________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 808 ) --भेषजम 1. आँवला 2. उपवास,-व्रतम् संन्यासी 'मूर्छ' या 'मूर्छ' भी लिखते हैं) 1. ठोस बनाना, की प्रतिज्ञा--कु० 5 / 48 / जमना, गाढ़ा होना 2. मुछित होना, बेहोश होना, धम्म (म्वा० पर० मुंथति) जाना, हिलना-जुलना। मुझा जाना, अचेतन होना, संज्ञारहित होना-पतत्युममक्षा [ मोक्तुमिच्छा - मुच्-+-सन् +अ+टाप, धातोद्वि- द्याति मुर्छत्यपि----गीत. 4 क्रीडानिजितविश्वमछितत्वम् ) छुटकारे या मोक्ष की इच्छा। जनाघातेन कि पौरुषम् -गीत० 3, भट्रि० 1555 मुमुनु (वि०) [ मुन्+सन् +उ ] 1. बरी या स्वतंत्र 3. उगना, बढ़ना, बलवान् या शक्तिशाली होना होने का इच्छुक 2. कार्यभार से मुक्त होने का --ममर्छ सहजं तेजो हविषेव हविर्भुज:---रघु० इच्छुक 3. (बाण आदि) छोड़ने को प्रस्तुत ----रघु० 1079, मुमूर्छ सख्यं रामस्य --12 / 57, मूर्छन्त्यमी 9 / 58 4. सांसारिक जीवन से मुक्त होने का इच्छुक, विकाराः प्रायेणैश्वर्यमत्तेषु-श० 5 / 18 4. बल मोक्ष, प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील,--क्षुः मोक्ष के एकत्र करना, मोटा होना, सघन होना तमसां निशि लिए प्रयत्नशील ऋषि कु० 2 / 51, भग० 4 / 15, मर्छताम्-विक्रम० 317 5. (क) प्रभाव डालना विक्रम श१। -छाया न मूच्र्छति मलोपहतप्रसादे शुद्धे तु दर्पणतले मुमुचानः [ मुच्+आनन्, सन्वद्भावाद्वित्वम् ] बादल / सुलभावकाशा--श० 7 / 32, (ख) छा जाना, प्रभामुमूर्षा [ मृ+सन्+अ+टाप् ] मरने की इच्छा - भट्टि वित करना--न पादपोन्मूलनशक्तिरंहः शिलोच्चये 9 / 57 / मूर्छति मारुतस्य-रघु० // 34 6. भरना, व्याप्त मुमूर्षु (वि०) [म+सन्+उ] मरणासन्न, मृत्यु के निकट / होना, प्रविष्ट होना, फैल जाना ..कु. 6159, रघु० मुर (तुदा० पर० मुरति) घेरना, अन्तर्वृत्त करना, परि 6 / 9 7. जोड़ का होना 8. बार बार होना 9. ऊंचे वृत्त करना, लिपटना। स्वर से शब्द करवाना--प्रेर० (मर्छयति-ते) जडीमुरः [ मुर+क ] एक राक्षस का नाम जिसे कृष्ण ने मार भूत करना, मूछित करना-म्लेच्छोन्मुर्छयते--गीत. गिराया था, रम् परिवृत्त करना, घेरना। सम० 1, वि-, मूछित होना, बेहोश होना, सम्-, 1. मूर्छित -~-अरिः 1. कृष्ण का विशेषण-मुरारिमारादुपदर्शय होना, बेहोश होना 2. ताकतवर या शक्तिशाली होना, यसो गीत० 1 2. 'अनर्घराघव' नाटक का बलवान् होना, प्रबल होना,-- कि० 5 / 41 / प्रणेता,-जित, - -द्विष, - भित्, मर्दनः, -रिपुः,- मुर्मुरः मुर+क पृषो० द्वित्वम्] 1. तुषाग्नि, तुष या भूसी वैरिन्, हन् (पुं०) कृष्ण या विष्णु के विशेषण से तैयार की हुई अग्नि स्मरहुताशनमुमुंख्वूर्णता -प्रकीर्णाग्बिन्दुर्जयति भुजदण्डो मुरजितः--गीत. रघुरिवाम्रवणस्य रजःकणाः-शि०६।६ 2. काम 1, मुरवैरिणो राधिकामधि वचनजातम् 10 / / देव 3. सूर्य का एक घोड़ा। मुरजः [ मुरात् वेष्टनात् जायते -जन्+ड ] 1. एक | मुर्व (भ्वा० पर० मुर्वति) बांधना, कसना। प्रकार का ढोल या मृदंग-सानन्दं नन्दिहस्ताहत | मुशटो [मुष+अटन+डी, पृषो. पस्य श:] एक प्रकार मरजरव....' 'मा० श१, संगीताय प्रहतमुरजाः | का अन्न। -मेघ० 44, 56, मालवि० 122, कु० 641 मुश (स)ली छोटी छिपकली। 2. किसी श्लोक की भाषा को मुरज के रूप में व्यव- 1 i (ऋया पर० मुष्णाति, मुषित, इच्छा० मुमुषिषति) स्थित करना, मुरजबंध भी इसे ही कहते हैं - काव्य० 1. चुराना, उठा लेना, लूटना, डाका डालना, अप९। सम० -फलः कटहल का पेड़।। हरण करना (द्विक० मानी जाती है, देवदत्तं शतं मुरजा [ मुरज+टाप् ] 1. एक बड़ा होल 2. कुबेर की | मुष्णाति परन्तु लौकिकसाहित्य में विरल प्रयोग), पत्नी का नाम / मुषाण रत्नानि --शि० 1151, 3 / 38, क्षत्रस्य मरन्दला एक नदी का नाम (इसे ही बहधा 'नर्मदा' मानते मुष्णन वसु जैत्रमोजः-कि० 3 / 41 2 ग्रहण लगना, ढकना, लपेटना, छिपाना-सैन्यरेणुमुषिताकदीधिति: मुरला [ मुर+ला+क+टापा केरल देश से निकलने -रघु० 11151 3. बन्दी बनाना, मुग्ध करना, वाली एक नदी का नाम (उत्तर० 3 में 'तमसा' के लभाना 4. पीछे छोड़ देना, आगे बढ़ जाना-मुष्णा साथ इसका उल्लेख आता है) मुरलामारुतोद्धृत- श्रियमशोकानां रक्तः परिजनाम्बरः, गीतैर्वराङ्गनानां मगमत् कतकं रजः- रघु० 4155 / च कोकिल भ्रमरध्वनिम्-कथा० 55 / 113, रत्न० मुरली [ मुरम् अङगुलिवेष्टन लाति-मुर+ला+क+ 1224, भट्टि० 9 / 32, मेघ० 47, परि-, हीष ] बांसुरी, वंशी, वेणु / सम०-घरः कृष्ण का लूटना, वंचित करना-परिमुषितरत्नं त्रिभुवनम् विशेषण / -मा० 5 / 30, प्र----, अपहरण करना, निस्तेज मुई (म्वा० पर० मूर्छति, मूछित, या मूतं, इस धातु को। करना भट्टि० 17160 / For Private and Personal Use Only