________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यंशकः विनासाकतिक शक्त किया जाने ( 983 ) 3. पति 4. साँड़ 5. रथवान् 6. खींचने वाला घोड़ा।। 3. किसी कार्य में साभिप्राय व्यस्त (अधि० या करण. वोटः (पुं०) डंठल, वृन्त / के साथ अथवा समास में)-रषु० 17 / 27, महावी. वोद (वि.) [अवसिक्तमुदकं यत्र-प्रा० ब०, उदकस्य उदा- 213, 4 / 28, कु. 72, उत्तर० 1123, भाषि० देशः, भागुरिमते अकार लोपः-] तर, गीला, आर्द्र / 1 / 123, शि० 2179 / वोदालः [वोदः आर्द्रः सन् अलति -वोद+अल+अच्] व्यङ्ग (वि.) [विगतं वा अङ्गं यस्य -प्रा.व.] 1. बेहजर्मन-मछली। हीन 2. अङ्गहीन, विरूप, विकलाङ्ग, अपाहण, वोर (ल) कः [अवनतं लेखन काले उरो यस्य-प्रा० ब०, लुजा,-ग: 1. लुजा 2. मेंढक 3. गाल पर पड़े कप, अवस्य अकारलोपः, पृषो० सलोपः, पक्षे रलयोर- काले धब्बे / भेदः] लिपिकार, लेखक। व्यगुलम् (नपुं०) लम्बाई का अत्यन्त छोटा माप, अंगुल वोरटः [वो इति रटन्ति भुङ्गा यत्र- वोरट्+क] कुंद का का 60 वां अंश। एक भेद / व्यङ्गय (वि.) [वि+अ +ण्यत्] 1. व्यञ्जना शक्ति द्वारा ध्वनित, परोक्षसङ्केत द्वारा सूचित 2.मानित वोल्लाहः (पुं०) एक प्रकार का घोड़ा। (अर्थ),-यम् उपलक्षित अर्थ, व्यनपोक्ति, परोक्ष वोर (वि०) दे० 'बौद्ध'। सङ्कत (विप० वाच्य 'मुख्यार्थ' और लक्ष्य गौण या वौषट् (अव्य०)[उह्यतेऽनेन हविः -वह +डोषट) पितरों या देवों को आहुति देते समय प्रयक्त किया जाने ध्वनिर्बुधैः कथितः-काव्य० 1 / वाला उद्गार या सांकेतिक शब्द / व्यच् (तुदा० पर० विचति, कर्मवा० वियते) ठगना, व्यशकः [विशिष्टः अंशो यस्य-प्रा० ब०, कप्] पहाड़।। धोखा देना, चाल चलना।। व्यंशुकः (वि०) [विगतम् अंशुकं यस्य-प्रा० ब०] वस्त्र- | व्यजः [वि+अज्+घ ] पंखा / हीन, विवस्त्र, नंगा-कि० 9 / 24 / व्यजनम् [वि+अ+ ल्युट] पंखा,---निवतिव्यजनम-हि. व्यंसकः [वि+अंस्+ण्वुल्] धूर्त, ठग, जैसा कि 'मयूर | 2 / 165, रघु० 8 / 40, 1052 तु. 'बालव्यजन'। व्यंसक' 'बंचन मोर'--. शठमयूर'। व्य ञ्जक (वि.) (स्त्री० - जिका) [वि+अ +बुल्] व्यंसनम् [वि+अंस+ल्यट] ठगना, धोखा देना। 1. स्पष्ट करने वाला, सखेतक, बतलाने वाला, प्रकट व्यक्त (भू० क००)[वि-अज+क्त] 1. प्रकटीकृत, प्रदर्शित 2. विकसित, रचित-कु० 2 / 11 3. स्पष्ट, वाला (शब्द), (विप. वाचक और लाक्षणिक), प्रकट, साफ, सरल, भिन्न, विशद रूप से विद्यमान -क: 1. नाटकीय हावभाव, आन्तरिक भावों को उप4. विशिष्ट, विदित, विख्यात 5. अकेला मनुष्य युक्त हावभाव द्वारा प्रकट करने वाला बाह्य सरूत 6. बुद्धिमान, विद्वान,-क्तम् (अव्य०) स्पष्ट, स्पष्ट 2. सरूत, प्रतीक। रूप से, साफ़तौर पर, निश्चित रूप से। सम० व्यञ्जनम् [वि+अ +ल्यूट] 1. स्पष्ट करना, सचेत -गणितम् अंकगणित, दृष्टार्थः वह साथी जिसने करना, प्रकट करना 2. चिह्न, निशान, समेत घटना अपनी आँखों से देखी है, गवाह,-राशिः ज्ञात 3. स्मारक - मा० 94. छपवेश, परिषान-शि. अंक, रूपः विष्णु का विशेषण,-विक्रम (वि०) शक्ति 2156, तपस्विव्यञ्जनोपेताः - आदि 5. व्यञ्जन प्रदर्शित करने वाला अक्षर 6. लिङ्गद्योतक चिल्ल अर्थात् स्त्री या पुरुष का व्यक्तिः (स्त्री०) [वि+अ +क्तिन] 1. प्रकटीकरण, परिचायक अङ्ग 7. अधिकार-चिह्न, बिल्ला 8. वय दृश्यमानता, विशद प्रत्यक्षज्ञान,- राज्ञः समक्षमेवाघरो- स्कता का चिह्न 9. दाढ़ी 10. अङ्ग, सदस्य 11. मिर्च तरव्यक्तिर्भविष्यति-मालवि. 1. स्नेहव्यक्ति:-मेघ. मसाला, चटनी, सिमाई हुई वस्तु-नै०१६।१०४ 12 2. दृश्यमान सूरत, स्पष्टता, विशदता . श० 78 12. तीनों शब्दशक्तियों में अन्तिम जिससे अर्थ उप3. भेद, विवेचन,-तं सन्तः श्रोतुमर्हन्ति सदसष्यक्ति- लक्षित या ध्वनित होता है, दे० अञ्जन, ना (8) हेतवः-रघु० 1110 4. वास्तविक रूप या प्रकृति, (इस अर्थ में यह व्यञ्जना' भी लिखा जाता है)। सच्चरित्र, न हि ते भगवान् व्यक्ति विदुर्देवा न दानवाः सम० उदय (वि.) वह जिसके पश्चात् व्यञ्जन -भग० 10 // 14 5. वैयक्तिकता (विप० जाति) भग० अक्षर आता हो,-सन्धिः व्यञ्जन वर्णों का संयोग 8118 6. अकेला मनुष्य, पुरुष 7. (व्या० में) लिंग या संश्लेष। 8. विभक्ति में प्रयुक्त प्रत्यय / / व्यञ्जना दे० ऊ. 'व्यञ्जन' (12) / व्यग्र ( बि.) [ विरुद्धम् अगति ...वि+अग्+रक ] व्यजित (भू.क.कृ.) [वि+अ +क्त] 1. साफ 1. व्याकुल, विस्मित, उचाट 2. आतङ्कित, भयभीत | किया गया, प्रकट किया गया, सख्त किया गया For Private and Personal Use Only