________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1107 ) उपसर्गों के पश्चात् 'सिध्' के 'सू' को मर्घन्य '' हो / 2. सिंघनदी के चारों ओर का देश 4. मालवा में जाता है) 1. जाना 2. हटाना, दूर करना 3. नियन्त्रण बहने वाली एक नदी का नाम मेघ०२९ (यहां पर करना, रुकावट डालना. रोकना 4. निषेध करना, मल्लि. का टिप्पण--सिन्धु नाम नदी तु कुत्रापि प्रतिषेव करना . आदेश देना, समादेश देना, निदेश देना नास्ति-निरर्थक है)-मा० 4 / 9. (उस स्थान पर 6. शुभ निकलना, मंगलमय होना, अप-, दूर करना, भांडारकर का नोट देखो) 5. हाथी के संड से निकला हटाना संवत्सरं यवाहारस्तत्पापमपसेधति—मनुं० हुआ पानी 6. हाथी के गण्डस्थलों से बहनें वाला दान 111199, नि-, 1. परे हटाना, रोकना, नियंत्रण या मद 7. हाथी--(पुं०ब०व०) बड़ा दरिया या नदी में रखना, पीछे हटाना-न्यषेधि शेषोऽप्यनुयार्थिवर्ग: -पिबत्यसो पाययते च सिन्ध:-रघु०१३१९, मेघ०४६। - रघु० 2 / 4, 342, 5 / 18 2. विरोध करना, सम० ज (वि०) 1. नदी से उत्पन्न 2. समुद्र से प्रतिवाद करना, आक्षेप करना- रघु० 14143 उत्पन्न 3. सिंघ देश में उत्पन्न, (-जः) चन्द्रमा 3. प्रतिषेध करना, मना करना-निषिद्धो भाषमाणस्तु | (-जम्) सेंधा नमक,-नायः सागर। सुवर्ण दण्डमर्हति-मनु० 8 / 361 4. पराजित करना, | सिन्धुकः, सिन्धुवारः [सिन्धु+क, सिन्दुवारः, दस्य घः] जीतना-रघु० 1811 5. हटाना, दूर करना, निवारण | एक वृक्ष का नाम। करना-त्यषेधत्पावकास्त्रण रामस्तद्राक्षसांस्ततः-भट्टि० | सिन्धुरः [सिन्धु+र] हाथी। 17 / 87, 1115, प्रति , 1. रोकना, दूर रखना, | सिन्छ (भ्वा० पर० सिन्वति) गीला करना, भिगोना / नियंत्रित करना मनु० 2 / 206, रघु० 8 / 23 | सिप्रः [सप्+रक्, पृषो०] 1. पसीना, स्वेद 2. चाँद / 2. मना करना प्रतिषेध करना -- नृपतेः प्रतिषिद्धमेव | सिप्रा सिप्र+टाप] 1. स्त्री की करधनी या तगडी 2. भैस तत्कृतवान् पंक्तिरथो विलम्ब्य यत् - रघु० 9 / 74, | 3. उज्जयिनी के निकट एक नदी का नाम, दे० विप्रति , प्रतिवाद करना, विरोध करना-स्नेहश्च शिप्रा। निमित्तसव्यपेक्षश्चेति विप्रतिषिद्धमेतत् मा० 1 / सिम (वि०) [सि ---मन्] प्रत्येक, सब, संपूर्ण, समस्त / सिध्मम्, सिध्मन् (नपुं०) [सिध+मन, किच्च] | सिम्बा,-बी दे० शिम्बा,-बी। 1. छाला, ददोरा, खुजली 2. कोढ़ 3. कुष्ठ ग्रस्त / सिरः [ सिरक] पीपलामल की जड़ / स्थान / सिरा सिर+टाप] 1. शरीर की नलिकाकार वाहिका सिध्मल [सिध्म+लच] 1. जिसको खुजली हो, कोढ़ (जैसे कि शिरा, धमनी, नाड़ी आदि) 2. डोलची, के चिह्नों से युक्त, कोढ़ी। पानी उलीचने का बर्तन / सिम्मा [ सिध्म + टाप् ] 1. छाला, ददोरा, खुजली, कोढ़ सिव (दिवा० पर० सीव्यति, स्यूत) 1. सीना, रफू करना, युक्त स्थान 2. कोढ़। तुरपना, टांका लगाना,-मनोभव: सीव्यति दुर्यशसिध्यः [ सिध+णि+यत् ] पुष्य नक्षत्र / पटौ-न० 280, मा० 5 / 10 2. मिलाना, एकत्र सिध्रः। सिधु रक] 1. पवित्रात्मा, पुण्यात्मा 2. वृक्ष / करना - स हि स्नेहात्मकस्तन्तुरन्तमर्माणि सीव्यति सिध्रकावणम् [ सिध्रकप्रधानं वनम, णत्वम्, दीर्घश्च ] - उत्तर० 5 / 17, अनु नत्थी करना, मिला कर दिव्य उद्यानों में से एक उद्यान / जोड़ना। सिनः [सि+नक ग्रास, कौर।। सिवरः [सि-+क्वरप्] हाथी। सिनी [सिन+ङीष् ] गौर वर्ण की स्त्री। सिषाधयिषा [साधयितुमिच्छा-साधु-+सन्+अ+टाप, सिपीवाली [ सिनी श्वेता चन्द्रकलां वलति धारयति, सिनी धातोद्वित्वम्] संपन्न करने या क्रियान्वयन की इच्छा वल+अण+ङीप ] चन्द्रदर्शन से पूर्ववर्ती दिन, प्रति- | 2. स्थापित करने की इच्छा, सिद्ध करने की इच्छा, पदा, (जिस दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता है), प्रदर्शित करने की इच्छा। ... या पूर्वामावास्या सा सिनीवाली योत्तरा सा कुहः / | सिसृक्षा [सृज् + सन् +अ+टाप्, घातोद्वित्वम्] रचना ऐ० ब्रा०, या-सा दृष्टेन्दुः सिनीवाली सा नष्टेन्दुकला करने की इच्छा। कुहः-अमर० / सिहुण्डः [सो+कि=सिः छेदः तं हुण्डते--सि+हुण्ड्+अण्] सिन्दुकः, सिन्दुवारः (स्यन्द्। उ, संप्रसारण, सिन्दु+वृ सेहुंड (खेत की बाड़ में लगने वाला कांटेदार दूधिया +अण्] एक वृक्ष का नाम / पौधा। सिन्दूरः [स्यन्द्+उरन् सम्प्रसारणम्] एक प्रकार का वृक्ष, | सिलः, सिलकः [स्निह+लक पृषो०, सिल+कन] . रम् लाल रंग का सुरमा स्वयं सिन्दूरेण द्विपरण- गुग्गुल, गंधद्रव्य / मुदा मुदित इव-गीत० 11, 20 22 / 45 / सिलकी, सिली [सिह्लक (सिल)+डीष्] लोबान का सिन्धुः [स्यन्द+उद् संप्रसारणं दस्य घः] 1. समुद्र, सागर / वृक्ष / / For Private and Personal Use Only