________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1200 ) का मिलता है। अतः यह कवि बारहवीं शताब्दी में अतः भवभूति सातवीं शताब्दी के अन्त में हुआ। हुआ होगा। बाण ने इसके नाम का उल्लेख नहीं किया, अतः यह रिन् --यह दशकुमारचरित और काव्यादर्श का रचयिता काल सुसंगत है। कालिदास और भवभूति की है छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। माघवाचार्य समकालीनता के उपाख्यान निरे उपाख्यान होने के के मतानुसार यह बाण का समकालीन था। कारण स्वीकार्य नहीं है। पतंजलि-महाभाष्य का प्रसिद्ध लेखक। कहते हैं कि यह भारवि-किरातार्जुनीय काव्य का रचयिता। 634 ई. ईसा से लगभग 150 वर्ष पूर्व हुआ। के एक शिलालेख में इसका उल्लेख कालिदास के नारायण - (भट्टनारायण) -वेणीसंहार का रचयिता / यह साथ किया गया है। देखो कालिदास / नवीं शताब्दी से पूर्व ही हुआ होगा, क्योंकि इसकी भास-बाण और कालिदास ने इसे अपना पूर्ववर्ती बताया रचना का उल्लेख आनन्दवर्धन ने अपने ध्वन्यालोक है अतः यह सातवीं शताब्दी से पूर्व ही हुआ। में बहुत बार किया है। यह कवि अवन्तिवर्मा के | मम्मट-काव्य प्रकाश का रचयिता। यह 1294 ई० राज्यकाल 855-884 ई० (राजतरंगिणी 5 / 34) से पूर्व ही हुआ है क्योंकि 1294 ई० में तो जयन्त में हुभा। ने काव्यप्रकाश पर 'जयन्तीनामक टीका लिखी है। बाण-हर्षचरित, कादंबरी और चंडिकाशतक का विख्यात | मयूर-यह बाण का श्वसुर था। इसने अपने कुष्ठ से प्रणेता। पार्वतीपरिणय और रत्नावली भी इसी की " मुक्ति पाने के लिए सूर्यशतक को रचना की। यह रचना मानी जाती हैं। इसका काल निर्विवाद रूप बाण का समकालीन था। से इसके अभिभावक कान्यकुब्ज के राजा श्री हर्षवर्धन मरारि - अनर्घराघव नाटक का रचयिता। रत्नाकर द्वारा निश्चित किया गया है। जिस समय यन कवि ने (जो नवीं शताब्दी में हुआ) अपने हरविजय त्सांग ने समस्त भारत में भ्रमण किया उस समय 38 / 67 में इसका उल्लेख किया है। अतः इसे नवौं हर्षवर्धन ने 629 से 645 ई० तक राज्य किया। शताब्दी से पूर्व का ही समझना चाहिए। इसलिए बाण या तो छठी शताब्दी के उत्तरार्ष में | रत्नाकर--हरविजय नामक महाकाव्य का रचयिता / हुआ या सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में। बाण का अवन्तिवर्मा (855-884 ई० तक) इस कवि के काल कई और लेखकों के काल का -न्यूनातिन्यून आश्रयदाता थे। उनका जिनका कि बाण ने हर्षचरित की प्रस्तावना | राजशेखर-बालरामायण, बालभारत और विशालमें उल्लेख किया है - परिचायक है। भंजिका का रचयिता। यह भवभूति के पश्चात् दसवीं बिल्हण महाकाव्य विक्रमांकदेवचरित तथा चोरपंचाशिका शताब्दी के अन्त से पूर्व हआ, अर्थात् यह सातवीं का रचयिता। यह ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध शताब्दी के अन्त और दसवीं शताब्दी के मध्य में में हुआ। भट्रि -यह श्रीस्वामी का पुत्र था। राजा श्रोधरसेन या| वराहमिहिर-एक प्रसिद्ध ज्योतिविद, बृहत्संहितानामक उसके पुत्र नरेन्द्र के राज्यकाल में श्रीस्वामी वल्लभी पुस्तक का रचयिता। में रहा। लैसन के मतानुसार श्रीधर का राज्यकाल | विक्रम-देखो कालिदास / 530 से 545 ई० तक था।। विशाखदत्त मुद्राराक्षस का रचयिता। इस नाटक की भर्तहरि--शतकत्रय और वाक्यपदीय का रचयिता / तेलंग रचना का काल तेलंग महाशय के अनुसार सातवीं या महाशय के मतानुसार यह ईस्वी सन की प्रथम आठवीं शताब्दी माना जाता है। शताब्दी के अन्तिम काल में अथवा दूसरी शताब्दी के | शंकर-वेदान्त दर्शन का प्रसिद्ध आवार्य, तथा शारीरक आरम्भ में हुआ। परंपरा के अनुसार भर्तृहरि, भाष्य का प्रणेता। इसके अतिरिक्त वेदान्त विषय विक्रमराजा का भाई था। और यदि हम इस विक्रम पर इसको अनेक रचनाएँ है। कहते है कि यह को वही मानें जिसने 544 ई० में म्लेच्छों को पराजित 788 ई० में उत्पन्न हुआ और 32 वर्ष की थोड़ी किया था, तो हमें समझ लेना चाहिए कि भर्तृहरि आयु में ही 820 ई० में परलोकवासी हुआ। परन्तु छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। कुछ विद्वान् लोगों (तैलंग महाशय तथा डाक्टर भवभूति---महावीरचरित, मालतीमाधव और उत्तरराम- भंडारकर आदि) ने यह दर्शाने का प्रयत्न किया है परित का रचयिता। यह विदर्भ का मल निवासी कि यह छठी या सातवीं शताब्दी में हुआ होगा। था, और कान्यकुब्ज के राजा यशोवर्मा के दरबार मुद्राराक्षस की प्रस्तावना देखिये। में रहता था। काश्मीर के राजा ललितादित्य | श्रीहर्ष--यह नैषधचरित का प्रसिद्ध रचयिता है। इसके (693 से 729 ई.) ने इसे परास्त किया था। अतिरिक्त इसकी अन्य आठ दस रचनाएँ भी मिलती हुआ। तलग For Private and Personal Use Only