________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (( 1132 ) सौवग्रामिक (वि०) (स्त्री०-की) [स्वग्राम-|-ठक] अपने। -मृच्छ० 1 / 13, सखीजनस्ते किमु रूढसौहृदः निजी गांव से सम्बन्ध रखने वाल।। --विक्रम० 1110, मा० 1 / सौवर (वि०) (स्त्री० री) [स्वर+अण] 1. किसी सौहित्यम् [सुहित-+या। 1. तृप्ति, संतुष्टि--शि० ध्वनि या संगीत के स्वर से संबंध रखने वाला 5 / 62 2, पूर्णता, पूर्ति 3. कृपालुता, सद्भावना। 2. स्वरसम्बन्धी। / स्कन्द (म्वा० आ० स्कन्दते) 1. कूदना 2. उठाना 3. उडेसौवर्चल (वि.) (स्त्री०-ली) [सुवर्चल--अण] सुवर्चल लना, उगलना। नामक देश से प्राप्त,--लम् 1. सोंचर नमक 2. सज्जी / स्कन्द i (भ्वा० पर० स्कन्दति, स्कन्न) 1. उछलना, कुदना का खार, रेह। 2. उठाना, ऊपर की ओर उठना, ऊपर को उछलना सौवर्ण (वि०) (स्त्री० ii) [सुवर्ण-- अण्] 1. सुनहरी 3. गिरना, टपकना भट्रि० 22 / 11 4. फट जाना, 2. तोल में एक स्वर्णमुद्रा के बराबर / छलकना 5. नष्ट होना, समाप्त होना-चस्कन्दे तप सौवस्तिक (वि०) (स्त्री० को) [रवस्ति-+-ठक्] आशी- ऐश्वरम् 6. बिखर जाना, रिसना 7. उगलना, ढालना, दिात्मक, . . कः कुलपुरोहित, या ब्राह्मण / - प्रेर० (स्कन्दयति-ते) 1. उडेलना, फैलाना, ढालना, सौवाध्यायिक (वि.) (स्त्री०-की) [स्वाध्याय--ठक] उगलना (जैसे वीर्यस्खलन)-एकः शयीत सर्वत्र न रेत: स्वाध्यायसम्बन्धी, स्वाध्यायी। स्कन्दयेत् क्वचित्-मनु०२।१८०, 9 / 50 2. छोड़ देना, सौवास्तव (वि०) (स्त्री०-वी) [सुवास्तु |-अण्] अच्छे अवहेलना करना, पास से निकल जाना, अब-,आक्रस्थान पर निर्मित, अच्छी वासभूमि से युक्त / मण करना, धावा बोलना. आंधी की भांति गरजना सौविवः, सौविदल्लः [सु-|-विद्+क-|-अण्. सुष्ठ विदन्नुपः - पुरीमवस्कन्द लनीहि नन्दनम् शि०११५१, आ-, तं लाति-ला+क+-अण्] अन्तःपुर की रखवाली आक्रमण करना, धावा बोलना-आस्कन्दल्लक्ष्मणं पर नियुक्त व्यक्ति--शि० 5117 / बाणैरत्यक्रामच्च तं द्रतम्-भट्टि. 17182, परि , सौवीरम् |सूवीर+अण्] 1. बेर का फल 2. अंजन, सुरमा / इधर उधर उछलना-मेघनादः परिस्कन्दन् परिस्क 3. कांजी,-रः सुवीर देश या वहाँ का अधिवासी / न्दन्तमाश्वरिम् / अबध्नादपरिस्कन्दं ब्रह्मपाशेन विस्फ('अधिवासी' के अर्थ में ब०व०)। सम..-अञ्जनम् / रन् रन् भनिनादपरिस्कन्दं ब्रह्म भट्टि० 9 / 75, प्र-, 1. आगे को उछलना एक प्रकार का अंजन या सुरमा / 2. झपट्टा मारना, आक्रमण करना। सौवीरकः सौवीर+कन 1,बेरी, बेर का पेड़ 2. सूवीर ii (चुरा० उभ० स्कन्दयति-ते) एकत्र करना / देश का अधिवासी 3. जयद्रथ का नाम,---कम् जौ। स्कन्दः [स्कन्द-+अच] 1. उछलना 2. पारा 3. कार्तिकेय की कांजी। का नाम सेनानीनामहं स्कन्दः-- भग०१०।२४, रघु० सौवीर्यम सुवीर--व्या ] बड़ी शरवीरता या विक्रम / 2036, 711, मेघ० 43 4. शिव का नाम 5. शरीर सौशोल्यम् [सुशील-|-व्यञ्] स्वभाव की श्रेष्ठता, अच्छा 6. राजा 7. नदीतट 8. वतुर पुरुष / सम० पुराणम् नैतिक आचरण, सदाचरण / अठारह पुराणों में से एक,-षष्ठी (स्त्री०) चैत्र मास सौश्रवसम् [सुश्रवस+अण्] ख्याति, प्रसिद्धि। के छठे दिन कार्तिकेय के सम्मान में पर्व / सौष्ठवम सूष्ठ-- अण] 1. श्रेष्ठता, भलाई, सौन्दर्य, लालित्य, / स्कन्दकः [स्कन्द्+ण्वुल] 1. उछलने वाला 2. सैनिक / सर्वोपरि सौन्दर्य-सर्वाङ्गसौष्ठवाभिव्यक्तये विरल- स्कन्दनम् स्किंद --ल्युट] 1. क्षरण, बहना 2. रेचन, पेट का नेपथ्ययोः पात्रयोः प्रवेशोऽस्तु मालवि० 1, शरीर- : चलना, (आंतों की या नलों की) शिथिलता 3. जाना, सौष्ठवम् मा० 1117, "जिसके शरीर की काटछांट। हिलना-जुलना 4. सूखना 5. ठंडक पहुँचा कर रक्त या टीपटाप अच्छी न हो" 2. परमकौशल, चातुर्य का जमाना। 3. अधिकता 4. लचक, हल्कापन / / स्कन्ध (चुरा० उभ० स्कन्धयति-ते) एकत्र करना। सौस्नातिकः [सस्नात+ठक] स्नान मंगलकारी होने के , स्कन्धः | स्कन्ध्यते आरुह्यतेऽसौ सूखेन शाखया वा कर्मणि सम्बन्ध में पूछने वाला-सौस्नातिको यस्य भवत्य- , घा , पृषो०] 1. कंधा 2. शरीर 3. वृक्ष का तना गस्त्यः -रघु०६।६१। --तीव्राघातप्रतिहततरुस्कन्धलग्नकदन्तः-श० 1134, सौहार्दः सुहृद् --अण] मित्र का पूत्र, -दम् हृदय की रघु०४१४७, मेघ० 53 4. शाखा या बड़ी डाली सरलता, स्नेह, सद्भाव, मैत्री (वेश्मानि) विश्राण्य 5. मानव-ज्ञान की कोई शाखा या विभाग 6. (किसी सौहार्द निधिः सुहृद्भ्यः ----रघु० 14/15, सौहार्दहृद्यानि पुस्तक. का) परिच्छेद, अध्याय, खण्ड 7. किसी विचेष्टितानि-मा० 114, मेघ० 115 / / सेना की टकड़ी 8. सैनिक समुच्चय, समूह 9. ज्ञानेमोडामसौहाम-धम [सहद-या, अणु वा, यत् वा न्द्रियों के पांच विषय 10. (बौद्ध दर्शन में) जीवन के मित्रता, स्नेह यत्सौहृदादपि जनाः शिथिलीभवन्ति / पाँच तत्त्वरूप-सर्वकार्यशरीरेषु मक्ताङ्गस्कन्धपञ्चकम For Private and Personal Use Only