________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्ति, चाव 4. उपयोग, अभ्यास, काम में लगना, कु. 129, श० 6 / 17 2. रेतीले तटों वाला द्वीप प्रयोग 5. बार बार आना-जाना, आश्रय लेना / 3. किनारा या द्वीप / सम० इष्टम् अदरक / / 6. चापलसी, बहकाना, चिकने चुपड़े शब्द - अलं | सैकतिक (वि०) (स्त्री०-की)[संकत+ठन] 1. रेतीले सेवया मध्यस्थतां गृहीत्वा भण-(मालवि०३ / संम० तट से संबन्ध रखने वाला 2. घट-बढ़ होने वाला, -----आकार (वि.) दासता के रूप में--विक्रम तरंगित, सन्देह की अवस्था में रहने वाला, सन्देहजीवी, 311, काकु सेवा में आवाज़ में परिवर्तन (यह -~-क: 1. साधु 2. संन्यासी,-कम मंगलसूत्र जो विक्रमः 31 में 'सेवाकारा' शब्द का रूपान्तर सौभाग्यशाली बनने के लिए कलाई में बांधा जाता है), --धर्म: 1. सेवा करने का कर्तव्य - सेवाधर्मः है या कंठ में पहना जाता है। परमगहनो योगिनामप्यगम्यः--पंच० 11285 सैदान्तिक (वि.) (स्त्री० -- की) [सिद्धान्त+ठक्] 2. सेवा का दायित्व, व्यवहारः सेवा की विधि या किसी राद्धांत या प्रदर्शित सत्य से सम्बन्ध रखने प्रथा। वाला 2. जो वास्तविक सचाई को जानता है। सेवि (नपुं०) [ से+इन् ] 1. बेर 2. सेव। | सैनापत्यम् [ सेनापति+ध्यम ] किसी सेना का सेनासेवित (भ० क० कृ०) [ सेव+क्त ] 1. सेवा किया / पतित्व, सेनाध्यक्षता—कु० 261 / गया, जिसकी टहल की गई है, पूजा किया गया सैनिक (बि०) (स्त्री०-की) [ सेनायां समवति ठक् ] 2. अनुगत, अभ्यस्त, पीछा किया गया 3. जहाँ नित्य- 1. सेनासम्बन्धी 2. फौजी, कः 1. सिपाही--पपात प्रति आया जाय, सहारा लिया गया, जहाँ (लोग) भूमौ सह सैनिकाश्रुभिः --रघु० 3.61 2. पहरेदार, बसे हए हों, जहाँ संगी-साथी हों 4. उपभुक्त, उप- संतरी 3. सामरिक व्यह में व्यवस्थित सैन्यसमूह युक्त,--तम् 1. सेव 2. बेर / --- रघु० 3 / 57 / सेवित (पुं०) [ सेव् +-तृच ] सेवक, दास। . सैन्धव (वि.) (स्त्री०-वी) [सिन्धुनदीसमीपे देशे भवः [सेव+णिनि ] 1. सेवा करने वाला, अण् ] 1. सिंधु प्रदेश में उत्पन्न या पैदा हुआ पूजा करने वाला 2. अनुगन्ता, अभ्यासी, उपयोक्त. 2. सिंधु नदी संबन्धी 3. नदी में उत्पन्न 4. समुद्र 3. बसने वाला, रहने वाला, - (0) सेवक / संबन्धी, सागर सम्बन्धी, सामद्रिक,--1: 1. घोड़ा, सेव्य (वि.) [ सेव--ण्यत् ] 1. सेवा किए जाने के योग्य, विशेषतः वह जो सिंधु देश में पला हो-नं० 1171 टहल किए जाने के योग्य 2. उपयोग में लाने के योग्य, 2. एक ऋषि का नाम, ..--:,--बम एक प्रकार का काम में लाने के योग्य 3. उपभोग किए जाने के योग्य सेंधा नमक,-वाः (पुं०, ब० व०) सिंधु प्रदेश के 4. देख-भाल किए जाने के योग्य, पहरा दिए जाने के अधिवासी। सम०-धनः नमक का ढेला,-शिला योग्य,--व्यः 1. स्वामी (विप० सेवक), भयं तावत्से- एक प्रकार का पहाड़ से निकलने वाला नमक / ' व्यादभिनिविशते सेवकजनम् --मुद्रा० 5 / 12, पंच० / सैन्धवक (वि.) (स्त्री०--की) [सैंधव+-वुन ] संधव 1148 2. अश्वत्थवृक्ष, व्यम् एक प्रकार की जड़। सम्बन्धी, क. सिंधु देश का कोई आपद्ग्रस्त व्यक्ति सम-सेवको (पुं०, द्वि० व०) स्वामी और नौकर। जिसकी दशा दयनीय हो / से (म्वा० पर०-सायति) बर्बाद होना, क्षीण होना, नष्ट | सैन्धी (स्त्री०) एक प्रकार की मदिरा (सम्भवतः वह जो होना। ताड़ के रस से तैयार की गई हो) ताड़ी। संह (वि.) (स्त्री० --ही) [ सिंह + अण् ] सिंह से , सन्यः [ सेनायां समवैति ञ्य ] 1. सैनिक, सिपाही-शि० संबद्ध, सिंह सम्बन्धी-युर्ति सैहीं कि श्वा घृतकनक- 5 / 28 2. पहरेदार, संतरी, त्यम् सेना, सेना की मालोऽपि लभते . हि० 11175 / टुकड़ी--स प्रतस्थेरिनाशाय हरिसन्यरनुद्रुतः-रघु० संहल (वि.) [ सिंहल+अण् ] लंका सम्बन्धी, लंका में 1 / 67 / उत्पन्न, या लंका में होने वाला। | समन्तिकम् [ सीमन्त+ठक् ] सिंदूर।। संहिकः, सेहिकेयः [सिंहिक-+अण्, सिंहिका+ढक् ] | सैरन्ध्रः, सरिन्ध्रः [ सीरं हलं घरति--सीर++क, मुम् राहु का मातृ परक नाम / -सीरन्ध्रः कृषकः तस्येद शिल्पकर्म सीरन्ध्र+अण् संकत (वि०) (स्त्री०-- ती) [ सिकताः सन्त्यत्र अण् ] पक्षे इत्वम् ] 1. घरेलू नौकर, किंकर 2. एक मिश्र 1. रेत युक्त या रेत से बना हुआ, रेतीला, कंकरीला | जाति, दस्यु जाति के पुरुष तथा अयोगव जाति की --तोयस्येवाप्रतिहतरय: सकतं सेतुमोघः- उत्तर० स्त्री से उत्पन्न सन्तान-सरिन्ध्र वागरावृत्ति सूते 3136 2. रेतीली भूमि वाला,--तम् रेतीला तट दस्युरयोगवे -मनु० 10 // 32 / ----सुरगज इव गांगं संकतं सुप्रतीकः - रघु० 5175, / सैरन्ध्री, सैरिन्ध्रीरं (रि) ध्र+डीष 11. दासी या 518, 1169, 13117, 62, 13376, 16 / 21, / सेविका जो अन्तःपुर में काम करे (सैरंध्र 2. में For Private and Personal Use Only