________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाया। ( 999 ) संयुक्त नाम का उल्लेख)। सम०-- उदकम् शंख के प्रति प्रेम प्रदर्शित करता है परन्तु मन किसी दूसरी में डाला हुआ पानी, कारः, कारकः शंखकार नाम स्त्री में रमाया रहता है)-ध्रुवमस्मि शठः शचिस्मिते की एक वर्णसंकर जाति, ... चरी, चर्ची (मस्तक पर विदितः कैतववत्सलस्तव-रघु० 8 / 49, 19 / 31, लगाया गया) चन्दन का तिलक -चूर्णम् शंख को मालवि० 3 / 19, सा० द० 'शठ' की इस प्रकार परिपीस कर बनाया गया चूरा, बावः, द्रावकः एक भाषा देता है-शठोऽयमेकत्र बद्धभावो यः दर्शितबहिप्रकार का घोल जिसमें शंख भी घुल जाता है, ध्मः रनुरागो विप्रियमन्यत्र गूढमाचरति-७४ 3. मूह, -मा (पु०) शंख बजाने वाला, ध्वनिः शंख की बुद्ध 4. मध्यस्थ, बिवाचक 5. धतूरे का पौवा आवाज (कभी-कभी, परन्तु प्रायः आतंक या निराशा 6. आलसी पुरुष, सुस्त व्यक्ति, -ठम् 1. लोहा की द्योतक ध्वनि), प्रस्थः चन्द्रमा का कलंक,-भूत 2. केसर, जाफरान / (4) विष्णु का विशेषण, मुखः घड़ियाल, मगर, | शणम् | शण् अच् ] सन, पटसन / सम०--सूत्रम् 1. सन स्वनः शंखध्वनि / की बनी डोरी या रस्सी 2. सन का बना जाल शतकः, कम् [शंख-कन् ] 1. शंख 2. कनपटी की हड्डी, | 3. रस्सियाँ, डोरियाँ। कः (शङ्ख का बना) कड़ा-शि० 13141 / शण्डः [ शण्ड ---अच् 1. नपुंसक, हिजड़ा 2. सांड़ 3. छोड़ा शङ्कनकः, (-ख:) एक छोटा शंख या घोंघा। हुआ साँड़,-उम् संग्रह, समुच्चय--तु० षंड या शजिन् (पुं०) [शङ्ख + इनि] 1. समुद्र 2. विष्णु 3. शंख | खण्ड की। बजाने वाला। शण्ठः [शाम्यति ग्राम्यधर्मात-शम् --ढ ] 1. हिजड़ा, शलिनी शनि डीप्] काम शास्त्र के लेखकों के अनु- नपुंसक 2. अन्तःपुर में रहने वाला टहलुआ, पुरुषसेवक सार स्त्रियों के किये गये चार भेदों में से एक, रति- (हिजड़ों या बधिया किये गये पुरुषों में से चुना हुआ) मञ्जरी में लिखा है: दीर्घातिदीर्घनयना वरसुन्दरी 3. सांड़ 4. छोड़ा हुआ साँड़ 5. पागल आदमी। या कामोपभोगरसिका गुणशीलयुक्ता / रेखात्रयेण च शतम दिश दशतः परिमाणमस्य--दशन +त, श आदेश: विभपितकण्ठदेशा संभोगकेलिरसिका किल शङ्गिनीसा नि० साघु:] सौ की संख्या—निःस्वो वष्टि शतं 6, तु० चित्रिणी, हस्तिनी और पद्मिनी भी -शान्ति०२।६, शतमेकोऽपि संधसे प्रकारस्थो धनुर्धरः 2. प्रेतात्मा, अप्सरा, परी। - पंच०११२२९ ('शत' शब्द किसी भी लिंग के बहुशच (भ्वा० आ० शचते) बोलना, कहना, बतलाना। वचनांत संज्ञा शब्दों के साथ एक वचन में ही प्रयुक्त शचिः,-ची (स्त्री०) [शच+इन्, शचि+डी] इन्द्र की होता है-शतं नराः, शतं गावः, या शतं गृहाणि, इस पत्नी ... रघु० 3 / 13, 23 / सम-पतिः,-भर्तृ दशा में यह संख्यावाचक विशेषण माना जाता है, (पुं०) इन्द्र के विशेषण / परन्तु कभी कभी द्विवचन तथा बहुवचन में भी प्रयुक्त शञ्च (म्वा० आ० शञ्चते) जाना, हिलना-जुलना। होता है ... द्वे शते, दश शतानि आदि / संब० के संज्ञाशट् (म्वा० पर० शटति) 1. बीमार होना 2. बांटना, शब्द के साथ भी प्रयुक्त होता है--गवां शतम्, वियुक्त करना। समास के अन्त में यह अपरिवर्तित रूप में रह सकता शट (वि०) [ शट+अच् ] खट्टा, अम्ल, कसैला। है. भव भर्ता शरच्छतम्, या बदल कर 'शती' हो शटा [ शट-+टाप् ] संन्यासी के उलझे बाल-तु० जटा। जाता है यथा गोवर्धनाचार्य की कृति 'आर्यासप्तशती') शटिः (स्त्री०) [शट-इन् ] कचूर का पौधा, आमा 2. कोई भी बड़ी संख्या / सम० अक्षी 1. राषि, हल्दी / 2. दुर्गादेवी, अङ्गः गाड़ी, छकड़ा विशेषतः युवरथ, शठ् / (भ्वा० पर० शठति) 1. धोखा देना, ठगना, जाल- -- मनीकः बूढ़ा आदमी, --अरम्, आरम् इन्द्र का साजी करना 2. चोट मारना, मार डालना 3. कष्ट बच्च, - आनकम् श्मशान, कबरिस्तान, आमन्दः उठाना / 1. ब्रह्मा 2. विष्णु, कृष्ण 3. विष्णु का वाहन / / (चुरा० पर० शाठयति) 1. समाप्त करना 4. गौतम और अहिल्या का पुत्र, जनकराज का कुल2. असमाप्त छोड़ देना 3. जाना, हिलना-जुलना पुरोहित- उत्तर० 1116, आयुस् (वि०) सौ वर्ष 4. आलसी या सूस्त होना 5. धोखा देना, ठंगना तक जीवित रहने वाला या टिकने वाला, आवर्तः, (इस अर्थ में 'गठयति')। --आवतिन् (पुं०) विष्णु, ईशः 1. सौ के ऊपर शठ (वि.) [ग | अन् ] 1. चालाक, घोग्वेबाज, जाल- शासन करने वाला, 2. सौ गाँव का शासक मनु० साज, बेईमान, कपटी 2. दुष्ट, दुर्वत, ठः 1. बद- 7 / 115, -कुम्भः एक पहाड़ का नाम (कहते हैं कि माश, ठग, धूर्त, मक्कार मनु० 4 / 30, भग० यहाँ पर सोना पाया जाता है), ..भम् सोना,-कृत्यः 18 / 28 2. झूठा या धोखेबाज प्रेमी (जो एक स्त्री / (अव्य०) सौ गुणा, -कोटि (वि.) सौ धार वाला, For Private and Personal Use Only