________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशरः [वि++अप] 1. टुकड़े-टुकड़े करना, फाड़। रहित, बिना चोटी का, विना नोक का, -खः 1. दालना 2. बघ, हत्या, विनाश / बाण, -- माधव मनसिजविशिखभयादिव भावनया स्वयि विशल्य (वि०) [विगतं शल्यं यस्मात्-प्रा० ब०] कष्ट | लीना-गीत० 4, रघु० 5 / 50, महावी० 2 / 38 और चिन्ता से मुक्त, सुरक्षित / 2. एक प्रकार का नरकुल 3. एक लोहे का कौवा। विशसनम् [वि+शस्+ल्युट]. 1. वध, हत्या, पशुमेध | विशिखा [विशिख +टाप्] 1. फावड़ा 2. नकुवा 3. सुई -उत्तर० 4 / 5 2. बर्वादी,न: 1. कटार, टेढ़े फल की या पिन 4. बारीक बाण 5. राजमार्ग 6. नाई की तलवार 2. तलवार। पत्नी / विशस्त (भू० क० कृ०) [वि+शंस्+क्त] 1. काटा हुआ, विशित (वि.) [वि+-शो+क्त] तीव्र, तीक्ष्ण / चीरा हुआ 2. उजड, अशिष्ट 3. प्रशस्त, विख्यात / विशिपम् |विशेः कपन[ 1. मन्दिर 2. आवासस्थान, घर / विशस्त (0) [वि+शस्+तच्] 1. हत्या करने वाला | विशिष्ट (भ० क. कृ.) वि- शिप-क्त) 1. विलक्षण, या बलि के लिए वध करने वाला व्यक्ति 2. चाण्डाल। स्वतंत्र 2. विशेष, असामान्य, असाधारण, प्रभेदक विशस्त्र (वि०) [विगतं शस्त्रं यस्य] बिना हथियारों के, 3. विशेषगुणसम्पन्न, लक्षणयक्त, विशेषतायुक्त, शस्त्ररहित, जिसके पास बचाव के लिए कुछ न हो। सविशेष 4. श्रेष्ठ, सर्वोत्तम, प्रमुख, उत्कृष्ट, बढ़िया। विशाखः [विशाखानक्षत्रे भवः-विशाखा-+अण्] 1. काति- सम० अद्वैतवादः रामानुज का एक सिद्धान्त, जिसके केय का नाम - महावी० 2138 2. धनुष से तोर अनुसार ब्रह्म और प्रकृति समरूप तथा वास्तविक छोड़ते समय की स्थिति (इसमें धनुर्धारी एक पग सत्ता मानी जाती है अर्थात् मूलतः दोनों एक ही है, पीके तथा एक जरा आगे करके खड़ा होता है) ----बुद्धिः (स्त्री.) प्रभेदक ज्ञान, प्रभेदीकरण,-वर्ण 3. भिक्षुक, आवेदक 4. तकुवा 5. शिव का नाम / (वि०) प्रमुख या श्रेष्ठ रंग का। सम-बनारंगी का पेड़। | विशीर्ण (भू० क० कृ०) वि+शृवत] 1. छिन्न-भिन्न विशाखल दे० विशाख (2) / किया हुजा, तोड़कर टुकड़े टुकड़े किया हुआ 2. विशाखा [विशिष्टा शाखा प्रकारो यस्य--प्रा० ब०](प्रायः माया हुआ, कुम्हलाया हुआ 3. गिरा हुआ,-कु० द्विवचनान्त) सोलहवां नक्षत्र जिसमें दो तारे सम्मि- 5 / 28 4. सिकुड़ा हुआ, संकुचित, या झरिया जिसमें मित होते हैं-किमत्र चित्रं यदि विशाखे शशकलेखा- पड़ गई हों। सम० पर्णः नीम का पेड़,--मूर्ति मनुवर्तेते-श० 3 / (वि०) जिसका शरीर नष्ट हो गया हो, अनंग कु. विशायः [वि+शी+घञ] बारी-बारी से सोना, शेष 5 / 54, (तिः) काम देव का विशेषण / पहरेदारों का बारी-बारी से पहरा देना। विशुद्ध (वि.) वि+शुध+क्त] 1. शुद्ध किया हुआ, विशारणम् [वि+शु+णि+ल्यु] 1. टुकड़े-टुकड़े करना, स्वच्छ 2. पवित्र, निर्व्यसन, निष्पाप 3. बेदाग, फाड़ना 2. हत्या, वध / निष्कलंक 4. सही, यथार्थ 5. सदगुणी, पुण्यात्मा, विशारद (वि.) [विशाल+दा+क, लस्य र:] ईमानदार, खरा मा० 7.1 6. विनीत / कुशल, प्रवीण, विज्ञ, जानकार (प्रायः समास में विशतिः (स्त्री० [वि-शव--क्तिन] 1. पवित्रीकरण, -मधुदान विशारदाः-- रघु० 9 / 29 817 शुद्धिकरण तदंगसंसर्गमवाप्य कल्पते ध्रुवं चिताभ2. विद्वान्, बुद्धिमान् 3. मशहूर, प्रसिद्ध 4. साहसी, स्मरजो विशुद्धये कु. 5179, भग• 6 / 12, मनु० भरोसे का,- बकुलवृक्ष, मौलसिरी का पेड़। 6 / 69, 1053 2. पवित्रता, पूर्णपवित्रता,--रष० विशाल (वि.) [वि.+शालच्] 1. विस्तृत, बड़ा, दूर 1110, 12 / 48 3. याथातथ्य, यथार्थता 4. परिष्कार, तक फैला हुआ, प्रशस्त, व्यापक, चौड़ा,-गृहविशा- भूलसुधार 5. समानता, समता। लैरपि भूरिशाल:-ज्ञि० 3 / 50, 11 // 23, रघु० विशल (व.) [विगतं शुलं यस्य - प्रा.ब.बिनाबी, 2 / 21, 6032, भग० 9 / 21 2. समृद्ध, भरपूरा जिसके पास बी न हो- रघु० 15 / 5 / --- श्रीविशालां विशालाम्-मेघ० 30 3. प्रमुख, श्रीमान् विशृंखल (वि.) [विगता शृंखला यस्य--प्रा. ब. महान्, उत्तम, प्रख्यात, ल: 1. एक प्रकार का हरिण 1. जो श्रृंखला में न बंधा हो (शा.) 2. विशृंखलित, 2. एक प्रकार का पक्षी, - ला 1. उज्जयिनी नगर का अनियंत्रित, अप्रतिबद्ध, निरंकुश, बेरोक-शि० १२१७नाम - पूर्वोद्दिष्टामनुसर पुरी श्रीविशालाम- मेघ० भामि० 2 / 177 3. सब प्रकार के नैतिक बंधनों से 30 2. एक नदी का नाम / सम० अक्ष (वि०) मुक्त, लम्पट-- भर्त० 2059 / बड़ी-बड़ी आँखों वाला, (--क्षः) शिव का विशेषण | विशेष (वि.) [विगतः शेषो यस्मात्-प्रा० ब०] ( क्षी) पार्वती का विशेषण / ____1. अजीब 2. पुष्कल, प्रचर--- रघु०२।१४, षः 1. विशिख (वि.) [विगता शिखा यस्य प्रा० ब०] मुकुट | विवेचन, विभेदीकरण 2. प्रभेद, अन्तर निविशेषो For Private and Personal Use Only