________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 747 ) 6. मिलना, एक होना, सम्मिलित होना--संभयाम्भो- (रः) शिव का विशेषण,--छाया, छायम् 1. भू छाया, धिमभ्येति महानद्या नगापगा-शि०२।१००, संभूयेव (इसे ही ग्रामीण 'राहु' कहते हैं) 2. अंधकार-जन्तुः सुखानि चेतसि - मा० 5 / 9 7. संगत होना 8. पकड़ने 1. एक जमीन का कीड़ा 2. हाथी,-जम्बः,-गेहूँ के योग्य, (प्रेर०) 1. पैदा करना, उत्पन्न करना --तलम् धरातल, पृथ्वीतल,-तृणः (भूस्तृणः) एक 2. कल्पना करना, सोचना, उद्भावन करना, चिन्तन प्रकार का सुगंधयुक्त घास,-बारः सूअर,-देवः, सुरः करना 3. अनुमान लगाना, अटकल लगाना-श०२, ब्राह्मण,- धनः राजा धरः 1. पहाड़ 2. शिव 4. सोचना, खयाल करना 5. सम्मान करना, आदर का विशेषण 3. कृष्ण का विशेषण 4. 'सात' करना, आदर प्रदर्शित करना-- प्राप्तोऽसि संभा- की संख्या °ईश्वरः °राजः हिमालय पहाड़ का वयितुं बनान्माम्-रघु० 5 / 11, 78 6. सम्मान विशेषण °जः वृक्ष,-नागः एक प्रकार का धरती का करना, उपहार देना, बर्ताव करना~-कु० 3 / 37 कीड़ा, केंचुवा,-नेतु (पुं०) प्रभु, शासक, राजा,-पः 7. मढ़ना, थोपना--मृच्छ० 1136 / प्रभु, शासक, राजा,-पतिः 1. राजा, 2. शिव का ii (भ्वा० उभ० भवति - ते) हासिल करना, प्राप्त विशेषण 3. इन्द्र का विशेषण,--पदः वृक्ष,-पदी एक करना। विशिष्ट प्रकार की चमेली,--परिषिः पृथ्वी का घेरा, iii (चुरा० आ० भावयते) प्राप्त करना, उपलब्ध -~-पाल: राजा, प्रभु-पालनम् प्रभुता आधिपत्य करना। -पुत्रः,--सुतः मंगलग्रह,-पुत्री,-सुता 'धरती की iv (चुरा० उभ० -- भावयति-ते) 1. सोचना, बेटी' सीता का विशेषण,-प्रकंपः भूचाल,-प्रदानम् विमर्श करना 2. मिलाना, मिश्रित करना भूदान,-बिम्बः,-बम् भूलोक, भूमंडल,-भर्त (पुं०) 3. पवित्र होना ('भू' के प्रेर० रूप से संबद्ध)। राजा,प्रभु,-भागः क्षेत्र, स्थान, जगह, - भुज् (पुं०) भू (वि०) [भू+क्विप्] (समास के अन्त में) होने राजा,-भृत् (पुं०) पहाड़-दाता मे भूभृतां नाथः वाला, विद्यमान, बनने वाला, फूटने वाला, उगने प्रमाणीक्रियतामिति-कु० 61, रघु० 17178 वाला, उपजने वाला, चित्तभू, आत्मभू, कमलभू, 2. राजा, प्रभु-निष्प्रभश्च रिपुरास भूभृताम् -- रघु० वित्तभू आदि--(पुं०) विष्णु का विशेषण / 1181 3. विष्णु का विशेषण-मण्डलम् पृथ्वी, भूः (स्त्री०) [भू+-क्विप] 1. पृथ्वी (विप० अन्तरिक्ष भूमण्डल, धरती, ... रह (पुं०),- कहः वृक्ष, - लोकः या स्वर्ग-दिवं मरुत्वानिव भोक्ष्यते भवम्-रघु०३।४, (भूर्लोकः) भूमण्डल, - वलयम् भूमण्डल,-- बल्लभः 1814, मेघ० 18, मत्तेभकुम्भदलने भुवि सन्ति शूराः राजा, प्रभु, वृत्तम् भूमध्यरेखा,-शक्रः 'धरती पर 2. विश्व, भूमण्डल 3. भूमि, फर्श-प्रासादोपरिभूमयः इन्द्र, राजा, प्रभु,-शयः विष्णु का विशेषण,-श्रवस् --मुद्रा० 3, मणिमयभुवः (प्रासादाः)-मेघ० 64 (पुं०) बमी, दीमक का मिट्टी का टीला,-सुरः 4. भूमि, भूसंपत्ति 5. जगह, स्थान, क्षेत्र, भूखण्ड ब्राह्मण, --- स्पृश् (पुं०) 1. मनुष्य 2. मानवजाति -काननभुवि, उपवनभुवि आदि 6. सामग्री, विषय 3. वैश्य, स्वर्गः मेरु पहाड़ का विशेषण,-स्वामिन् वस्तु 7. 'एक' की संख्या की प्रतीकारक अभिव्यक्ति (पुं०) भूमिधर, भूमि का स्वामी। 8. ज्यामिति की आकृति की आधाररेखा 9. (धरती भूकः, ---कम् [भू+कक] 1. विवर, रन्ध्र, गर्त 2. झरना का प्रतिनिधान करने वाली) सबसे पहली (तीनों में) 3. काल / व्याहृति या रहस्यमूलक अक्षर 'ॐ' जिसका उच्चारण | भूकलः [भुवि कलयति कल्+अच्] अडियल घोड़ा। प्रतिदिन संध्या के समय मंत्रपाठ करते हए किया | भूत (भू० क० कृ०) [भू+क्त] 1. जो हो चुका हो, होने जाता है। सम०-उत्तमम् सोना, कदम्बः कदम्ब वाला, वर्तमान 2. उत्पन्न, निर्मित 3. वस्तुतः होने वृक्ष का भेद,-कम्पः भूचाल, कर्णः धरती का व्यास, वाला, जो वस्तुतः घट चुका हो, यथार्थ 4. ठीक, -कश्यपः कृष्ण के पिता वासुदेव का विशेषण,-काकः उचित, सही 5. अतीत, गया हुआ 6. उपलब्ध 1. एक प्रकार का बगुला 2. पनमर्गी 3. एक प्रकार 7. मिश्रित या मिलाया हुआ 8. सदश, समान दे० का कबूतर, केशः बट-वृक्ष, केशा राक्षसी, पिशाचिनी, 'भू',—तः 1. पुत्र, बच्चा 2. शिव का विशेषण 5. क्षित् (पुं०) सूअर,-गरम् विशेष प्रकार का जहर, 3. चान्द्रमास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दिन,-तम् - गर्भः भवभूति का विशेषण, -गहम्,-गेहम् भूमि 1. प्राणी (मानव, दिव्य, या अचेतन)--कु० 4 / 45, के नीचे का गोदाम, तहखाना, गोल: भूमिगोल, पंच० 2 / 87 2. जीवित प्राणी, जन्तु, जीवधारी भूमंडल-भूगोलमुद्विभ्रते -गीत० 1, विद्या भूगोल, ...---भूतेषु किं च करुणां बहुली करोति ---भामि० घनः काया, शरोर - चक्रम् विखुबद्रेखा, भूमध्यरेखा 11122, उत्तर० 4 / 6 3. प्रेत, भूत, पिशाच, दानव ..चर (वि०) भूमि पर घूमने वाला या रहने वाला 4. तत्त्व (वे पांच है अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, For Private and Personal Use Only