________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिलाष:-कि० 3 / 13, -आत्मक (वि०) सांसा- / विषालु (वि०) [ विष+आलुच ) विषला, जहरीला। रिक पदार्थों से युक्त, आसक्त,- निरत (वि०) | विषु. (अव्य०) [ विष् +कु] 1. दो समान भागों में, विषयवासनाओं में लिप्त, विषयी, विलासी, इन्द्रिया- समान रूप से 2. भिन्नतापूर्वक, विविध प्रकार से सक्त,--आसक्ति उपसेवा, निरतिः (स्त्री०), 3. समान, सदृश / ---प्रसंगः भोगविलास, कामासक्ति, प्रामः उन पदार्थों विष्पम् [विषु+पा+क] दो स्थलबिन्दु जहाँ पर सूर्य का समह जो ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाने जाते हैं, सुखम् विषुवत् रेखा को पार करता है। इन्द्रियासक्ति, विषयोपभोग / विषुवम् [विषु+वा+क ] मेषराशि या तुलाराशि का विषयायिन् (पं)। विषयान अयते प्राप्नोति--विषय+ प्रथम बिन्दु जिसमें सूर्य शारदीय या वासन्तिक विषुव अय-+णिनि ] 1. इन्द्रियसुखों में लिप्त, भोगविलासी में प्रविष्ट होता है, विषुवीय बिन्दु। सम०-छाया 2. संसार के कार्यों में लिप्त मनष्य 3. कामदेव 4. राजा मध्याह्नकाल में धूपधड़ी के शंकु की छाया,-विनम् 5. ज्ञानेन्द्रिय 6. भौतिकवादी। विषुवीय दिन, रेखा विषुवीय रेखा,-संकान्तिः विषयिन् (वि.) [विषय+इनि] इन्द्रियसुखसंबंधी, (स्त्री०) सूर्य का विषुवीय मार्ग / शारीरिक, पुं० 1. सांसारिक पुरुष, विषयी, दुनिया- विषूचिका [वि+सूच्- वुल+टाप्, षत्वम्, इत्वम् ] दार आदमी 2. राजा 3. कामदेव 4. भोगविलासी, लंपट ...पंच० 13146, श० 5, नपुं० 1. ज्ञानेन्द्रिय | विष्क (चुरा० उभ० विष्कयति / ते) 1. वध करना, चोट 2. ज्ञान / पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना (इस अर्थ में केवल आत्मविषल: (पुं०) जहर, हलाहल। नेपदी) 2. देखना, प्रत्यक्ष करना / विवाह (वि.) वि--सह +यत ] 1. सहन करने के | विष्कन्दः / वि+स्कन्द+अच, षत्वम् ] 1. तितरवितर योग्य, जो बर्दाश्त किया जा सके अविषाव्यसनेन | होना 2. जाना, गमन / धूमिताम् .. कु. 4 / 30, रघु०६।४७ 2. जो बसाया जा | विष्कम्भः [वि+स्कभ् +अच् ] 1. अवरोष, रुकावट, सके जो निर्धारित किया जा सके मनु० 8 / 265, बाधा 2. दरवाजे की सांकल, चटकनी 3. घर में संभष, शक्य / लगा शहतीर 4. धूणी, खंभ 5. वृक्ष 6. (नाटकों में) विषा [ विष् - अच्+टाप् ] 1. विष्ठा, मल 2. प्रतिभा, नाटकों के अंकों के मध्य में मध्यरंग का दृश्य जो दो समझ। मध्यम या निम्नदर्जे के पात्रों द्वारा प्रदर्शित किया विषाणः,--णम्, गो [विष+कानच, स्त्रियां ही ] जाता है, तथा जिसमें श्रोताओं के सामने अंकों के 1. सींग साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुन्छ- अन्तराल में तथा बाद में होने वाली घटनाओं को विषाणहीन:--- भत० 2 / 12, कदाचिदपि पर्यटन संक्षेप में कह कर नाटक की कथावस्तु के बवान्तर शशविषाणमासादयेत् ---215 2. हाथी या सूअर के भागों का नाटक की मख्य कथा से संबन्ध स्थापित दांत-तप्तानासुपदधिरे विषाणभिन्नाः प्रह्लादं सुरक- कर दिया जाता है। साहित्यदर्पण में इसकी निम्नां रिणां धनाःक्षरन्त: / कि० 7 / 13, शि० 160 / कित परिभाषा की गई है वृत्तवतिष्यमाणाना का विषाणिन् (वि.) [ विषाण--इनि ] सींगों वाला या दांतों शाना निदर्शकः / संक्षिप्तार्थस्तु विष्कमः पादाकस्य बाला,--पुं० 1. वह जानवर जिसके सींग हों या दांत दर्शितः। मध्येन मध्यमाभ्यां वा पात्राभ्यां संप्रयोजितः / बाहर निकले हों 2. हाथी शि० 4 / 63, 12177 शुद्धः स्यात् स तु संकीणों नीचमध्यमकल्पितः-३०८ 3. साँड़। 7. वृत्त का ध्यास 8. योगियों की विशेष मद्रा विषादः [ वि+सद-+घश 1 1. खिन्नता, उदासी, 9. विस्तार, लम्बाई। उत्साहहीनता, रंज, शोक मद्वाणि मा कुरु विषादम् विष्कभक दे० विष्कंभ। ... भामि० 4 / 41 विषादे कर्तव्ये विदधति जडाः | विष्कभित (वि०) [विष्कभ+इतन् ] बाधायुक्त, प्रत्युत मुदम् भर्तृ० 3 / 35, रघु० 854 2. निराशा, अवरुद्ध / हताशा, नैराश्य, विषादलप्तप्रतिपत्तिसैन्यम्-रघ. विष्कभिन (50) [विष्कम +इनि] द्वार की अर्गला, 2140 (विषादश्चेतसो भंग उपायाभावनाशयोः) / सांकल या चटखनी / 3. थकान, म्लान अवस्था,- मा० 2 / 5 4. मन्दता, विकिरः [वि++क, सुट, षत्वम् ] 1. इधर उपर जइता, संज्ञाहीनता / बखेरना, फाड़ डालना 2. मुर्गा 3. पक्षी, तीतर की विवादिन् (वि०) [विषाद- इनि ] 1. खिन्न, उद्विग्न जाति का पक्षी-छायापस्किरमाणविष्किरमुखव्याकृष्ट2. उदास, विषण। कीटत्वचः उत्तर० / 9 / विधारः [विष-++अच् ] साँप / विष्टपः, पम् [ विष् +कपन, तु] संसार, भुवन-कुं० 121 For Private and Personal Use Only