________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 712 ) वाला (तिः) एक प्रकार का बाँस,--सार (वि०)। -पंच० 2 / 175 2. दूर तक फैलना, प्रकाशित होना, बहुत अधिक मज्जा यो रस से युक्त, सारयुक्त, (र: बदनाम होना, सुविदित होना, दूर दूर तक फैल जाना खदिरवृक्ष, खैर,-सू: 1. अनेक बच्चों की माँ -- बहुलीभवन्तं .....सोढुं न तत्पूर्वमवर्णमीशे-रघु० 2. शूकरी, सरी,-सूतिः (स्त्री०) 1. अनेक बच्चों को 14138) / सम०-आलाप (वि०) बातूनी, वाचाल, मां 2. बहुत बार ब्याने बाली गाय,-स्वन (वि०) मुखर,-गन्धा इलायची।। कोलाहलपूर्ण (नः), उल्लू,-वामिक (वि०) जिसके | बहलिका (स्त्री०-ब.व.) कृत्तिकानक्षत्र / स्वामो अनेक हों। | बहुशः (अव्य०) [बहु+शस ] 1. अत्यंत, बहतायत के बहुक (वि०) [ बहु+कन् ] महंगा खरीदा हुआ, कः साथ, अत्यधिकता के साथ -- मेघ० 106 2. बार 1. सूर्य 2. मदार का पौधा 3. केकड़ा 4. एक प्रकार | बार, दोहरा कर, महुर्महः-चलापाङ्गां दृष्टि स्पृशसि का जलकुक्कुट / बहुशो वेपथुमतीम्-श० 1123, कु०४१३५ 3. साधाबहुतर (वि.) [ बहु+तरम् ] अपेक्षाकृत असंख्य, अधिक, रणतः, सामान्य रूप से। ज्यादह। बाकुलम् [ बकुल+अच् ] बकुल वृक्ष का फल / बहुतम (वि.) [बहु+तमप् ] अत्यन्त अधिक, अतिशय / बार (म्वा० आ० बाडते) 1. स्नान करना 2. गोता बहुतः (अव्य.) [ बहु+तस् ] नाना पावों से, कई लगाना। तरफ से। बाडवः [ वडवा+अण, बवयोरभेदः ] दे॰ 'वाडद / बहुता, स्वम् [ बहु+तल् +टाप, त्व वा ] बहुतायत, प्राचुर्य, बाडवेय (वि.) [ वडवा+ठक ] दे० 'वाडवेय'। असंख्यता। माडव्यम् [ वाडव+यत् ] दे० 'वाडव्यम्' / बहुतिष (वि.) [ बहु+तिथुक् ] ज्यादह, अधिक, अनेक- बाढ (वि०) [ वह +क्त नि० साधुः] (म० अ०-साधी काले गते बहुतिये-श० 5 / 3, तस्य भुवि बहुतिथा- यस, उ० अ० साधिष्ठ) 1. दृढ़, मजबूत 2. ऊंचे स्तिथयः कि० 12 / 2 / स्वर का,-ढम् (अव्य०) 1. यक़ीनन, निश्चय ही, बहुधा (अव्य०) [बह+धाच ] 1. कई प्रकार से, विविध अवश्य, वस्तुतः, हाँ (प्रश्न के उत्तर के रूप में) प्रकार से, बहुत तरह से- बहधाप्यागमभिन्ना:-रघु० -चाणक्यः चन्दनदास, एष ते निश्चयः, चन्दनदास:१०।२६, भग० 13 / 4 2. भिन्न-भिन्न रूप से या बाढम्, एष मे स्थिरो निश्चयः-मुद्रा० 1, बाढमेषु रीतियों से 3. बारंबार, दोहराकर 4. विविध स्थानों दिवसेषु पार्थिवः कर्म साधयति पुत्रजन्मने- रघु० या दिशाओं में। 19 / 52 2. बहुत अच्छा, तथास्तु, शुभम् 3. अत्यंत, बहुल (वि.) [बंह, +कुलच्, नलोपः] (म० अ० | बहुत ज्यादह --शि० 9177 / ---बहीयस्, उ० अ०--बंहिष्ठ) 1. घिनका, सघन, बाणः [बण्+घञ ] तीर, बाण, शर-धनुष्यमोषं समसटा हुआ 2. विशाल, विस्तृत, आयत, विपुल, बड़ा धत बाणम् --कु० 3 / 66 2. तीर का निशाना, 3. प्रचुर, यथेष्ट, पुष्कल, अधिक, असंख्य--अविनय- बाण का लक्ष्य 3. तीर का पंखयक्त भाग 4. गाय बहुलतया-का० 143 4. अनेक, बहुत प्रकार का ऐन या औड़ी 5. एक प्रकार का पौधा (नीलका, अनगिनत-मा० 9/18 5. भरापूरा, समृद्ध, झिटी' भी)-विकचबाणदलावलयोऽधिकं रुचिरे रुचिरेप्रभूत-जन्मनि क्लेशबहुले किं नु दुःखमतः परम्-हि. क्षणविभ्रमाः -- शि० 6 / 46 6. एक राक्षस का नाम, 1 / 184, भग० 2143 6. संयुक्त, संलग्न 7. कृत्तिका बलि का पुत्र-~-तु० उषा 7. एक प्रसिद्ध कवि का नक्षत्र में जिसका जन्म हआ है 8. काल, --लः नाम जो सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में राजा हर्षवर्धन 1. मास का कृष्णपक्ष,-प्रादुरासबहुलक्षपाछविः- रघु० के दरबार में विद्यमान था (दे० परिशिष्ट 2), 11 // 15, करेण भानोबहुलावसाने संधुक्ष्यमाणेव शशा- उसने कादंबरी, हर्षचरित तथा और कई पुस्तकें छकरेखा -कु० 78,4 / 13 2. अग्नि का विशेषण, लिखीं (आर्या० के 37 वें श्लोक में गोवर्धन ने बाण -ला 1. गाय 2. इलायची 3. नील का पौधा के विषय में निम्नांकित कहा है--जाता शिखण्डिनी 4. (ब० व०) कृत्तिकानक्षत्र, --लम् 1. आकाश प्राग्यथा शिखण्डी तथावगच्छामि, प्रागल्भ्यमधिकमाप्तुं सफेद मिर्च, (बहुलीक) 1. प्रकाशित करना, खोलना, वाणी बाणो बभूवेति / इसी प्रकार-हृदयवसतिः भंडाफोड़ करना 2. सघन या सटाकर बनाना -शि० पञ्चबाणस्र बाणः ---प्रस० 1122) 1. 'पाँच' की 13 / 44 3. बढ़ाना, विस्तार करना, वृद्धि करना संख्या के लिए प्रतीकात्मक उक्ति। सम० - असनम् --भूतेषु किं च करुणां बहुलीकरोति-भामि० // धनुष,-आवलिः,----ली (स्त्री०) 1. बाणों की श्रेणी 122 4. फटकना, बहुलीभू 1. फैलाना, विस्तृत 2. एक वाक्य में अन्वित पांच श्लोकों का एक कुलक, करना, गुणा करना-छिद्रेष्वनर्या बहुली भवन्ति -आश्रयः तरकस,--गोचर बाण का परास,--जालम् For Private and Personal Use Only