________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1072 ) सप्तिः सूर्य का विशेषण- सर्वैरुस्रः समग्रेस्त्वमिव / सभाज् (चुरा० उभ० सभाजयति--ते) 1. अभिवादन नपगणर्दीप्यते सप्तसप्ति:-मालवि० 2 / 13 / करना, प्रणाम करना, नमस्कार करना, श्रद्धांजलि सप्तम (वि०) (स्त्री०-मी) [सप्तानां पूरणः .. सप्तन् / अर्पित करना, बधाई देना-- स्नेहात्सभाजयितुमेत्य, +डट, मद] सातवां, मी (स्त्री०) 1. सातवीं --- उत्तर० 17, शि० 13 / 14, श० 5 2. सम्मान विभक्ति (व्या० में) अधिकरण कारक 2. चान्द्रवर्ष करना, पूजा करना, आदर करना 3. प्रसन्न करना, के किसी पक्ष का सातवां दिन / तृप्त करना 4. सुन्दर बनाना, अलंकृत करना, सजाना सप्तला (स्त्री०) एक प्रकार की चमेली। -उत्तर० 4 / 19 5. प्रदर्शन करना। सप्तिः [सप् +-ति] 1. जुआ 2. घोड़ा-जवो हि सप्तः | सभाजनम् [ सभाज्+ल्युट ] 1. (क) प्रणाम करना, परमं विभूषणम् ----सुभा०-दे० 'सप्तसप्ति' भी। अभिवादन करना, सम्मानित करना, पूजा करना सप्रणय (वि०)[सह प्रणयेन ...ब० स०] स्नेही, मित्रतापूर्ण / -शि० 13 / 14 (ख) स्वागत करना, बधाई देना सप्रत्यय (वि०) [प्रत्ययेन सह -ब० स०] 1. विश्वास ----रघु० 13143, 14 / 18 2. शिष्टता, शिष्टाचार, रखने वाला 2. निश्चित, विश्वस्त / विनम्रता 3. सेवा। सफर:-री [सप् +अरन्, पुषो० पस्य फ:] छोटी चमकीली | सभावनः [ सह भावनेन-ब० स० 1 शिव का नाम / मछली - तु० 'शफर'। सभि (भी)क: [[ सभा द्यूतं प्रयोजनमस्य-ईक ] जुए सफल (वि.) [सहफलेन ब० स०] 1. फलों से पूर्ण, का अड्डा चलाने वाला, जुआ खेलाने वाला,---अयम- फल देने वाला, उपजाऊ (आलं० से भी) 2. सम्पन्न, / स्माकं पूर्वसभिको माथुर इत एवागच्छनि-मृच्छ० पूरा किया गया, कामयाब / 3, याज्ञ० 20139 / सबन्धु (वि०) सह बन्धना-ब. स.] 1. जिसके साथ | सभ्य (वि.) [सभायां साधु:-यत् ] 1. सभा से संबंध निकट सम्बन्ध हो 2. मित्रयक्त, मित्रता के सूत्र में रखने वाला 2. समाज के योग्य 3. संस्कृत, परिष्कृत, बंधा हुआ, धुः रिश्तेदार, बन्धु-बांधव / विनीत 4. सुशील, विनम्र, शिष्ट-रघु० 1155, कु० सबलिः [सहबलिना ब. स.] सांध्यकालीन झुटपुटा, 7 / 29 5. विश्वस्त, विश्वसनीय, ईमानदार,-भ्यः गोधूलिवेला। 1. मूल्यनिदर्शक 2. सभासद 3. संमानित कुल में सबाष (वि.) [सह बाधया ब० स०] 1. आघातपूर्ण उत्पन्न 4. जुआ-खाने का संचालक 5. द्यूतगृह के 2. पीडादायक / संचालक का सेवक। सब्रह्मचर्यम् (समानं ब्रह्मचर्यम सहस्य सः] सहपाठिता | सभ्यता त्वम् [ सभ्य+तल+-टाप, त्व वा ] विनम्रता, (एक ही गुरु के शिष्य होने के कारण)। सुशीलता, कुलीनता। सब्रह्मचारिन् (पुं० [समानं ब्रह्म वेदग्रहणकालीनं व्रतं | सम् (भ्वा० पर० समति) 1. विक्षुब्ध या अव्यवस्थित चरति चर+णिनि, समानस्य सः] 1. सहपाठी (समान होना 2. विक्षुब्ध या अव्यवस्थित न होना। अध्ययन या समान साधना करने वाला) 2. सहभोगी, ii (चुरा० उभ० समयति--ते) विक्षुब्ध होना। सहानुभूति रखने वाला व्यक्ति-दुःखसब्रह्मचारिणी | सम् (अव्य.) [ सो+डम ] धातु या कृदन्त शब्दों से पूर्व तरलिका क्व गता - का०, हे व्यसनसब्रह्मचारिन् उपसर्ग के रूप में लग कर इसका निम्नांकित अर्थ है यदि न गुह्यं ततः श्रोतुमिच्छामि-मुद्रा० 6 / (क) के साथ मिल कर, साथ साथ यथा संगम, सभा [ सह भान्ति अभीष्टनिश्चयार्थमेकत्र यत्र गहे] संभाषण, संघा, संयुज आदि में (ख) कभी कभी यह 1. जलसा, परिषद्, गुप्तसभा-पण्डितसभा कारित- धातु के अर्थ को प्रकट कर देता है, और इसका अर्थ वान् —पंच०१, न सा सभा यत्र न सन्ति बद्धाः होता है 1. बहुत, बिल्कुल, खूब, पूर्णतः, अत्यन्त --हि. 1 2. समिति, समाज, सम्मिलन, बड़ी -यथा संतुष, संतोष, संन्यस, संन्यास, संताप आदि संख्या 3. परिषद्-कक्ष, या सभा भवन 4. न्यायालय 2. समास में संज्ञा शब्दों के पूर्व प्रयुक्त होकर इसका 5. सार्वजनिक जलसा 6. जुआ खाना 7. कोई भी अर्थ है की भाँति, समान, एक जैसा यथा 'समर्थ' में स्थान जहाँ लोग प्रायः आते जाते हों। सम० 3. कभी कभी इसका अर्थ होता है—निकट, पूर्व, जैसा आस्तारः 1 सभा में सहायक 2. सभासद्,--पतिः कि 'समक्ष' में। सभा का अध्यक्ष, सभापति 2. जुए का अड्डा चलाने सम (वि.) [सम् +अच् ] 1. वही, समरूप 2. समान, वाला,-पूजा दर्शकों के प्रति सम्मान प्रदर्शन, सद् जैसा कि 'समलोष्टकांचन:' में रघु० 8121, भग० (पुं०)1.किसी सभा या जलसे में सहायक 2. सभा- 238 3. के समान, वैसा ही, मिलता-जुलता, करण० सद्, मेम्बर, 3. अदालत की पंचायत का सदस्य, जरी या संबंध के साथ अथवा समास में,-गणयक्तो दरिका सदस्य / द्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः-सुभा०-कु० 3 / 13, 23. For Private and Personal Use Only