णसंयोगः [ त० स०] 1. दो भिन्न ध्वनियों का मेल | जीवस्यावहारो मां करोति सुखिनं यमः -- भट्टि 2. किसी भी वर्ण से संबंध का अभाव / 6.81 / अवर्तमान (वि.) [न० ब०] जो चाल समय से कोई | अवह्वे (म्वा० पर०) (वेद०) पुकारना, बुलाना विशो सम्बन्ध न रक्खे / अद्य मरुतामवह्वये ऋ० 5 / 56 / 1 / अवलम्बित (वि०) | अवलम्ब-क्त] चिपका हुआ, अवाछिद (रुधा० पर०) फाड़ देना, छिन्न-भिन्न कर देना। पकड़ा हुआ, आश्रित-समभिमृत्य रसादवलम्बितः अवाञ्चित (वि०) [ अवाञ्च+क्त ] नीचे की ओर -शि० 6.10 / झुका हुआ। अवलेह्य (वि०) [ अवलिह + ण्यत् ] चाटने के योग्य / | अवाचीन (वि०) [अवाच्---ख] 1. जो नीची निगाह से अवलेखा [ अबलिख-+-अ, स्त्रियां टाप् ] रेखा खींचना, देखता है दुर्योधनमवाचीनं राज्यकामुकमातुरम् रेखाचित्र बनाना, रेखाकृति / महा० 818117 2. नीच, पापी-बुद्धि तस्यापकअवलोकलवः [ न० स०] दृष्टि, कटाक्ष / पन्ति सोऽवाचीनानि पश्यति महा० 5 / 34 / 81 / अवशप्त (वि.) [ अवशप ।-क्त ] अभियान-महा० 13 / / अवातल (वि०) जो वातग्रस्त न हो -सु०।। अवश (क्रया० पर०) 1टूटना 2. चारों ओर बिखर बिखर | अवान्तरवावयम् (नपुं०) मल कथन के कुछ अंशों को जाना-स तस्या महिमां दृष्ट्वा समन्तादवशीर्यत - त्याग कर, चयन की हुई उक्ति न च महावाक्ये रा० 1137 / 13 / अवान्तरवाक्यं प्रमाणं भवति मै० सं० 6 / 4 / 25 पर अवशीर्ण (वि.) [अब+ क्त ] टूटा हुआ, चूर-चूर | शा० भा०। किया हुआ। अवारित (वि०) [अ-----णिच+क्त] जिसे रोका न अवषट्कार (वि०) चिसमें 'वपद' शब्द का उच्चारण न गया हो,-तम् (अ०) बिना किसी रुकावट के। हो, जिसमें वेद के सांस्कारिक मन्त्रों के उच्चारण को ___ सम०-कवाटद्वार (वि०) नहीं रोका हुआ अर्थात् प्रक्रिया न हो। खुला हुआ है द्वार जिसके लिए। अवसन्न (वि.) [अवमदत] बुझा हुआ, उपरत, | अवाह्य (वि.) न! वह ! णिच+ण्यत] जो ले जाये मृत-ततस्तेप्ववसनेषु सेनापतिघु पञ्चसु रा० जाने के योग्य न हो। 5 / 46 / 38 / अविकच (दि०) [न. व.] जो खिला न हो, अर्थात वन्द अवसरप्रतीक्षिन् (वि०) [त० स०] जो किसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहा हो। अविकारिन (वि०) [न--विकार / णिनि] 1. जिसमें कोई अवसरान्वेषिन (वि.)।त० स०] जो किसी अवसर की परिवर्तन न हो 2. म्वामिभक्त -स्थाने युद्धे च कुशला__ ताक में हो। नभीरूनविकारिणः मनु० 7 / 190 / अवसाय / अब सानपभजा समाप्त करता ह अव- अविकार्य (वि.) [न० त०] अपरिवत्ये अविकार्योऽयम साया भविष्यामि दुरवस्यास्य कदा न्वहम-भट्टि०६८१। च्यते भग०२५। अवसायक (वि.) अव+सो-प्रवल ] विनाशात्मक -अव- | अविक्रियात्मक (वि.) न० ब०] जिसका स्वभाव अपरि द्यन्नत्रिणः शम्भोः मायकैरवसाय:-कैकि० 15 / 36 / वर्त्य हो, जिसकी प्रकृति न बदले। अवस्कन्दः [अव+स्कन्द +घञ ] (विधि में) दोपारोपण, | अविक्षोभ्य (वि.) [न० त०] 1. जिसमें कोई हलचल न इलज़ाम / हो 2 जो जीते न जा सके अविक्षोम्याणि रक्षांसि अवस्कन्न (वि.) [अव+स्क्रन्द-1-क्त] 1. बिखरा हुआ, --रा०६५।१७। फैला हुआ 2. आक्रान्त / अविखण्डित (वि०) [न० त०] अविभक्त, अविचल / अवस्कारः [अव+स्क - घन ] हाथी के बेहरे का आगे अविगान (वि.) [न० व०] अपस्वर रहित (गायन) / की और उभरा हुआ भाग मातं० 5 / 8 / 12 / | अविगीत (वि.) [न० त०] विकल करने वाले स्वर जिस अवस्थानम् | अव+स्था + ल्युट ] 1. सहारा -योऽवस्था- | में न हों। नमनुग्रहः भाग० 3127116 2. स्थैर्य, स्थिरता - | अविचक्षण (वि.) [न० त०] 1. अकुशल, जो चतुर न अलब्वावस्थानः परिकामति --भाग० 5 / 26 / 17 / / / हो, . 2. अनजान, अज्ञानी / अवस्नात (बि०) [अव+स्ना+क्त ] जिसमें किसी ने | अविचिन्त्य (वि.) [न+वि+चिन्त-+ण्यत्] जो समझा स्नानकर लिया है, (जल)। न जा सके, जो समझ से बाहर हो। For Private and Personal Use Only