________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (1029 / भतारकः [ शृङ्गार+कन ] प्रेम, कम सिंदर। बिभ्रतीव शि. 11346,3150, मगधदेशशेखरीभूता भङ्गारित (वि.)[ मृङ्गार+इतच् ] 1. प्रेमाविष्ट, प्रण-1 पूष्पपूरी नाम नगरी -वश 2. किरीट, मुकुट, ____ योन्मत्त 2. सिंदूर से लाल 3. अलंकृत, सजा हुआ। 3. चोटी. भंग 4. (समास के अन्त में प्रयुक्त) किसी भृङ्गारिन् (वि.) [भङ्गार+इनि] अनारप्रिय, प्रेमा- भी श्रेणी का सर्वोत्तम या प्रमुखतम 5. गीतका ध्रुव सक्त, प्रणयोन्मस (पुं०) 1. प्रणयोग्मत्त, प्रेमी विशेष, रम् लॉग। 2. लाल 3.हाथी 4. वेशभूषा, सजावट 5. सुपारी | शेपः, शेपस् (नपुं०) शेकः, फा, शेफस् (नपुं०) का पेड़ 6. पान का बीड़ा दे० 'ताम्बूल'। [शी-पन्, शी।-असुन्, पुद, शी+फन्, यी--असुन, भृङ्गिः शृङ्गी, पृषो० ह्रस्व:] आभूषणों के लिए सोना फुक्] 1. लिंग, पुरुषको जननेन्द्रिय 2. अंडकोष (स्त्री०) सिंगी मछली। 3. पूछ। भूङ्गिकम् [शृङ्ग+ठन् ] एक प्रकार का विष, का एक | शेफालि., ली, शेफालिका (स्त्री०) [शेफाः शयन__ प्रकार का भूर्जवृक्ष / शालिनः अलयो यत्र--व० स०, शेफालि+कोष, भूषिणः [ शृङ्ग+इनन् ] भेड़ा, मॅड़ा। कन् + टाप् वा] एक प्रकार का पौधा, निर्गुण्डी, भृङ्गिनी [ शृङ्गिन्+की 1 1. गाय 2. एक प्रकार की | नोलिका, नील सिंधुवार का पौधा / मल्लिका, मोतिया। बोमुवी [शी / क्यि शेः मोहः तं मुष्णाति-+मुषु भूङ्गिन् (वि.) (स्त्री० गो)। शृङ्ग इनि] 1. सींगों | +क+की बुद्धि, समझ / वाला 2. शिखाधारी, चोटी वाला, (पुं०) 1. पहाड़ | शेल (भ्वा० पर० शेलति) 1. जाना, हिलना-जुलना 2. हाथी 3. वृक्ष 4. शिव 5. शिव के एक गण का *2. कांपना। नाम शृङ्गी भृङ्गी रिटीस्तुगडी-अमर० / शेवः [शुक्रपाते सति शेते-शी+वन् ] 1. सांप 2. लिंग शृङ्गो [शृङ्ग+कीप् | 1.आभूपणों के लिए प्रयुक्त किया 3. ऊचाई, उत्तुंगता 4. आनन्द 5. दौलत, खजाना, जाने वाला सोना 2. एक औपधि-मूल, काकड़ासिंगी, --बम् 1. लिंग 2. आनन्द / सम-धिः 1. मूल्यअतीस 3. एक प्रकार का विष 4. सिंगी मछली। वान् कोप विद्या ब्राह्मणमत्याह शेवधिस्तेऽस्मि रक्ष सम-कनकम् गहना बनाने के लिए सोना। माम् मनु० 2 / 114, सर्वे कामाः शेवधिर्जीवित भूणिः (स्त्री०) [+क्तिन्, पृषो० तस्य नः, हुस्वश्च ] | वा स्त्रीणां भर्ता धर्मदाराश्च पुंसाम्-मा० 618 अंकुश, प्रतोद। 2.कुबेर के नो कोपों में से एक / भूत (भू० क. कु०) [श्र+क्त] 1. पकाया हुआ | बलम् [शी+विच तथा भूतः सन् चलते वल+अप] 2. उवाला हुआ (पानी, दूध आदि)। माथे की भांति हरे रंग का पदार्थ जो पानी के ऊपर भूधां (म्वा. आ०-परन्त लट, लङ और लड़ में उग आता है, काई 2. एक प्रकार का पौषा। पर० भी शर्यते) अपान वाय छोड़ना, पाद मारना। | शंबलिनी [ शेवल+इनि+कीप] नदी। ii (म्वा० उभ० शति-ते) 1. आई करना, | शेवाल: दे० 'शेवल'। गीला करना 2. काट डालना। शेष (वि०) [शिप् +अच् ] वचा हुआ, वाकी, अन्य सब iii (चुरा० उभ. शर्वयति--ते) 1. प्रयत्न करना, -न्यपेधिशेषोप्यनुयायिवर्ग:-रघु०२॥४,४॥६४,१०१३०, 2. लेना, ग्रहण करना 3. अपमान करना (पाद मार मेघ० 3087, मनु० 3.47, कु० 2 / 44; इस अर्थ में कर) नकल करना, मजाक उड़ाना। प्रायः समास के अन्त में-भक्षितशेष, आलेख्यशेष, भृषुः [गृ+कु] 1. बुद्धि 2. गुदा। आदि, वः, -बम् 1. वचा हुआ, वाकी, अवशिष्ट भू (क्रवा० पर० श्रृणाति, शीर्ण) 1. फाड़ डालना, टुकड़े ऋणशेषोऽग्निशेपदच व्याधिशेषस्तथैव च। पुनश्च टुकड़े कर डालना 2. चोट पहुँचाना, क्षति ग्रस्त करना वर्धते यस्मात्तस्मान्छेपं न कारयेत् चाण.४०, अम्ब3. मार डालना, नष्ट करना कि० 14 / 13, शेष -मेघ० 28, विभागशेप कु. 5/57, बाक्यकर्मवा० (शीर्यते) 1. चिथड़े-चिथड़े होना, कुम्हलाना, शेषः --विक्रम०३ 2. छोड़ी हुई कोई बात, या भूली मुरझाना, बर्वाद होना, अब ., जबरन ले भागना हई बात, ('इतिशेषः बहधा भाष्यकारों द्वारा रचना (कर्मवा०) मुर्माना, कुम्हलाना-मूनि वा सर्वलोकस्य को पूरा करने के लिए किसी आवश्यक न्यून पद की विशीर्यत बनेऽयवा--भर्तृ. 21104 / पूर्ति करने के निमित्त प्रयुक्त होता है) 3. बचाव, शेखरः [शिम् +अरन्, पुपो०] 1. चूड़ा, कलगी, फूलों मक्ति, श्रान्ति,-यः 1. परिणाम, प्रभाव 2. अन्त, समा का गजरा, सिर पर लपेटी हुई माला-कपालि या प्ति, उपसंहार 3. मृत्यु, विनाश 4. एक विख्यात स्यादथवेन्दुशेखरम् कु० 5 / 98, 7 / 32, नवकर नाग का नाम, जिसके एक हजार फणों का होना निकरण स्पष्टवन्धकसूनस्तबकरचितमेते शेखरं / कहा जाता है, तथा जिस का वर्णन विष्णु की For Private and Personal Use Only