________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1225 ) जुते हों, ... अष्टतः कपाले हविषि, गवि च युक्ते-पा० / असको (असौ) [अदस्+सु, पा० 5 / 371, कादेशः] 6 / 3 / 46 वा०। 1. यह या वह 2. यह दुष्ट--भार्योढं तमवज्ञाय तस्थै अष्टागवम् [अष्टानां गवां समाहार:] आठ गौवों का सौमित्रयेऽसको-भट्टि० 4 / 15 / / समूह / असक्तिः (स्त्री०) [न+सज+क्तिन] सामान्य सांसारिक अष्टावश (वि०) [ अष्ट च दश च ] अठारह / सम० बातों की ओर मन का लगाव न होना-- असक्तिरन -तस्वानि अठारह प्रधान तत्त्व जिनमें महत, अहङ्कार, भिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु - भग० 13 / 9 / मन, पञ्च तन्मात्रा, पञ्च कर्मेन्द्रियाँ तथा पञ्च ] असमकरः [न+सम्+-+अप्] मिलावट (विशेषकर ज्ञानेन्द्रियाँ गिनी जाती हैं, धान्यम् अठारह प्रकार जातियों में) का अनुभव। का अन्न है-यवगोधूमधान्यानि तिलाः कङगुकुलत्यकाः, ! असकल्पित (वि.) [न+सम् +कल्प-+क्त जो कभी माषा मुद्गा मसूराश्च निष्पावाः श्यामसर्षपाः। कल्पना ने किया हो असङकल्पितमेवेह यदकस्मात् गवेधुकाशनीवारा ओढक्योऽथ सतीनकाः, चणकाश्चीन- प्रवर्तते - रा० 2 / 22 / 24 / / काश्चव धान्यान्यष्टादर्शव तु, पर्वाणि महाभारत असागत (वि०)[न+सम्+गम्+क्त] निर्बाध, अनवरुद्ध के अठारह खण्ड आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, -शक्तिं क्षिप्तामसङगताम्-रा० 670 / 134 / भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, | असदाश्रयः [असत्+आ+श्रि+अच्] अयोग्य व्यक्ति से अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासि, मौसल, महा- सम्मिलन / प्रस्थानक और स्वर्गारोहण / असतस्तु (नपुं०) [क० स०] अविद्यमान चीज़ / अस् (दिवा० पर०) युद्ध करना युयोध बलिरिन्द्रेण | असतादिन् (वि.) [असत्+वाद+णिनि] जो व्यक्ति तारकेण गुहोस्यत-भाग० 8 / 10 / 28 / किसी वस्तु या बात की असत्ता को स्थापित करना अस्तः [ अस्...आधारे क्त, अस्यन्ते सूर्य किरणा यत्र] चाहता है। 1. छिपना, पश्चिमाद्रि 2. सूर्य का छिपना। सम० | असन्तुष्ट (वि.) [न+सम्+तुष्+क्त] अतृप्त, अप्रसन्न -निमग्न (वि.) अस्ताचल के पीछे छिपा हुआ --असन्तुष्टो द्विजो नष्ट:-नीति० / -विडम्बयत्यस्तनिमग्नसूर्यम-रघु० १६११,----मस्तक: | असन्तोषः [न+सम्+तुष्+घन] अतृप्ति, अप्रसन्नता / ---शिखरः, अस्ताचल की चोटी, समयः सूर्य छिपने असम्धानम् [न+सम्+घा+ल्युट्]1. निरुद्देश्यता 2. विलका समय, मृत्यु का समय-करजालमस्तसमयेऽपि गता, पार्थक्य / सताम्-शि० 9 / 5 / असमभागः [क० स०] जो समान रूप से नहीं बांटा अस्तिक्षीर (वि.) (अस्ति क्षीरं यस्य-पा०२।२।२४ वा०] हुआ है। जिसके पास दूध हो, दूध रखने वाला। असमायुक्त (वि०) [ना+सम्+आ+युज्+क्त] जो असक्रान्तः [नसम्+क्रम्+क्त] अधिमास, मलमास, भलीभांति प्रशिक्षित न किया गया हो। लौंद का महीना। असमिध्य (अ०) न+सम्+इ+ ल्यप] न जला कर / असंयाज्य (वि.) [न+सं+यज्+ण्यत् ] जिसके साथ | असमीचीन (वि.) [न+सम् +अ +क्विन्+ख] जो मिलकर किसी को यज्ञ करने की अनुमति न हो / सही न हो, त्रुटिपूर्ण। -मन०। असमृद्धिः (स्त्री०) [न+सम् +ऋष+क्ति सफलता का असंयोगः (न-सम्+युज+ध ] 1. संबंध का अभाव __ अभाव, किसी भी वस्तु की कमी होना-नात्मानम2. जो संयुक्त व्यञ्जन न हो पा० शरा५ / वमन्येत पूर्वाभिरसमृद्धिभिः-- मनु० 4 / 137 / असंरम्भः [न+सम्+रम्भ+घन] निर्भयता, निडरता असमेत (वि०) न+सम्+आ+३+क्त] जो अभी -महा० 14 // 38 / 2 / __ पहुँचा न हो, अनागत, अनुपस्थित-क्वचिदसमेतअसंरोधः [न+सम्+रुध+घा] अनाघात। परिच्छद:-मनु० --- 970 / / असंवर (वि.) [न० ब०] जो रोका न जा सके, दुनिवार असम्पात (वि०) [न० ब०]अनुपस्थित, जो निकट न हो। --असंवरे शंबरवैरिविक्रमे -नै० 1153 / | असम्पातः[न+सम्+पत्+घश ]निष्क्रियता, निठल्लापन, असंहार्य (वि.) [न+सम्+हण्यत] 1. अजेय, जिसका कार्य का रुक जाना ... असम्पातं करिष्यामि ह्यद्य मुकाबला न किया जा सके विधिनमसंहार्यः प्राणिनां त्रैलोक्यचारिणाम्--रा० 3164159 / प्लवगोत्तम रा० 5 / 3714 2. जिसे मार्गभ्रष्ट न असम्बद्यार्थव्यवधान (वि.) जिसने असंगत बात को बीच किया जा सके। में आकर रोक दिया है- तस्मानासम्बद्धार्थव्यवधानकअसकृत्कथनम् [असकृत् + कथ् + ल्युट्] आवृत्ति, दोहराना / वाक्यता---मी० सू० 3 / 121 पर शा० भा०। असकृद्धवः [असकृत्---भू+अप] दांत बृ० सं० / | असम्बोधः [न+सम्+बुध+घञ] समझ का अभाव / For Private and Personal Use Only