________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर बढ़ाया गया, हनी एक प्रकार का जी, हस्तः / 52, कि० 15542, रघु० 13126 3. भवन की भालाधारी। चोटी, बर्जी 4. उत्तुंगता, ऊंचाई 5. प्रभुता, स्वामित्व, सूखक: [शूल+कन] अड़ियल घोड़ा। सर्वोपरिता, प्रमुखता शृङ्गस दृप्तविनयाधिकृतः परेभुता [शूल+टाप्] 1. अपराधियों को सूली देने की स्थूणा षामत्यच्छितं न ममषे न तु दीर्घमायः रघु० 9 / 62, 2.बेश्या / (यहाँ शब्द का अर्थ 'सींग' भी है) 6. चद्रचूड़ा, चाँद शलाहतम् (शूल+ ++स) भुना हुमा मांस। की नोक 7. चोटी, नोक, अग्रभाग 8. (भैस आदि लिक (वि.) [शूल+ठन्] 1. शूलधारी 2. सलाख पर का) सींग जो फंक मार कर बजाया जाता है भूना हुआ, क खरगोश, कम् भुना हुआ मांस / 1. पिचकारी वर्णोदकः काञ्चन शृङ्गमुक्तः-रघु० शूलिन् (वि०) [शूलमस्त्यस्य इनि] 1. बर्डीपारी दुर्जनो 1670 10. कामोद्रेक, अभिलाषोदय 11. निशान, लवणः शूली-रषु०१५।५ 2. उदरशूल से पीड़ित चिह्न 12. कमल / सम० अन्तरम् (गौ आदि (पं.) 1. बर्डीपारी 2. खरगोश 3. शिव कुर्वन् पशुओं के सींगों का मध्यवर्ती स्थान, उज्जयः ऊंची सन्ध्याबलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीयाम् --मेष० 36, चोटी, जा बाण (जम्) अगर की लकड़ी,-प्रहारिन् कु. 3157 / (वि०) सींग से मारने वाला, प्रिय: शिव का विशेशूलिनः [शूल+इनन्] बरगद का पेड़। षण, मोहिन् (पुं०) चम्पक वृक्ष,-वेरम् 1.वर्तमान शुल्प (वि.) [ शूल+यत् ] 1. सलाख पर भूना हुआ मिर्जापुर के निकट गंगा के किनारे बसा हुआ एक -~-श.२ 2. सूली पाने के योग्य, स्पम् भुना हुआ | नगर-उत्तर० 121 2. अदरक / मांस। | भरकः,-कम् [शृङ्ग-कन 11. सींग 2. चन्द्रमा की शूप (म्बा० पर० शूषति) 1. पैदा करना, उत्पन्न करना | नोक, चन्द्रचूड़ा 3. कोई भी नोकीली बस्तु 4. पिच2. जन्म देना। कारी रत्न. 1 / भकाल:-शृगाल:] गीदड़-दे० 'शृगाल'। भगवत् (वि.) [ शृङ्ग+मतुप् ] चोटीवाला- (पुं०) भगालः [असूज लाति-ला+क, पूषो०] 1. गीदड़ 2. ठग, पहार। पूर्त, उचक्का 3. भीरु 4. दुष्ट प्रकृति, कदभाषी | भूनाटः, श्रृंगाटकः [शृङ्गं प्रधान्यम् अटति-शृङ्ग+अट कृष्ण / सम...केलि: एक प्रकार का बेर,-जम्युः, +अण् ] 1. एक पहाड़ 2. एक पोषा-कम्,-कम् ---: (स्त्री०) एक प्रकार की ककड़ी, खीरा,-योनिः चौराहा / गीदड़ की योनि में जन्म लेना, -रूपः शिव का महारः [शृङ्ग कामोद्रेकमन्छत्यनेन +अण् प्रणयरस, विशेषण। कामोन्माद, रतिरस (काव्यरचनाओं में वर्णित आठ अगालिका, भूगाली [ शृगाल+कीष, पक्षे कन+टाप या नौ प्रकार के रसों में सबसे पहला रस, यह दो हस्वः] 1. गीदड़ी 2. लोमड़ी 3. पलायन, प्रत्यावर्तन / प्रकार का है-संभोग शृंगार और विप्रलंभ श्रृंगार) माला-ला,-लम् [शृङ्गात् प्राधान्यात् स्वल्पते भनेन, ---शृङ्गारः सखि मतिमानिव मधो मुग्धौ हरिः क्रीडति पृषो.] 1. लोहे को जजीर, बेड़ी 2. जजीर, --गीत०१, (इसकी परिभाषा यह है-पुंसः स्त्रियां हपकड़ी (आलं. भी)-भट्टि० 9 / 90, लीलाकटाक्ष- स्त्रिया: पंसि संभोग प्रति या स्पृहा / स शृङ्गार इति मालामालाभिः--वश०, संसारवासनाबद्ध शृहलाम् ख्यातः क्रीडारत्यादिकारकः / / दे. सा.द० 210 ----गीत०३३. हाथी के पैरों को बांधने की जजीर भी) 2. प्रेम, प्रणयोन्माद संभोगेच्छा विक्रम 119 -स्तम्बरमा मुखरमहलकर्षिणस्ते-रषु० 5 / 72, कि. 3. शृङ्गारिक समालापों के उपयुक्त वेश, ललित 31 4. कमर की पेटी, करधनी 5. नापने की वेशभूषा 4. मैथुन, संभोग 5. हाथी के शरीर पर अम्जोर 6. अजीर, श्रेणी, परम्परा / सम-धमकम् / बनाये गए सिंदूर के निशान 6. चिह्न, रम् 1. लांग यमक अलार का एक भेद - दे०कि. 1542 / 2. सिंदूर 3. अदरक 4. शरीर या वस्त्रों के लिए भालकः [हल+कन्] 1. अजीर 2. ऊंट। सुगन्धित पूर्ण 5. काला अगर / सम-बेष्टा कामाभाकित (वि०) [शृखला+इत] जजीर में जकड़ा / नुरक्ति का संकेत --रघु० 612, --भाषितम् प्रेमाहुआ, बेड़ी पड़ा हुआ, बंधा हुमा। लाप, प्रणयकथा,-भूषणम् सिंदूर,-योनिः कामदेव का श्रजम् [+गनु, पृषो. मुम् ह्रस्वश्च ] 1. सींग-वन्य- विशेषण,-रसः साहित्यशास्त्र में वर्णित श्रृंगाररस, रिवानी महिषस्तवम्भः शृङ्गाहतं क्रोशति दीधिकाणाम् प्रणयरस,-विधिः-शःप्रेमालापों के उपयुक्त वेश-०१६।१३, माहन्तां महिषा निपानसलिलं शृङ्ग- भूषा (जिसे पहन कर प्रेमी अपने प्रिय से मिलता है), मस्तारितम्-० 216 2. पहाड़ की चोटी अद्रेः -सहायः प्रेमव्यापार में सहायक व्यक्ति, नर्म हरति पवनः किं स्विदित्युन्मुखीभिः-मेष. 14, | सचिव / For Private and Personal Use Only