________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 754 ) भोगः [ भुज+धा ] 1. खाना, खा पी जाना 2, सुखो- | लिप्त ---पंच० 1165, (यहाँ इसका अर्थ 'फणा मे पयोग, आस्वाद 3. स्वामित्व 4. उपयोगिता, उपादे- यक्त' भी है) 8. धनाढय, सम्पनिमाली, (50) यता 5. हकूमत करना, शासन, सरकार 6. प्रयोग, 1. सॉप गजाजिनालम्बि पिनद्रभागि वा कु० 5 / (घरोहर आदि का) व्यवहार 7. भोगना, झेलना, 78 रघ० 2 / 12, 4 / 48, 1017. 1151. 2. राजा अनुभव करना 8. प्रतीति, प्रत्यक्षज्ञान 9. स्त्रीसंभोग, 3. विषयी 4. नाई 5. गांव का मुखिया 6. आश्लेषा मैथुन, विषयमय 10. उपभोग, उपभोग की वस्तु नक्षत्र, ..नी राजा के अन्त पुर की स्त्री जो रानी के --भोगे रोगभयम् भर्त० 3 / 35, भग० 1 / 32 रूप में अभिषिका न हो, रखैल, उपपत्नी / सम० 11 भोजन, दावत, भोज 12. आहार 13. नैवेद्य ---इन्द्रः, -- ईशः शेष या वामकि-कान्तः वायु, हवा, 14. लाभ, फायदा 15. आय, राजस्व 16. धनसंपत्ति --भुज (पं.) 1. नेवला 2. मोर, वल्लभम् चंदन / 17. वेश्या को दी गई मजदूरी 18. वक्र, घमाव, चक्कर भोग्य (वि.) [ भुज :- प्रयत्, कुत्वम् ] 1. उपभोग के 19. साँप का फैलाया हुआ फण-श्वसदसितभुजङ्ग- योग्य, या काम में लाने योग्य-रघु० 8 / 14, पंच० भोगाङ्गदग्रन्थि आदि-मा० 5 / 23, रघु० 1017, 11117 2. भोगने योग्य या सहन करने लायक 11159 20. साँप / सम० - अहं (वि.) उपभोज्य --मेघ० 1 3. लाभदायक,ग्यम् 1. उपभोग का (हम) संपत्ति, दौलत,---अहम् अनाज, अन्न,-आधिः / कोई पदार्थ 2. दौलत, सम्पत्ति, जायदाद 3. अनाज, बन्धक में रक्खी हुई वस्तु जिसका उपभोग तब तक अन्न, ग्या वेश्या, वारांगना / किया जाय जब तक कि वह छुड़ाई न जाय, आवलो भोजः [भुज-अच ] 1. मालवा (या धारा) का प्रसिद्ध किसी व्यावसायिक प्रशस्तिवाचक द्वारा स्तुतिगान राजा, (ऐसा माना जाता है कि राजा भोज दसवीं ..-नग्नः स्तुतिव्रतस्तस्य ग्रंथो भोगावली भवेत् हेम०, शताब्दी के अन्त में या ग्यारहवीं गताब्दी के आरम्भ --आवासः जनानखाना, अन्तःपुर,—कर (वि.) में हए थे, वे संस्कृत ज्ञान के बड़े अभिभावक थे, 'सरसुखद या उपभोगप्रद,-गुच्छम् वेश्याओं को दी गई स्वतीकंठाभरण' आदि कई ग्रंथों का उन्हें प्रणेता समझा मजदूरी,---गहम् महिलाकक्ष, अन्तःपुर, जनानखाना, जाता है) 2. एक देश का नाम 3. विदर्भ के राजा का -शुष्णा सांसारिक उपभोगों की इच्छा--- तदुपास्थित नाम ---भोजेन दूतो रघवे विसष्ट:-रघु० 5 / 3971 मग्रहीदजः पितुराज्ञेति न भोगतृष्णया- रघु० 8 / 2, -29, 35, जाः (पं० ब०व०) एक जाति का 'स्वार्थपूर्ण उपभोग' मा० २,-देहः 'भोग-शरीर' नाम। सम० ---अधिपः 1. कंस का विशेषण, इन्द्रः सुक्ष्मशरीर या कारणशरीर जिसके द्वारा व्यक्ति भोजों का राजा,-कटम रुक्मी द्वारा स्थापित एक नगर परलोक में अपने पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मों का सुखदुःख का नाम, देवः, राजः / राजा भोज दे० (1) ऊपर, भोगता है, .--धरः साँप,-पतिः राज्यपाल या विषया .-.-पतिः 1. राजा भोज, 2. कंस का एक विशेषण / धिपति,-पाल: साईस, - पिशाचिका भूख,---भतक: भोजनम् | भजल्यट] 1. खाना, भोजन करना,--अजीर्णे जो केवल जीविका के लिए नौकरी करता है, वस्तु भोजनं विषम् 2. आहार 3. भोजन (साने के लिए) (नपं०) उपभोग की वस्तु या पदार्थ,--सद्यन् (नपुं०) देना, खिलाना 6 उपयोग करना, उपभोग करना भोगावास, दे० स्थानम् 1. उपभोग का आसन शरीर 5. उपभोग की सामग्री 6. जिसका उपभोग किया 2. अन्तःपुर / जाय 7. संपत्ति, दौलत, जायदाद, नः शिव का विशेभोगवत् (वि०) [ भोग+मतप ] 1. सुखद, प्रसन्नता षण / सम०--अधिकार. चारे का कार्यभार, खाद्य देने वाला, खुशी देने वाला 2. प्रसन्न, समृद्ध 3. वक्र सामग्री का अधीक्षण, कार्याध्यक्ष का पद,-आच्छादनम वाला, मंडलाकार, कुण्डलाकार, (पुं०) 1. साँप खाना-कपड़ा, कालः, वेला, समयः भोजन करने 2. पहाड़ 3. नृत्य, अभिनय, और गायन...- (स्त्री का समय, खाने का समय, त्यागः आहार का त्याग, ती) 1. पाताल गंगा का विशेषण 2. सर्पपिशाचिका उपवास,-भूमिः (स्त्री०) भोजनकक्ष, खाने का कमरा, 3. पाताल लोक में नाग-पिशाचिकाओं का नगर --विशेषः स्वादिष्ट भोजन, विशिष्ट भोजन, वृत्तिः 4. चान्द्रमास की द्वितीया तिथि की रात / (स्त्री०) भोजन, आहार, व्यग्र (वि.) खाने में भोगिकः [ भोग+ठन् ] साईस, घोड़े का रखवाला। व्यस्त,- व्ययः खाने-पीने का खर्च / भोगिन् (वि.) [भोग+इनि ] 1. खाने वाला 2. उप- भोजनीय (वि.) [भुज-अनीयर] भक्षणीय, साने योग्य, भोक्ता 3. भोगने वाला, अनुभव करने वाला, सहन - यम् आहार। करने वाला 4. उपभोक्ता, स्वामी-इन उपयुक्त भोजयित (वि०) | भुज+णिच् +तृच / जो दूसरों को चार अर्थों में (समास के अन्त में प्रयोग) 5. मोड़दार भोजन कराये, खिलाने वाला। 2. फणदार 7. उपभोग में मग्न, विषयवासनाओं में भोज्य (वि०) भज+ण्यत ] 1. जो खाया जा सके For Private and Personal Use Only