________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला, विरोध करने वाला,-क: 1. एक प्रकार का / 3. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य, होवेर, रिः, -री घोड़ा 2. सामान्य घोड़ा 3. घोड़े का कदम, कम् (स्त्री०) 1. हाथी को बांधने का तस्मा वारी धारैः 1. पीड़ा होने का स्थान 2. एक प्रकार का सुगन्ध सस्मरे वारणानाम् शि० 18156, रघु० 5 / 45 द्रव्य, स्लीवर / 2. हाथो को वांधने का रस्सा 3. हाथियों को पकड़ने वारकिन् (पुं०) [वारक+इनि | 1. विरोधी, शत्र का गड्ढा या पिंजरा 1. बंदी, कैदी 5. जलपात्र 2. समुद्र 3. शुभ लक्षणों से युक्त एक घोड़ा 4. वह 6. सरस्वती का नाम / सम०-ईशः समुद्र, उद्धवम् संन्यासी जो केवल पते खाकर रहता है। कमल, ओक: जोक, कर्परः एक प्रकार की मछली, वारंकः (पुं०) पक्षी। इलीश, कुब्जकः सिंघाड़ा, शृंगाटक का पौधा-क्रिमीः वारंग: [ व अंगच् णित् | किसी चाकू का दस्ता या जाक,.-- चत्वरः जलाशय, --चर (वि०) जलचर (-2) तलवार की मठ। 1. मछली 2. कोई जलजन्तु ज (वि०) जल में वारटम् | वृ+णि+अटच् | 1. खेत 2. खेतों का समूह, उत्पन्न, (जः) 1. कमल - शि०१५।७२ 2. कोई भी ....--टा हंसिनी। द्विकोपीय (जम) 1. कमल--शि० 4 / 66 2. एक वारण (वि.) (स्त्री० ..-णी) [ वृ-णिच् :-ल्युट् ] प्रकार का नमक 3. एक प्रकार का पौधा, गौरसुवर्ण हटाने वाला, मुकाबला करने वाला, विरोध करने 4. लौंग, तस्करः वादल, प्रा छतरी, व बादल वाला, णम हटाना, रोकना, अड़चन डालना ---न --वितर वारिद वारि दवातुरे.-सुभा०, भामि० 1 / 30. भवनि बिस्तारण वारणानाम् भत० 117 (दम्) एक प्रकार का गन्धद्रव्य,-द्रः चातक पक्षी, 2. रुकावट, विघ्न. मकावला, विरोध 4. प्रतिरक्षा, धरः वादल-नववारिधरोदयादहोभिर्भवितव्यं च संरक्षा, प्ररक्षा, ---ण: 1 हाथी--न भवति विसतंतूर्वा- निरातपत्वरम्यः---विक्रम० 4 / 3, धारा बृष्टि की रणं वारणानाम् ---भत० 2 / 17, कु. 5170, रघु० वोछार,-धिः समुद्र-वारिधिसुतामणां दिदक्षुः शतैः 12 / 93, शि० 18156 2. कवच, जिगहबरूतर / सम० -गीत० 12, * नायः 1. समुद्र 2. वरुण का विशेषण .....बुषा,-- सा, वल्लभा केले का वृक्ष,-साह्वयम् 3. बादल,--निधिः समुद्र,--पथः,-यम् 'समुद्र यात्रा' हस्तिनापुर का नाम / जलयात्रा,--प्रवाहः झरना, जलप्रताप, मसिः,-मुच, वारणसी दे० 'वाराणसी। -र: बादल, यंत्रम् जलघटिका, रहट / मालबि. वारणावत (पुं०, नपुं०) एक नगर का नाम / २।१३,-रयः डोंगी, नाव, घड़नई,-राशिः 1. समुद्र वारत्रम् [ वरत्रा+-अण् | चमड़े का तम्मा / सरोवर, - हम कमल,--वासः कलाल, शराब बेचने वारंवारम् (अव्य.) [ वृणमुल, दित्यम् ] प्रायः, बहुधा, वाला,-याहः, वाहनः बादल, * शः विष्णु का नाम, बार बार, फिर फिर वारंवार तिरयति दृशोरुद्गम संभवः 1. लौंग 2. अंजनविशेप 3. खस की सुग न्धित जड़, उशीर। वाप्यपूरः मा०२३५ / वारला [वार---ला+क+टाप् ] 1. बरं, भिड़ 2. हंसिनी, वारित (भू० क० कृ०) [वृ+णिच् -।-क्त] 1. हटाया तु० 'वरदा'। हुआ, मना किया हुआ, रोका हुआ 2. प्रतिरक्षित, वाराणसी | बरणा च असी च तयोः नद्योरदरे भवा इत्यर्थे प्ररक्षित। अण् + डीप, पृषो० साधु: ] वनारस का पावन वारा द० (स्त्रा०-वारि) / नगर। वारीटः [वारी+इट-क हाथी। वारांनिधि: [ वारी जलानां निधिः, षष्ट्यलुक् स०] वादः वारयति रिपून व+णि+उण] विजयकुंजर, जंगी समुद्र। हाथी। वाराह (वि.) (स्त्री० ही) [ वराह+अण् ] शूकर से | वारठः (पु०) अस्थी, (वह टिकटी जिस पर शव रख कर सम्बद्ध, मुद्रा० 8 / 19, याज्ञ. 1 / 259, -ह: 1. श्मशानभूमि में ले जाया जाता है)। शूकर 2. एक प्रकार का वृक्ष / सम० कल्पः वर्त वाइण (वि.) (स्त्री०-पी) वरुणस्येदम्-अण्] 1. वरुणमान कल्प (जिसमें हम रह रहे हैं) का नाम, संबंधी 2. वरुण को सादर समर्पित 3. बरुण को दिया पुराणम् अठारह पुराणों में से एक / हुआ, --णः भारतवर्ष के नी प्रभागों या खण्डों में से वाराही [ वाराह+डीप् 1. शूकरी 2. पृथ्वी 3. 'वराह' एक, ---णम् पानी। के रूप में विष्णु भगवान की शक्ति 4. माप / सम. | वाणिः वरुण+इ] 1. अगस्त्य मुनि 2. भग। कंदः महाकंद, मेंठी। वारणी यारुण+डी | 1. पश्चिम दिशा (वरुण के द्वारा वारि (नपुं०) [वृ+इञ्] 1.जल यथा खनन् खनि- अधिष्ठित दिशा) 2. कोई मदिरा-पयोपि शौडिकीहस्ते त्रेण नरो वार्यधिगच्छति --सुभा० 2. तरल पदार्थ वारुणीत्यभिधीयते-हि० 3 / 11, पंच० 11178, पडनाई। माल, नाम For Private and Personal Use Only