________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1088 ) वाला, हिलने-जुलने वाला—यूका मन्दविसर्पिणी / सब ओर से 2. सब ओर, सर्वत्र, चारों ओर 3. पूर्णतः -पंच० 1 / 252 / सर्वथा। सम०-गामिन् (वि०) 1. सर्वत्र पहुँच सर्पिस् (नपुं०) [सृप्+ इसि] पिघलाया हुआ घृत, घी रखने वाला-कु० ३।१२,-भद्रः 1. विष्णु का रथ (घूत और सर्पिस् के अन्तर को जानने के लिए दे० 2. बाँस 3. एक प्रकार का चित्रकाव्य-- उदा० कि० आज्य)। सम-समुद्रः घृतसागर, सात समुद्रों 15/25 4. मन्दिर या महल जिसके चारों ओर द्वार में से एक। हों (इस अर्थ में नपुं० भी) (वा) नर्तकी, नटी सर्पिष्मत् (वि.) [ सर्पिस्+मतुप् | घी (से प्रसाधित) -मुख (वि०) सब प्रकार का, पूर्ण, असीमित---श० युक्त। 5 / 25, (खः) 1. शिव का विशेषण 2. ब्रह्मा का सर्व (भ्वा० पर० सर्बति) जाना, हिलना-जुलना / विशेषण ....कु० 2 / 3, (चारों ओर मुख किये हुए) सर्मः[स+मन् ] 1. चाल, गति 2. आकाश। 3. परमात्मा 4. आत्मा 5. ब्राह्मण. 6. आग सर्व (भ्वा० पर० सर्वति) चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त | 7. स्वर्ग। करना, वध करना। सर्वत्र (अव्य०) [ सर्व+अल ] 1. प्रत्येक स्थान पर, सर्व (नि० वि०) [सृतमनेन विश्वमिति सर्वम् -कर्तृ० ब० सब जगहों पर 2. हर समय / . व० पुं०, सर्वे] 1. सब, प्रत्येक,-उपर्य परिपश्यतः सर्व | सर्वथा (अव्य०) सर्व+थाल ] 1. हर प्रकार से, सब एव दरिद्रति,-हि० 2 / 2, रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः तरह से . उत्तर० 115 1. बिल्कुल, पूर्णतः (प्रायः पूर्णता गौरवाय-मेघ० 20193 2. पूर्ण, समस्त, नकारपरक) 3. पूर्णत:, बिल्कुल, नितान्त 4. सब पूरा,-वं: 1. विष्णु का नाम 2. शिव का नाम / समय / सम०-अङ्गम् समस्त शरीर,-.अशीण (वि०) समस्त | सर्वदा (अव्य०) [ सर्व+दाच ] सब समय, सदैव, शरीर में व्याप्त या रोमांचकारी- सर्वाङ्गीण: स्पर्शः हमेशा। सुतस्य किल-विक्रम० 5 / 11, - अधिकारिन् (पुं०) सर्वरी दे० 'शर्वरी'। अध्यक्षः अधीक्षक,-अनोन सब प्रकार के अन्न | सर्वशः (अव्य०) [ सर्व+-शस् ] 1. पूर्णतः, सर्वथा, पूरी को खाने वाला ... सन्निभोजिन आदि, - आकारम् तरह से 2. सर्वत्र 3. सब ओर / (समास में) सर्वथा, पूर्ण रूप से, पूरी तरह से | सर्वाणी दे० 'शर्वाणी'। ---आत्मन् (पुं०) पूर्ण आत्मा, सर्वात्मना सर्वथा, सर्षपः [ +अप, सुक ] 1. सरसों खल: सर्षपमात्राणि पूरी तरह से, पूर्ण रूप से, ईश्वरः सबका स्वामी परच्छिद्राणि पश्यति, -- सुभा०, मा०-१०१६ -ग, गामिन् (वि०) विश्वव्यापी, सर्वव्यापक, 2. एक छोटा बाट 3. एक प्रकार का विष / --जित (वि.) सर्वजेता, अजेय, ज्ञ-विद (वि०) | सल (म्वा० पर० सलति) जाना, हिलना-जुलना / सब कुछ जानने वाला, सर्वज्ञ (पं.) 1. शिव का सलम् [ सल् +अच् ] जल / / विशेषण 2. बुद्ध का विशेषण, दमन (वि०) सब सलज्ज (वि.) [ लज्जया सह ब० स०] विनीत, का दमन करने वाला, दुनिवार, - नामन् (नपुं०) लज्जाशील / संज्ञा के स्थान में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का समूह, सलिलम [ सलति गच्छति निम्नम् -सल- इलच् ] पानी, -मंगला पार्वती का विशेषण,—रसः लाख, बिरोजा, - सुभगसलिलावगाहा:--श० 113 / सम० . अयिन् ----लिगिन् (पुं०) पाखंडी, छद्मवेशी, ढोंगो,-व्यापिन् (वि०) प्यासा, * आशयः तालाब, ताल, पानी की (वि०) सर्वत्र व्यापक रहने वाला,-वेवस् (पुं०) टंकी,-इन्धनः वड़वानल, उपप्लवः जलप्लावन, प्रलय, सर्वस्व दक्षिणा में देकर यज्ञानष्ठान करने वाला, बाढ़,-क्रिया 1. अन्त्येष्टि संस्कार के अवसर पर -सहा (सर्वसहा भी) पृथ्वी, -स्वम् 1. प्रत्येक शवस्नान 2. जलतर्पण, उदकक्रिया,-अम् कमल,-निधिः वस्तु, 2. किसी व्यक्ति की समस्त संपत्ति, जैसा कि 'सर्वस्वदंड' में, हरणम् 1. सारी संपत्ति का अपहरण सलील (वि.) [ सहलीलया --ब० स०] क्रीडाशील, या जब्ती 2. किसी वस्तु का सर्वांश---दे० श० 1124, स्वेच्छाचारी, शृंगारप्रिय / / 6 / 2, मा० 8 / 6, भामि० 1163 / सलोकता [ समानः लोको यस्य-इति सलोकः तस्य भाव: सर्वषः (वि.) [ सर्व+कष+खच, मुम् / 'सब कुछ __ तल+टाप् ] एक ही लोक में होना, किसी विशेष नष्ट करने वाला', सर्वशक्तिमान--सर्वऋषा भगवती देवता के साथ एक ही स्वर्ग में निवास (मक्ति की भवितव्यतव-मा० 1123, भामि० ४।२,-वः दुष्ट, चार प्रकार की अवस्थाओं में से एक)। बदमाश। | सल्लकी [शल+वुन्, लुक, पृषो० शस्य सः ] एक प्रकार सर्वतः (अव्य०) [ सर्व+तसिल ] 1. प्रत्येक दिशा से, / का पेड़, सलाई का पेड़, दे० 'शल्लकी'। (मुक्ति की न्, लुकी में से एक For Private and Personal Use Only