________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट अंश---अच विशिष्ट संगीत-ध्वनि। / अक्षयनीवी (स्त्री०) स्थायी धर्मार्थ दान-निधि (ब)। अंशकम् [ अंश+पवल ] सूर्य की दृष्टि से ग्रहों की स्थिति, | अक्षय्यभुज् (पुं०) [क्षि+यत्, न० त०, भुज+क्विप्] विवाह का उपयुक्त लग्न-अंशकं वैवाहिक लग्नं अग्नि---प्रदहेच्च हि तं राजन् कक्षमक्षय्यभुग्यथा-महा० -'नं०' 158 पर नारायण / 13 / 9 / 21 / अंशुकम् [ अंशु---कन् स्वार्थे ] नेता, दूब बिलोने की क्रिया अक्षि (नपुं०) [ अश्+क्सि ] आँख / सम० -- आमय: में प्रयुक्त रस्सी। आँख का रोग, आँख दुःखना, श्रवस (नपुं०) साँप, अंशूदकम् (नपुं०) ओस का पानी / तु० नयनश्रवस्, संवित् चाक्षुष संज्ञान, प्रत्यक्ष अकर्मन् [न० त०] 1. कार्य का अभाव, अकरण प्रति- ज्ञान, ---सूत्रम् आँख का रेखाज्ञानस्तर (प्रतिमाविद्या षेधादकर्म -- मी० सू० 108 / 10 2. वह कार्य जो विषयक), - स्पन्दनम् आँख का फरकना / विधि से स्वीकृत न हो-अकर्म च दारक्रिया या अक्षौरिमम [न० त०] वह दिन या नक्षत्र जिसे चुडाकर्म आधानोतरकाले-मै० सं०६।८।१४ पर शा० भा० संस्कार या मुंडन के लिए अशुभ माना गया है। 3. कार्य करने की उपेक्षा करना---मै०सं०६।३३ पर | अक्ष्णया (वेद० अ०) टेढ़े-मेढ़े ढंग से। सम० - रज्जः शा० भा०। (स्त्री०) कर्ण रेखा, शु०,-स्तोमीया इष्टका नामक अकलङ्क (वि०) कलंकरहित, निष्कलंक / यज्ञ, तै० सं०, श०।। अकल्पनम् न० त०] अनारोपण / अखल: [न० त०] उत्तम वैध, निद्य / अकल्माष: चौथे मन के पुत्र का नाम / अखिलिका (वन०) कारली नामक वनस्पति / अकाण्डताण्डवम अवांछित हल्लागल्ला (पांडित्य के निरर्थक | अगजा [ न गच्छति इति अगः, तस्मात् जायते-अग+जन् प्रदर्शन के विषय में व्यंग्योक्ति)। +ड] पर्वत की पुत्री, पार्वती- अगजाननपद्याक अकालज्ञ ( वि० ) अनयक्त समय पर करने वाला गजाननमहनिशं, अनेकदं तं भक्तानामेकदन्तमपास्महे / -अत्यारूढो हि नारीणामकालज्ञो मनोभवः रघु० सम० ... जानिः शिव। 12 / 33 / अगण्डः [न.ब.] कबन्ध जिसमें हाथ पैर न हों अगण्डअकालिकम् (अ०) अचानक - अकालिकं कुरवो नाभविष्यन् भूतो विद्तो दाबदग्ध इव द्रुमः .. रा०६।६८।५। --महा० 5 / 32 / 30 / अगतिः [ न० त०] बुरा मार्ग, तु० अपथः / - अकिल्विष (वि०) [न० व.] निष्पाप, तु० अकृतकिल्विष अगदः | न० त० गदाभावः ] औषधि। सम...... राजः जिसने कोई पाप नहीं किया है।। उत्तम औषधि। अकृतक (वि.) [+क्त, न० त०, स्वार्थ कन् ] जो अगर्दभः [न० त०] खच्चर / बनाया हुआ न हो, स्वाभाविक-न तस्य स्वो भावः | अगाधसत्त्व (वि.) [न० ब०] प्रबल आत्मशक्ति रखने प्रकृतिनियतत्वादकृतकः ---उत्तर० / वाला- अगाधसत्त्वो मगधप्रतिष्ठः-रघु०६।२१ / अकृत्रिम (वि.) [न० त०] प्राकृतिक, जो मनुष्यकृत | अगुल्मकम् [ अगुल्मीभूतं-न० त०] अस्तव्यस्त, विश्रृंखलित न हो। (सेना) - गुल्मीभूतमगुल्मकम् ---शुक्र० 41870 / अक्क: [ अक् + कन् ] भंडारगृह - अक्के चेन्मधु विन्देत | अगोत्र (वि०) जिसका कोई स्रोत या उद्गम स्थान न किमर्थं पर्वतं व्रजेत् / हो यत्तदद्रेश्यमग्राह्यमगोत्रम्- मुंड० 1 / 1 / 6 / / अक्ता (स्त्री०) [अञ्-क्त ] (वेद०) रात। अग्निः [अङ्गति कध्वं गच्छति - अङ्ग.+नि, लोपश्च ] अक्लान्त (वि०) [न० त०] जो धका न हो। 1. आग 2. पिंगला नाडी-यत्र सोमः सहाग्निना अक्लीबम् (अ०) पूर्णतः, सचाई के साथ / महा० 14 / 20 / 10 3. आकाश-अग्निर्धा-मुंड. अक्ष: [अश् + सः ] 1. हिंडोले या पालकी की खिड़की 23114 / सम० कृतः काजू,-चूड: लाल शिखा 2. जूआ खेलना / सम...-दण्ड: वह लकड़ी जिसमें वाला एक जंगली पक्षी, - चूर्णम् बारूद,-द्वारम् घुरी लगी रहती है,-दृश्कर्मन् अक्षांश ज्ञान करने घर का दरवाजा जो आग्नेय दिशा की ओर है,-यानम् के लिए गणित की प्रक्रिया,-विद् जूआ खेलने में हवाई जहाज़ -- व्योमयानं विमानं स्यादग्नियानं तदेव निपुण,-शलाका पाँसा,-शालिन, शालिक जूआ- हि ----अ० सं०, ..वेश्यः 1. एक अध्यापक - महा० घर का अधीक्षक / 2. बाइसवां महत,-सावणिः एक मनु का नाम, 152 For Private and Personal Use Only