________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1159 ) व्यंजन हो (उदा० वर्प का उच्चारण 'वरिष' है),। के दाने, काय (वि०) सुनहरी शरीर वाला, (--यः) .. भडः 1. उच्चारण को अस्पष्टता, टूटा हुआ उच्चा- गरुड़ का नाम, कारः सुनार,--गरिकम् गेरु, लाल रण, आवाज़ का बैठ जाना,---मण्डलिका एक प्रकार की खड़िया, चूड: 1. नीलकंठ 2. मुर्गा,-जम् रांगा, वीणा, लासिका बांसुरी, मुरली,- शून्य (वि.) -दीधितिः अग्नि, पक्षः गरुड़, पाठकः सुहागा, संगीतसुरों से रहित, बेसुरा, संगीत के ताल सुरों से -पुष्पः चम्पक वृक्ष,--- बंधः सोना गिरवी रखना, हीन, संयोगः 1. स्वरों का मिल जाना 2. ध्वनि -भङ्गारः स्वर्णपात्र, माक्षिकम सोनामक्खी नाम का . या स्वरों का मेल ---अर्थात् आवाज़-अन्य एवैष एक खनिज पदार्थ, --रेखा, लेखा सोने की लकीर, स्वरसंयोगः-मच्छ० 113, उत्तर० 3, पण्डित -वणिज् (पुं०) 1. सोने का व्यापारी 2. सर्राफ़, कौशिक्या इव स्वरसंयोगः श्रूयते --- मालबि० 5, -वर्णा हल्दी। सङ्क्रमः 1. सुरों के उतार-चढ़ाव का क्रम - तं तस्य | स्वर्द (भ्वा० आ० स्वर्दते) चखना, स्वाद लेना। स्वरसक्रम मदुगिरः श्लिष्टं च तन्त्रीस्वनम् ---मच्छ० | स्वल (भ्वा० पर० स्वलति) जाना, हिलना-जुलन।। 3 / 5 2. सरगम, सन्धिः स्वरों का मेल,-सामन स्वल्प (वि.) [ सुष्ठु अल्पं -प्रा० स०, म० अ० स्वल्पी(पुं०, ब० ब०) यज्ञीय सत्र में विशेष दिन के यस, तथा उ० अ० स्वल्पिष्ठ [ 1. बहुत छोटा या विशेषण। थोड़ा, सूक्ष्म, निर्थक 2. बहुत कम / सम०-आहारः स्वरवत् (वि.) [ स्वर+मतुप् ] 1. ध्वनियुक्त, निनादी | (वि.) बहुत कम खाने वाला, संयमी, मिताहारी, 2. सुरोला 3. स्वरविषयक . स्वराघात से युक्त, --कडू चील का एक भेद बल (वि०) अत्यंत सस्वर / दुर्बल या कमजोर, विषयः 1. नगण्य बात 2. छोटा स्वरित (वि.) [स्वरो जातोऽस्थ इतच 11. ध्वनियक्त भाग+व्ययः अत्यन्त कम खर्च, दरिद्रता,-योड 2. ध्वनित, स्वर के रूप में बोला गया 3. उच्चरित (वि.) बहुत कम लज्जा वाला, बेशर्म, निर्लज्ज, 4. स्वरित उच्चारणचिह्न से युक्त,-तः उदात्त (ऊंचे) शरीर ( वि०) बहुत छोटे कद का, ठिंगना। और अनुदात्त (नीचे) के बीच का स्वर सभाहार: स्वल्पक ( वि० ) [ स्वल्प+कन् ] बहुत थोड़ा, बहुत स्वरितः --पा० 112 / 31, दे० इस पर सिद्धा० / छोटा, बहुत कम / स्वरुः [स्वृ+उ ] 1. धूप 2. यज्ञीयस्तम्भ का एक | स्वल्पीयस् (वि०) [ स्वल्प+ईयसुन् 'स्वल्प' की म० अंश 3. यज्ञ 4. वन 5. बाण / अ.] बहुत कम, अपेक्षाकृत छोटा, अपेक्षाकृत स्वहस् (पुं०) [ स्व+उस् ] वज्र। स्वर्गः [ स्वरितं गीयते-गै-क, सु+ऋ--घा ] स्वल्पिष्ठ (वि.) [स्वल्प-+-इष्ठन्, 'स्वल्प' की उ० वैकुंठ, इन्द्र का स्वर्ग, बहिश्त --अहो स्वर्गादधिकतरं / अ० ] अत्यन्त कम, सबसे छोटा, अत्यन्त सूक्ष्म / निर्वृतिस्थानम्-श० 7 / सम०-आपगा स्वर्गीय गंगा, | स्वशुरः [=श्वशुरः ] अपने पति या पत्नी का पिता, ---- ओकस् (पुं०) सुर, देव, गिरिः स्वर्गीय पहाड़, | श्वसुर, तु० 'श्वशुर'। सुमेरु, --द, -प्रद (वि०) स्वर्ग में प्रवेश दिलाने स्वसू (स्त्री०) [ सू+अस् --ऋन् ] बहन, भगिनी वाला,-द्वारम् स्वर्ग का दरवाजा, वैकुंठ का -स्वसारमादाय विदर्भनाथ: पुरप्रवेशाभिमुखो बभूव दरवाजा स्वर्ग में प्रवेश स्वर्गद्वारकपाटपाटनपर्ध- ___..- रघु० 7 / 1,20 / मोऽपि नोपार्जितः-भर्तृ० 3 / 10, - पतिः, ---भर्तृ स्वसत् (वि.) [स्व + सु+क्विप् ] अपनी इच्छानुसार (पुं०) इन्द्र,-- लोक: 1. दिव्य प्रवेश 2. वैकुंठ,-वधूः, जाने या चलने-फिरने वाला। .. स्त्री (स्त्री०) दिव्य बाला, स्वर्ग की परी, अप्सरा | स्वस्क (भ्वा० आ० स्वस्कते) दे० 'वक'। णा परिष्वङ्गः कथ मत्यन लभ्यते,-साधनम् स्वस्ति (अव्य.) [सु+अस्+क्ति, वा अस्तीति स्वर्ग प्राप्त करने का उपाय / / विभक्तिरूपकम् अव्ययम्, प्रा० स० ] अध्यय, इसका स्वगिन (पं०) [ स्वगोंऽस्त्यस्य भोग्यत्वेन इनि ] 1. सूर, अर्थ है 'क्षेम, कल्याण हो' आशीर्वाद, जय जयकार, देव, अमर, त्वमपि विततयज्ञः स्वर्गिण: प्रीणयालम् / जाते समय की नमस्ते (संप्र० के साथ) स्वस्ति भवते श०७।३४, मेघ० 30 2. मृतक, मरा हुआ पुरुष। __श०२, स्वस्त्यस्तु ते रघु० 5 / 17 (प्रायः अक्षस्वर्गीय, स्वयं (वि०) [ स्वर्ग+छ, यत् वा ] 1. स्वर्ग रारम्भ में प्रयुक्त)। सम० --- अयनम् 1. समृद्धि के का, दिव्य, देवी 2. स्वर्ग को ले जाने बाला, स्वर्ग में दिलाने वाला उपाय 2. मन्त्र पाठ या प्रायश्चित्त प्रवेश दिलाने वाला मनु० 4.13, 5 / 48 / द्वारा पाप को हटाना 3. दान स्वीकार करने के बाद स्वर्णम् [ सुष्ठ अर्णो वर्णो यस्य ] 1. सोना 2. सोने का ब्राह्मण का धन्यवाद करना -प्रास्थानिक स्वस्त्ययनं सिक्का / सम० अरि: गंधक,-कणः, -कणिका सोने प्रयुज्य-रघु० 2170, :,--भावः शिव का विशे For Private and Personal Use Only