________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 900 ) वराकोऽपमानित:-पंच०१, तत्किमुज्जिहानजीवितां / पक्षा, तीतर 2. संतरे का पेड़,-ष्ठम् 1. तांबा बराकी नानुकंपसे-मा०१०,-क: 1. शिव 2. संग्राम, 2. मिर्च। / वरी [+अच+डीष 1. सूर्य की पत्नी छाया बरादः विरमल्पमटति - अट्+अण्] 1. कौड़ी 2. रस्सी, 2. शतावरी नाम का पौधा / / वरीयस् (वि.) [अयमनयोरतिशयेन वरः उरुर्वा उरु बराबक: [वराट+कन्] 1. कोड़ी-प्राप्तः काणवराटकोऽपि +ईयसुन्, वरादेशः, उरु की म० अ०] 1. अपेक्षाकृत न मया तृष्णेऽधुना मुंच माम-भर्त० 3 / 4 2. कमल अच्छा, अधिक श्रेष्ठ, अधिमान्य 2. अत्युत्तम, बहुत फल का बीजकोष 3. डोरी, रस्सी (इस अर्थ में 'न'०' अच्छा . मा० 1116 3. अपेक्षाकृत बड़ा, चौड़ा या भी)। सम... रजस् (पुं०) नाग केसर नामक वृक्ष / विस्तुत। वराटिका [वराट्+कन्+टाप, इत्वम्] कौड़ी-भामि० बरी (लो) पर्दः [व- क्विा -वर, ई वश्च-ईवरी, तो 2 / 42 / ददाति दा-के-ईवर्दः, बली चासो ईवर्दश्च, कर्म० बराणः [+शान च इन्द्र का विशेषण / त०] बैल साँड। बराणसी दे० वाराणसी। वरीषुः [वरः श्रेष्ठः इषुः यस्य, पृषो०] कामदेव का नाम / वरारकम् [वर+ऋ+ण्वुल हीरा।। वरुटः (पुं०) म्लेच्छ जाति का नाम / बरालः, वरालकः [वृ+आलच् स्वार्थ कन् च] लौंग / / वरुडः (40) एक नीच जाति का नाम / बराशि:-सिः |वरम् आवरणमश्नुते वर+अश्+इन्, वरः वरुणः [व+उनन्] 1. आदित्य का नाम (बहुधा 'मित्र' के श्रेष्ठः अस्यते क्षिप्यते--वर---अस् --इन्] मोटा साथ युक्त होकर) 2. परवर्ती पौराणिकता के कपड़ा। अनुसार) समुद्र की अधिष्ठात्री देवता, पश्चिम दिशा बराहःवराय अभीष्टाय मुस्तादिलाभाय आहन्ति का देवता (हाथ में पाश लिए हुए) यासां राजा भूमिन्---आ+हन्+ड] सूअर, बधिया किया गया वरुणो याति मध्ये सत्यानते अव पश्यञ्जनानाम् , सूअर,-विनब्धं क्रियतां वराहततिभिर्भुस्ताक्षतिः पल्वले वरुणो यादसामहम् -भग०१०।२९, प्रतीची वरुणः श० 26 2. मेंढ़ा 3. बैल 4. बादल 5. मगरमच्छ पति-महा० अतिसक्तिमेत्य वरुणस्य दिशा भशमन्व6. शुकराकृति में बना सैनिक व्यूह 7. विष्ण का रज्यदतुषारकरः शि० 917 3. समुद्र 4. अन्तरिक्ष / सीसरा वराह-अवतार-तु० वसति दशनशिखरे सम० - अंगरहः अगस्त्य का विशेषण,-आत्मजा घरणी तव लग्ना शशिनि कलङ्क कलेव निमग्ना / मदिरा (समुद्र से निकलने के कारण इसका यह नाम केशव घृतशूकररूप जय जगदीश हरे-गीत० 1 पड़ा),--आलयः,-आवासः समुद्र,–पाशः घड़ियाल 8. एक विशेष माप 9. वराहमिहिर का नामान्तर --लोक: 1. वरुण का संसार 2. जल। 10. अठारह पुराणों में से एक / सम०--अवतारः विष्णू | वरुणानी [वरुण + ङीष्, आनुक] वरुण की पत्नी। का तीसरा अवतार, वराहावतार,-कंवः वाराहीकंद, | वस्त्रम् [वृ+उत्र] उत्तरीय वस्त्र, दुपट्टा / एक खाद्य पदार्थ,-कर्णः एक प्रकार का बाण, वस्थम् वि+ऊथन्] 1. एक प्रकार का लकड़ो का बना, --कणिका एक प्रकार का अस्त्र,—कल्पः वराहावतार आवरण जो रथ की टक्कर हो जाने पर रथ की का समय, वह काल जब विष्णु का वराह का अवतार रक्षा करे (इस अर्थ में पुं० भी) वरूथो रथगुप्तिर्या धारण किया,- -मिहिरः एक विख्यात ज्योतिर्वेत्ता, तिरोधत्ते रथस्थितिम् 2. कवच वख्तर 3. ढाल 4. बहत्संहिता का प्रणेता (राजा विक्रमादित्य की राज वर्ग, समुच्चय, समवाय, ..थ: 1. कोयल 2. काल / सभा के नवरत्नों में से एक),-श्रृंगः शिव का नाम / | वरूथिन (वि) वरूथ+इन 1 कवचधारी, बस्तरयुक्त परिमन् (पुं०) [वर+इमनिच] श्रेष्ठता, सर्वोपरिता, 2. अंगारगुप्ति या वचाऊ जगले से सुसज्जित--अवप्रमुखता। निमेकरथेन वरूथिना जितवतः किल तस्य धनु त: परिवसि (स्यि) त [वरिवस् (स्या)+इतच्] पूजा गया, --- रघु० 9 / 11 3. बचाने वाला, आश्रय देने वाला सम्मानित, अचित, सत्कृत / 4. गाड़ी में बैठा हुआ, ..पु. 1. रथ 2. अभिरक्षक, परिवस्या [वरिवसः पूजायाः करणम्-वरिवस्+क्यच प्रतिरक्षक,---नी सेना स्खलितसलिलामुल्लंघ्यनां +अ+टा] पूजा, सम्मान, अर्चना, भक्ति। जगाम वरूथिनी -शि० 12177, रघु० 12150 / / बरिष्ठ (वि.) [अयमेषामतिशयेन वरः उरुर्वा उरु | वरेण्य (वि०) वृ+एन्य] 1. अभिलषणीय, वांछनीय, +इष्ठन् वरादेशः उरु की उ० अ०] 1. सर्वोत्तम, 1 पात्र वरणीय-अनेन चेदिच्छसि गृह्यमाणं पाणिं अत्यंत श्रेष्ठ, अत्यन्त पूज्य, प्रमुख 2. अत्यन्त विशाल, वरेण्येन रघु० 624 2. (अतः) सर्वोत्तम, श्रेष्ठउरुतम् 3. अत्यन्त विस्तृत 4. गरुतम,-ष्ठ: 1. तित्तिर / तम, प्रमुख, पूज्यतम, मुख्य-वेधा विधाय पुनरुक्त राण For Private and Personal Use Only