________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 835 ) -21 .-बालरा० 1113 (यहाँ 'यायावर' एक कुल का | उपयोगी हो 2. सभी अर्थों में-वयमपि च गिरामीश्महे नाम है)। यावदर्थम् ---भर्तृ० 3 / 30 (पाठान्तर),-इष्टम्, यावः, यावकः,-कम् य+अच्+अण् =याव-|-कन्]1. जी -- ईप्सितम् (अन्य ) यथेच्छ, इच्छा के अनुकूल, से तैयार किया हआ आहार 2. लाख, लाल रग, - इत्थम् (अव्य०) आवश्यकता के अनुसार, जितना महावर-लभ्यते स्म परिरक्ततयात्मा यावकेन वियतापि आवश्यक हो,-जन्म,-जीवम,-जीवेन (अव्य०) यवत्याः - शि० 10 // 9, 15 / 13, कि० 5 / 40 / जीवन भर, जीवनपर्यंत, आजीवन,--बलम (अव्य०) यावत् (वि०) (स्त्री०-ती) [ यद्+वतप, आत्वम् ] अपनी शक्ति के अनुसार, जितना अधिक से अधिक (तावत' का सहसंबंधी) 1. जितना, जितने ('जितने' वल हो,--भाषित उक्त (वि०) उतना जितना कहा के लिए यावत तथा 'उतने के लिए तावत् का प्रयोग जा चुका है,...मात्र (वि०) 1. इतना बड़ा, इतना होता है). पुरे तावन्तमेवास्य तनोति रविरातपम् / विस्तृत, जहाँ तक ब्यापक हो–कु० 2033 2. नगण्य, दीपिकाकमलोन्मेपो यावन्मात्रेण साध्यते-कू० 233, तुच्छ, मामूली,-शक्यम्,-शक्ति (अव्य०) जहाँ ते तु यावन्त एवाजी तावांश्च ददशे सते:--रघु०१२। तक संभव हो, अपनी शक्ति के अनुसार- इसी प्रकार 45, 1717 2. जितना बड़ा, जितना विस्तृत, कितना 'यावत्सत्त्वम्'। बड़ा या कितना विस्तृत यावानर्थ उदपाने सर्वतः यावन (वि.) (स्त्री०-नी) [ यवन---अण, यु / णिच संप्लुतोदके, तावान्सर्वेषु वेदेष ब्राह्मणस्य विजानतः +ल्य टु वा ] यवनों से संबंध रखने वाला, न वदे.-भग० 2 / 46, 18:55 3. सब, समस्त (यहाँ दोनों द्यावनी भाषा प्राणः कण्ठगतैरपि---सुभा०,-नः मिल कर समष्टि या साकल्य का अर्थ प्रकट करते हैं) | लोबान / --यावद्दत्तं तावद्भक्तम् .. गण अव्य०, 'यावत्' अकेला | यावसः | यवस+अण ] 1. घास का देर 2. चारा, खाद्यप्रयक्त होकर निम्नांकित अर्थ प्रकट करता है (क) | सामग्री / जहां तक, तक, पर्यन्त, जब तक कि, (कर्म के | याष्टीक (वि०) (स्त्री--को) [ यष्टि: प्रहरणमस्य माथ)- स्तन्यत्यागं यावत् पुत्रयोरवेक्षस्व ... उत्तर०७, ईका] लाठी या सोटे से सुसज्जित,-क: लाठी कियन्तमवधि यावदस्मच्चरितं चित्रकारेणालिखितम् से सुसज्जित योद्धा / - उत्तर० 1, सर्पकोटरं यावत पंच०१ (ख) तभी, / यास्कः [यस्कस्यापत्यम् यस्क+अण् ] निरुक्तकार का ठीक उसी समय, इसी बीच में (तुरन्त किये जाने नाम / वाले कार्य को दर्शाने वाला).---तद्यावत् गृहिणीमाहूय युi (अदा० पर० यौति, युत; प्रेर० यावयति, इच्छा. संगीतकमनुतिष्ठामि - श० 1, यावदिमां छायामा- यियविषति या यूयषति) 1. सम्मिलित होना, मिलना श्रित्य प्रतिपालयामि ..श० 3 2. यदि यावत और 2. मिलाना, गड्डमड्ड करना / तावत् मिलकर प्रयुक्त हों तो निम्नांकित अर्थ प्रकट ii (जुहो० पर० युयोति) अलग-अलग करना। होता है (क) इतनी देर कि, इतने समय तक कि, iii (क्रया० उ भ० युनाति, युनीते) बाँधना, जकड़ना, -यावद्वित्तोपार्जनशक्तस्तावन्निजपरिवारो रक्त:-मोह० / सम्मिलित होना, मिलना। 8 (ख) ज्योंही, अभी-अभी, इसी समय-.-एकस्य प्र ..., थामना, अनुष्ठान करना, व्यति.., मिश्रण दुःखस्य न यावदन्नं गच्छामि"'""तावदिवतोयं सम् करना - अन्योन्यं स्म व्यतियुतः शब्दाभ शब्दस्तु पस्थितं मे हि० 11204, मेघ० 105, कु० 3172 भीषणान्-भट्टि० 816 / (ग) जबकि, उसी समय तक - आश्रमवासिनो युक्त (भू० क० कृ०) [युज+क्त ] 1. सम्मिलित, मिला यावदवेक्ष्याहमुपावर्ते तावदाईपृष्ठाः क्रियन्तां वाजिनः हुआ 2. जकड़ा हुआ, जूए में जोता हुआ, साज-सामान --0 1, प्रायः 'न' के साथ भी प्रयोग जब कि से संनद्ध 3. युक्त किया हुआ, सुव्यवस्थित 4. सहित 'यावन' का अर्थ होता है 'इससे पूर्व कि' . यावदेते 5. सुसज्जित, युक्त, भरा हुआ, सहित (समास में या सरसंनोत्पतन्ति तावदेतेभ्यः प्रवत्तिरवगमयितव्या करण के साथ) 6. स्थिर, तुला हुआ, लीन, व्यस्त -विक्रम 4 (घ) जब, जिस समय यावदुत्थाय (अधि० के साथ) 7. कर्मपरायण, परिश्रमी 8. कुशल निरीक्षते तावद् हंसोऽवलोकितः हि०३। सम० अनुभवी, चतुर 9. योग्य, उचित, ठीक, उपयुक्त -- अन्तम् --- अन्ताय (अव्य०) अन्त तक, आखीर (संबं० या अधिक के साथ) 10. आदिकालीन, मौलिक तक,-अर्थ (वि.) आवश्यकता के अनुसार, उतने (शब्द),--क्तः महात्मा जो परब्रह्म परमात्मा से जितने कि अर्थ प्रकट करने के लिए आवश्यक है सायज्य प्राप्त कर चुका है,--क्तम् जोड़ी, जुआ या (शब्द)-पावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः विरराम यग्म / सम०- अर्थ (वि०) समझदार, विवेकी, --शि० 2013, (अव्य. अर्थम्) 1. उतना जितना / सार्थक, -कर्मन् (वि०) जिसे किसी कर्तव्य कर्म पर For Private and Personal Use Only