________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 612 ) गणिका जो अपनी पवित्रता तथा पावन जीवन के | पिंजयति-ते) 1. देना 2. लेना 3. चमकना 4. शक्तिकारण प्रसिद्ध है (भागवत में उल्लेख है कि किस / शाली होना 5. रहना, बसना 6. चोट पहुंचाना, क्षति प्रकार उस गणिका ने तथा अजामिल ने इस लोक के पहुंचाना, मार डालना। बंधनों से मुक्ति पाई)। सम-अक्षः शिव का | पिंजः [पिंज+घञ, अच् वा ] 1. चन्द्रमा 2. कपूर विशेषण / ____3. हत्या, वध 4. ढेर,-जम् सामर्थ्य, शक्ति,--जा पिंगलिका [पिंगल+ठन्+टाप]1.एक प्रकार का सारस 2. ____ 1. क्षति, चोट 2 हल्दी 3. कपास / ___एक प्रकार का उल्लू / पिंजटः [पिज्+अटन्] दीद, आँग्य की कीच / पिंगाशः [पिंग+अश्+अण्] 1. गाँव का मुखिया या ! पिजनम् [पिंज। ल्युट] धुनकी, रूई धुनने का धनुपाकार मालिक 2. एक प्रकार की मछली,-शम् प्राकृत स्वर्ण, उपकरण। _-शी नील का पौधा / पिंजर (वि०) पिज्+अरच् ललाई लिये पीले रंग का पिचण्डः, -उम्, पिचिण्डः,-डम् [अपि-|-चण्ड+द्या, खाकी, सुनहरी रंग का,-शिखा प्रदीपस्य सुवर्णपिंजरा अकालोपः, पृषों०] पेट, उदर / -~-मृच्छ० 3 / 17, रघु० १८।४०,---रः ललाई लिये पिचण्डकः [पिचण्ड---कन्] पेटू, औदरिक / पीला या खाकी भूरा रंग 2. पीला रंग-रम 1. सोना पिचितिका [पिचिण्ड + ठन्-+टाप्] पिंडली, टांग की, 2. हरताल 3. अस्थिपंजर . पिंजड़ा। पिंडली। पिंजरकम् [पिंजर+कन्| हरताल। पिचिंडिल (वि०) [पिचिड+इलच् | मोटे पेट वाला, | पिंजरित (वि०) [पिंजर --इतच्] पीले रंग का, हल्के भूरे स्थूलकाय / रंग का। पिचः पच+उ पुषो० तारा०] 1. रूई 2. एक प्रकार का पिंजल (वि.) पिज+कलच। 1. शोकसंतप्त, भयभीत, बाट, (दो तोले के बराबर) कर्ष 3. एक प्रकार का व्याकुल, विस्मित 2. (सेना आदि) आतंकित,-लम् कोढ़। सम०-तलम् रूई,-मंदः,---मर्दः नीम का | ___1. हरताल 2. कुश की पत्ती। पेड़..-शि० 5 / 66 / पिजालम् [पिंज +आलच | सोना, सुवर्ण / पिचुलः [पिचु+ला+क] 1. रूई 2. एक प्रकार का जल- पिंजिका | पिंज- वल-टाप, इत्वम] पूनी, रूई का गोल काक या समुद्री कौवा। ___गल्हा जिससे कातने पर सूत निकलता है। पिच्चट (वि.)। पिच्च+अटन् ] दबाकर चपटा किया पिंजूषः [पिज्+ऊषण] कान का मैल / / हुआ,-टः आँखों की सूजन, नेत्र-प्रदाह,- टम् 1. रांगा, | पिंजटः [ पिजट, पषो०आँखों की कीच, दीद / जस्ता 2. सीसा। पिंजोला [पिंज+ओल+टाप्] पत्तों की खड़खड़ाहट, पत्तों पिच्चा [पिच्च +अच्+टाप्] 16 मोतियों की एक लड़ का खड़-खड़ शब्द करना / जिसका वज़न एक धरण (मोतियों की विशेष तोल) पिट: [पिट् + क सन्दुक, टोकरी- टम् 1. घर, कुटीर 2. छप्पर, छत / पिच्छम् [पिच्छ-+अच् 1. पूंछ का पर (जैसे मौर का) पिटकः,-कम् [पिट+कन्] 1. सन्दुक, टोकरी 2. खत्ती 3. 2. मोर की पूंछ-शि० 4 / 50 3. बाण के पंख फुसी फफोला, छोटा फोड़ा, नासूर (इस अर्थ में 4. बाजू 5. कलगी, शिखा,-च्छः पूंछ,-छा 1. म्यान, 'पिटका' तथा 'पिटिका' भी)-ततः गंडस्योपरि पिटका गिलाफ, कोप 2. चावल का मांड 3. पंक्ति, श्रेणी संवृत्ता-श०२ 6. इन्द्र के झंडे पर एक प्रकार का 4. ढेर, समुच्चय 5. रेशमीकपास के पौधे का गोंद आभूषण। या रस 6. केला 7. कवच 8. टाँग को पिडली 9. साँप | पिटक्यापिटक+य+टाप] सन्दूकों का ढेर / की विषमय लार 10. सुपारी। सम०-बाणः बाज, | पिटाकः [पिट+काक बो०] पिटारी, सन्दूक / श्येन / | पिट्टकम् [==किट्टक, पृषो० कस्य पः] दाँतों का जमा हुआ पिच्छल (वि.) [ पिच्छ+लच् ] 1. चिपचिपा, चिकना, मल। फिसलनवाला, लसलसा- तरुणं सर्षपशाकं नवौदनम् पिठरः,-रम् [पिठ-करन्] बर्तन, तसला, बटलोई. पिच्छिलानि च दधीनि-छन्द०१2. पंछवाला-लः, ('पिठरी' भी इसी अर्थ में)-पिठरं ववथदतिमात्र ला,-लम्, 1. चावलों का मांड, भुक्तमंड 2. चावल निजपाश्र्वानेव दहतितराम-पंच० 11324, जठरकी कांजी से युक्त चटनी 3. मलाई समेत दही। पिठरी दुष्पूरेयं करोति विडंबनाम्-~-भर्तृ० 3 / 116, सम०---स्वच् (पुं०) संतरे का पेड़ या छिल्का। -रम् रई का डंडा। पिi (अदा० आ०-पिक्ते) 1. हल्के रंग की, पुट देना, पिठरकः, कम् [पिठर+कन] बर्तन, तसला। सम. रगना 2. स्पर्श करना 3. सजाना ii (चुरा० उभ० -कपाल,-लम् ठीकरा, खपड़ी, खप्पर / For Private and Personal Use Only