________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 994 ) परन्तु उनकी संख्या निश्चित नहीं हो सकी क्योंकि 4135, तम् 1. शारीरिक श्रम, मजदूरी 2. दैनिक बराबर नये नये व्रतों की रचना प्रतिदिन होती रहती मजदूरी 3. यदा-कदा कार्य में नियक्ति / है यया सत्यनारायण व्रत 2. संकल्प, प्रतिज्ञा, दृढवातीन (वि०) [वातेन जीवति-बात-ख दैनिक-मजदूरी निश्चय--सोऽभूत् भग्नवतः शत्रूनुत्य प्रतिरोपयन् से जीविका चलाने वाला, किराये का मजदूर, बेलदार, ... रघु० 17142, इसी प्रकार 'सत्यवत, दृढव्रत' झल्ली वाला। कि पतिव्रता (पतिव्रतं यस्याः सा)---यान्ति देवव्रता से किसी एक वर्ण का पुरुष जो मख्य संस्कार या देवान् पितृन् यान्ति पितृव्रता:-भग० 9 / 25 4. संस्कार शोधक कृत्यों का अनुष्ठान न करने के कारण पतित अनुष्ठान, अभ्यास, जैसा कि 'अर्कवत' में 5. जीवन- हो गया है (जिसका उपनयन संस्कार नहीं हुआ); चर्या, आचरण, चालचलन-श० 5 / 26 6. अध्या- जातिबहिष्कृत भवत्या हि व्रात्याघमपतितपाखण्ड वेश, विधि, नियम 7. यज्ञ 8. कर्म, करतब, कार्य / परिषत्परित्राणस्नेहः गंगा० 37 2. नीच पुरुष, सम.--आचरणम् किसी प्रतिज्ञा का पालन करना, अधम पुरुष 3. विशेष नीच जाति (शुद्रपिता और --आवेशः (किसी द्विज के) बालक का यज्ञोपवीत क्षत्रिय माता की सन्तान)का पुरुष / सम०-ब्रुव जो अपने संस्कार,-उपवासः किसी प्रतिज्ञा को पूरा करने के आपको 'ब्रात्य' कहता है,-स्तोमः उपयुक्त संस्कारों का लिए अनशन करना, प्रहणम् किसी धार्मिक अनुष्ठान अनुष्ठान न करने के कारण छीने गये अधिकारों को को पूरा करने के लिए संकल्प लेना,-चर्यः ब्रह्मचारी, फिर से प्राप्त करने के लिए किया गया यज्ञ। वेदविद्यार्थी --दे० ब्रह्मचारिन, चर्या ब्रह्मचर्य का | वीi (क्रया० पर० विणाति-वीणाति) छांटना, चनना, पालन करना,---- पारणम्,- णा उपवास खोलना या तु० 'वृ०। प्रतिज्ञा की सफल समाप्ति,-भङ्गः 1. संकल्प तोड़ना / (दिवा० आ० ब्रीयते, वीण) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. प्रतिज्ञा तोड़ना,-भिक्षा उपनयन संस्कार के 2.चना जाना। . अवसर पर भिक्षा मांगना,-लोपनम् प्रतिज्ञा को बीड (दिवा० पर०वीडयति) 1. लज्जित होना, शमिन्दा तोड़ना,-वैकल्यम् किसी धार्मिक संकल्प का अधूरा रह / होना 2. फेंकना, डालना, भेज देना / जाना,-संग्रहः व्रत को दीक्षा लेना, स्नातकः वह ब्राह्मण ब्रोडः,-डा वीड्+घा+वीड़-+अ+टाप्] 1. लज्जा जिसने ब्रह्मचर्य आश्रम की अवस्था को पूरा कर लिया / बीडादिवाभ्यासगतविलिल्ये शि० 3 / 40, वीडमा है अर्थात् ब्रह्मचर्य नामक प्रथम आश्रम-दे०स्नातक / वहति मे स (शब्दः) संप्रति-रघु० 11173 व्रततिः, सी (स्त्री०) [प्र+तन्+क्ति च, पृषो० पस्य वः 2. विनय, लज्जाशीलता--शि०१०।१८ / व्रतति+डीष 1. बेल, लता -- पादाकृष्टवततिवलया-वीडित (भू० क० कृ०) [बीड्+क्त] लज्जित किया गया, संगसंजातपाशः --श० 1133, रघु० 1411 2. फैलाव, शर्मिन्दा, लज्जाशील। विस्तार। बोस् (भ्वा० पर०, चुरा० उभ० वीसति, वीसयति-ते) प्रतिन् (वि०)[व्रत+इनि] प्रतिज्ञा पालन करने वाला, भक्त, | क्षति पहुंचाना, हत्या करना / पुण्यात्मा, (पु०) 1. ब्रह्मचारा 2. सन्यासी, भक्त-श० ब्रीहिः वी+हि, किच्च] 1. चावल, जैसा कि 'बहुव्रीहि 5.9 3. जो यज्ञ का उपक्रम करता है-दे० 'यजमान'। में 2. चावल का दाना / सम०-अगारम् धान्यागार, अन दे० 'बध्न'। खत्ती, काञ्चनम् मसूर की दाल,-- राजिकम् चना, बझन् दे० 'ब्रह्मन् / कंग या कांगनी चावल / प्रश्न (तुदा० पर० वृश्चति, वकण, प्रेर० वश्चयति-ते, बुर (तुदा० पर० वुडति) 1. ढकना 2. इकट्ठा होना इच्छा. विवश्चिषति या विवक्षति) 1. काटना, काट 2. एकत्र करना, संचय करना 4. डूबना, नीचे जाना। डालना, फाड़ना, चीरना 2. घायल करना / अस (म्वा०पर०, उभ०) दे० 'वीस्।" प्राचनः [वश्च+ल्युट] 1. छोटी आरी 2. बारीक रेती / हेय (वि.) (स्त्री०-पी) [वीहि+ठक] 1. चावलों के जिसे सुनार काम में लाते हैं, लम् काटना, फाड़ना योग्य 2. चावल के साथ बोया हुआ,-यम् चावल का पायल करना। खेत, वह खेत जिसमें चावल बोये जाने चाहिए। वाणिः (स्त्री०) विज्+इन, हवा का झोंका, तूफानी | ब्ली (क्रया पर० ठिलनाति-लीनाति' विरल प्रयोग-प्रेर० हवा, झंझावात। ठलेपयति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. भरण-पोषण बातः [q+अत, पृषो. साध: समुदाय, रेवड़, समुच्चय | करना, थामे रखना, निर्वाह करना 3. छांटना, चुनना / -वपाकानां प्रातः-गंगा 29, रघु. 1294, शि• लेण (चुरा० उम० श्लेषयति-ते) देखना। For Private and Personal Use Only