________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1026 ) शुल्क (ल्यू) (चुरा० उभ० शुल्व-रब-यति, ते) देना, 11135 / सम०-अङ्ग (वि.) कृशकाय, (गी) प्रदान करना 2. भेजना, तितर बितर करना, छिपकली, - अन्नम् वह अनाज जिसमें से भूसा अलग 3. मापना / नहीं किया गया, कलहः 1. व्यर्थ या निराधार शुल्वम् (ल्बम्) [शुल्व+अच] 1. रस्सी, डोरी 2. तांबा झगड़ा 2. बनावटी झगड़ा-मद्रा०३,-वैरम निराधार 3. यज्ञीय कर्म 4. जल का सामीप्य, जल का निकट- वैर,--व्रण वह घाव जो अच्छा हो गया है, घाव का वर्ती स्थान 5. नियम, कानून, विधिसार, ल्वा, चिह्न। -ल्वी दे० ऊपर। शुष्कलः, लम् [शुष्क+ला+क] 1. सूखा मांस 2. मांस / शुधू (स्त्री०) [श्रु+यङ्लुक, द्वित्वादि+क्विप्] माता। शुष्मः [ शुष+मन्, किच्च ] 1. सूर्य 2. आग 3. वायु, शुश्रूषक (वि.) [श्रु+सन्, द्वित्वादि+पवल] सावधान, __हवा 4. पक्षी,-मम् 1. पराक्रम, सामर्थ्य 2. प्रकाश, आज्ञाकारी,-क सेवक, टहलुआ। कान्ति / शभूषणम्, -णा [श्रु+सन्+इत्वादि+ल्युट्] 1. सुनने की | शुष्मन् (पुं०) [शुष्+ङ्, मनिप्] अग्नि-शि० 14 / 22, इच्छा 2. सेवा, टहल 3. आज्ञाकारिता, कर्तव्य- -(नपुं०) 1. सामर्थ्य, पराक्रम 2. प्रकाश, कान्ति / परायणता। शुकः,-कम् [श्वि-+-कक, संप्रसारणम] 1. जो की बाल, शुश्रूषा [श्रु+सन्, द्वित्वादि+अ+टा] 1. सुनने की | दाढ़ी 2. पौधों के कड़े रोएँ, वृतं च खल शकः-भामि० इच्छा--अतएव शुश्रूषा मां मखरयति - मुद्रा०३ 1124 3. नोक, सिरा, तेज किनारा 4. सुकोमलता, 2. सेवा, टहल 3. कर्तव्यपरायणता, आज्ञाकारिता करुणा 5. एक प्रकार का विषैला कीड़ा। सम० 4. सम्मान 5. बोलना, कहना। -कोटः,-कीटकः एक प्रकार का कीड़ा जिसके शरीर शुभषु (वि.) [श्रु+सन्, द्वित्वादि+उ] 1. सुनने का पर रोएँ खड़े हों, धान्यम् कोई भी ऐसा अन्न जो इच्छुक 2. सेवा या टहल करने की इच्छा वाला बालों टूडो में से निकलता है (जौ आदि),-पिण्डिः, 3. आज्ञाकारी, सावधान / ---डी,--शिम्बा,---शिम्बिका,-शिम्बि केवांच, शुष् (दिवा० पर० शुष्यति, शुष्क) 1. सूखना, शुष्क होना, कपिकच्छु। खुश्क होना तृषा शुष्यत्यास्ये पिबति सलिलं स्वादु | शूककः [शूक+-कन्] 1. एकार का अन्न 2. सुकोमलता सुरभि -भर्तृ. 392 2. मुझ जाना, प्रेर० (शोष- करुणा। यति-ते) 1. सुखाना, मुझाना, खुश्क होना 2. कृश शकरः शू इत्यव्यक्तं शब्दं करोति- शू++अच्] करना, उद्-, परि--, 1. सुखाया जाना, सुखाना सूअर- गच्छ शूकर भद्रं ते वद सिंहो मया हतः, -भट्टि० 10 // 41, भग० 1129 2. म्लान होना, पण्डिता एवं जानन्ति सिंहशुकरयोर्बलम्---सुभा० / कुम्हलाना, मुर्माना, वि, सम् , सुखाया जाना / सम० इष्ट एक प्रकार का घास, मोथा / शुषः, शुषी [शुष्+क, शुष+डी] 1. सूखना, सुखाना | शूकलः [शूकवत् क्लेशं ददाति-शूक+ला+क] अड़ियल 2. बिल, भूरन्ध्र। घोड़ा। शुषिः [शुष् +कि] 1..सुखाना 2. रन्ध्र, छिद्र 3. साँप के | शूद्रः [शुच्+रक्, पृषो० चस्य दः, दीर्घः] चौथे वर्ण का विषले दांत का पोला भाग। पुरुष, हिन्दुओं के चार मुख्य वर्गों में से अन्तिम वर्ण शुधिर (वि०) [शुष्+किरच्] छिद्रयुक्त, रन्ध्रमय,-रः का पुरुष (कहा जाता है कि वह 'पुरुष या ब्रह्मा' के 1. आग 2. चूहा,--रम् 1. छिद्र 2. अन्तरिक्ष. हवा पैरों से उत्पन्न हुआ-पद्भधां शूद्रो अजायत --- ऋक्० या फंक से बजने वाला बाजा।। 10190 / 12, मनु० 1187, उसका मुख्य कर्तव्य तीनों शुषिरा [शुषिर+टाप्] 1. नदी 2. एक प्रकार का उच्चवर्णों की सेवा करना है-तु० मनु० 1191) / गन्धद्रव्य / सम०-आह्निकम् शूद्र का दैनिक अनुष्ठान,--उबकम् शुषिलः [शुष्+ इलच, स च कित्] हवा, वायु / शुद्र के स्पर्श से दूषित जल,-कृत्यम्,-धर्मः शूद्र का शुष्क (भू० क. कृ०) [शुष्+क्त] 1. सूखा, सुखाया कर्तव्य,-प्रियः प्याज,-प्रेष्यः तीनों उच्चवर्णों में से हुआ -शाखायां शुष्कं करिष्यामि-मृच्छ०८2. भुना किसी एक वर्ण का पुरुष जो शूद्र का सेवक हो हुआ, म्लान 3. झुरौंदार, सिकुड़न वाला, कृश 4. झूठ -भूयिष्ठ (वि.)जहाँ अधिकांश शूद्र रहते हों,-पाजक: मूठ, व्याजमुक्त, नकली कामिनः स्म कुरुते करभो- जो शूद्र के लिए यज्ञ का संचालन करता है,-वर्ग: वारि शुष्करुदितं च सूखेऽपि शि० 10169 शूद्रश्रेणी या सेवकवर्ग,--सेवनम् शूद्र की सेवा करना, 5. रिक्त, व्यर्थ, अनुपयोगी, अनुत्पादक-मालवि०२ शूद्र का सेवक बनना। 6. निराधार, निष्कारण 7. बुरा लगने वाला, कठोर | शूबकः / शूद्र+कन् ] एक राजा, मृच्छकटिक का प्रख्यात --तस्मै नाकुशलं ब्रूयान शुष्कां गिरमीरयेत् -- मनु० / प्रणेता। For Private and Personal Use Only