________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1030 ) शय्या के रूप में, या समस्त संसार को अपने.] शिव का विशेषण,-धरः कृष्ण का विशेपण,--निर्यासः सिर पर सम्भाले हुए मिलता है-कि शेषस्य शैलेयगन्धद्रव्य, धूप,-पत्रः बेल का पेड़,-भित्तिः भरव्यथा न वपुषि क्षमां न क्षिपत्येष यत्-मुद्रा० (स्त्री०) पत्थर काटने का उपकरण, टांकी, रन्ध्रम् 2 / 18, कु० 3 / 13, 6 / 68, मेघ० 110, रघु० / गुफा, कन्दरा,... शिविरम् समुद्र,-सार (वि०) पत्थर 10 / 13 5. बलराम (जो शेष का अवतार माना की तरह सबल, चट्टान की तरह दृढ़ .... कि०१०।१४। जाता है, षा फूल तथा अन्य चढ़ावा जो मूर्ति के | शलकम् | शैल+कन् ] 1. शैलेयगन्ध द्रव्य, धूप 2. शिलासामने प्रस्तुत किया जाता है) और उसके पुण्य जीत / अवशेष के रूप में पूजा करने वालों में बाँट दिया। शलादिः [शिलादस्यापत्यम्-शिलाद+इन] शिव का जाता है-श० 3, कु. ३।२२,--षम् उच्छिष्ट अन्न, गण, नन्दी। चढ़ावे का अवशेष (शेषे क्रिया विशेषण के रूप में | शैलालिन् (पुं०) [शिलालिना मुनिना प्रोक्तं नटसूत्रमधीयते प्रयक्त होता है, इसका अर्थ है-1. अन्त में, आखिरकार -शिलालि+णिनि ] अभिनेता, नर्तक / 2. अन्य विषयों में) / सम० अन्नम् जूठन,. अवस्था | शैलिक्यः [ गहितं शीलमस्त्यस्य-ठन्, शीलिक+ष्यश् ] बुढ़ापा,-भागः शेष, बाकी,-भोजनम् जूठनखाना, पाखण्डी, दम्भी, ठग। -रात्रिः रात का चौथा पहर,-शयनः,--शापिन् | शैली [शीलमेव स्वार्थे व्या डीपि यलोपः ] 1. व्याकरण (पुं०) विष्णु के विशेषण।। सूत्र की संक्षिप्त वृत्ति 2. अभिक्ति या अर्थकरण शक्षः [शिक्षां वेत्यधीते अण् वा] 1. शिक्षा अर्थात् उच्चारण का एक प्रकार.. प्रायेणाचार्याणामियं शंली यत्स्वाभि शास्त्र को पढ़ने वाला विद्यार्थी, जिसने वेदाध्ययन प्रायमपि परोपदेशमिव वर्णयन्ति-मनु० 24 पर अभी अभी आरम्भ किया है 2. नौसिखिया, नव- कुल्लू. 3. व्यवहार, काम करने का ढंग, आचरण, शिष्य / क्रम / बॉक्षिकः [ शिक्षा+ठक ] शिक्षाशास्त्र में निष्णात / शैलुषः [ शिलषस्यापत्यम्-शिलष+अण् ] 1. अभिनेता, शैक्यम् | शिक्षा+यत् 1 अधिगम, प्रवीणता। नर्तक - आः शलषापसद-वेणी० 1, एते पुरुषाः सर्वशैघ्रपम् [शीघ्र+ष्यम् ] फुर्ती, सत्वरता। मेव शैलषजनं व्याहरन्ति-तदेव, अवाप्य शैलूष त्यम् | शीत+ध्यन ] ठंडक, शीतलता, जमाब-शैत्यं इवष भूमिकाम् शि० 1169 2. वादित्र-कुशल हि यत्सा प्रकृतिलस्य-रघु० 5 / 64, कु० 1134 / -बैण्डबाजे का नायक, संगीत मण्डली का प्रधान शथिल्यम् [शिथिल+व्या ] 1. ढीलापन, नरसी | 3. संगीत सभा में तालधारक 4. धूर्त 5. बेल का पेड़। 2. मन्थरता 3. दीर्घसूत्रता, अनवधानता 4. कमजोरी, शैलूषिकः [ शैलूषं तद्वत्तिम् अन्वेष्टा-ठक ] जो अभिनेता ___भीरता। का व्यवसाय करता हो। शौनेयः [शिनि ढक् ] सात्यकि का नाम / शैलेय (वि.) (स्त्री०-पी) [शिलायां भवः, शिला शैन्याः (पुं०, व०व०) [शिनि+या ] शिनि की | +ढक्] 1. पहाड़ी 2. चट्टानों से उत्पन्न 3. पत्थर / सन्तान, शिनि के वंशज / की तरह कड़ा, पथरीला,-य: 1. सिंह 2. भ्रमर, यम् न्य दे० 'शैव्य'। 1. पर्वत गंधद्रव्य, धूप,---शेलेयगन्धीनि शिलातलानि शैलः [शिला+अण् ] 1. पर्वत, पहाड़- शैले शैले न ---रघु०६।५१, कु. 1155 2. सुगंधित राल 3. सेंघा माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे- चाण० 55, शैली नमक। मलयदद्रौ---रघु० 4 / 51 2. चट्टान, बड़ा भारी शल्य (वि.) (स्त्री०-ल्या) [शिला+ष्या] पथरीला, पत्थर,-लम् 1. सुहागा, धूप, गुग्गुल 2. शिलाजीत -ल्यम् चट्टान जैसी कठोरता, कड़ापन / 3. एक प्रकार का अंजन / सम०-- अंशः एक देश | शैव (वि.) (स्त्री०-वी) [शिवो देवताऽस्य-अण] का नाम,--अग्रम् पहाड़ की चोटी,- अटः 1. पहाड़ी, शिवसंबधी,-व: 1. हिन्दुओं के तीन मुख्य संप्रदायों असभ्य 2. किसी देवमूर्ति का पुजारी 3. सिंह में से एक 2. शैव संप्रदाय का पुरुष,-वम् अठारह 4. स्फटिक,- अधिपः,-अधिराजः, - इन्द्रः,-पतिः, पुराणों में से एक पुराण का नाम / --राजः हिमालय पर्वत के विशेषण, आख्यम् शैलेय- Jशवलः[ शी+वलच ] एक प्रकार का जलीय पौधा, पद्मगन्ध द्रव्य, धूप,----कटकः पहाड़ की ढलान,-गन्धम् काष्ठ, सेवार, काई, मोथा-सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि एक प्रकार का चन्दन, जम् 1. शंलयगन्ध द्रव्य, | रम्यम् - श० ११२०,-लम् एक प्रकार की सुगंधित घूप 2. शिलाजीत,--जा, तनया,-पुत्री,-सुता | लकड़ी। पार्वती के विशेषण-अवाप्तः प्रागल्भ्यं परिणतरुचः शवलिनी शेवल+इनि+डीए नदी / शलतनये-काव्य०१०, कू० ३१६८,-धन्वन् (पुं०) शवाल दे० 'शवल'। For Private and Personal Use Only