________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के रूप में निरूपण जिसके रचयिता इन्द्र कहे / बिद्, बिद् (भ्वा० पर० बिदति) 1. खण्ड खण्ड करना जाते हैं। 2. बाँटना। वाहुदन्तेयः [ बहुदन्त+6] इन्द्र का विशेषण / बिवलम दे० 'विदल'। बाहुवा [बाहु+दा+क+टाप् ] एक नदी का नाम / बिन्दुः [बिन्द+उ] 1. बंद, बिंदी जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः बाहुभाष्यम् [ बहुभाष+ष्या ] मुखरता, वाचालता, पूर्यते घट: "छोटी-छोटी बूंदे मिल कर एक सरोवर बन बातूनीपन / जाता है", विस्तीर्यते यशो लोके तैलबिन्दुरिवाम्भसि बाहुरूप्यम् [ बहुरूप+व्या 1 बहरूपता, विविधता / मनु०७।३३, अधुना (कुतूहलस्य)बिन्दुरपि नावशेषितः बाहुल: [बहुल+अण् ] 1. अग्नि 2. कार्तिक का महीना, -श०२ 2. बिंदू, बिंदी 3. हाथी के शरीर पर रंगीन -लम् 1. बहुरूपता 2. भुजाओं की रक्षा के लिए बिंदी या चिह्न-कु० 117 4. शून्य, सिफर-न रोमकवच विशेष / सम०--ग्रीवः मोर। कूपौघमिषाज्जगत्कृता कृताश्च किं दूषणशून्यबिन्दवःनै० बाइलकम् [बाइल+कन् ] 1. अनेकरूपता 2. व्याकरण 1 / 21 / सम-चित्रक: चित्तीदार हरिण, जालम् में प्रयक्त विधिविशेष-बाहलकाच्छन्दसि, किसी रूप, -- जालकम् 1. बूंदों का समूह 2. हाथी के सूंड और अर्थ या नियम की विविध या असीम प्रयोजनीयता। शरीर पर बनाये गये चित्रण, चित्तियाँ, तन्त्रः 1. पासा बाहुलेयः [ बहुला+ढक] कातिकेय का विशेषण। 2. शतरंज की बिसात,-देवः शिव का विशेषणः,-पत्रः बाहुल्यम् [ बहुल+ष्यश् ] 1. बहुतायत, प्राचुर्य, यथे- एक प्रकार का भोजपत्र,-फलम मोती,-रेखक: ष्टता 2. बहुरूपता, अनेकता, विविधता 3. बस्तुओं 1. अनुस्वार 2. एक प्रकार का पक्षी,-रेखा विन्दुओं का सामान्य क्रम या प्रचलित व्यवस्था। की पंक्ति, ·-वासरः गर्भाधान का दिन / बाहबाहवि (अव्य०) [बाहुभिर्बाहुभिः प्रहृत्येदं प्रवृत्तं | बिब्बोकः, (बिब्बोक, बिब्बोक:) [?] 1. अभिमान के कारण युद्धम् ] भुजा से भुजा मिला कर, हस्ताहस्ति, धमा- अपने प्रियतम पदार्थ की ओर उदासीनता का प्रदर्शन सान युद्ध / —-मनाक प्रियकथालापे बिब्बोकोऽनादरक्रिया-प्रतापबाह्म (वि.) [ बहिर्भव:—ष्य , टिलोपः ] 1. बाहर का, रुद्र, या, बिब्वोकस्त्वतिगर्वेण वस्तुनीष्टेऽप्यनादर:-सा. बाहर की ओर का, बाहरी, बहिर्देश, बाहर स्थित द० 139 2. घमंड के कारण उदासीनता 3. केलि--विरहः किमिवानुतापयेद् वद बायविषयविपश्चि- परक या प्रीतिविषयक संकेत--संशय्य क्षणमिति तम् -- रघु० 8589, बाह्योद्याने-मेघ०७, कु०६।४६, निश्चिकाय कश्चिद्विब्बोकर्बकसहवासिनां परोक्षः बाह्यनामन 'बाहरी नाम', अर्थात् पत्र की पीठ पर --शि० 89 (विलास:-मल्लि.)। लिखा हुआ पता या शिरोनाम, सरनामा-मुद्रा० 1 | बिभित्सा [भि+सन्-+अ+टाप] भेदने की इच्छा, 2. विदेशी, अपरिचित--पंच०१ 3. बहिष्कृत, कट- बींधने की या छेद करने की इच्छा। घरे से बाहर-जातास्तदूर्वोरुपमानबाह्या:-कु० 136 | बिभित्सु (वि.) [भिद-सन+उ] छेदने या बींधने की 4. समाज से बहिष्कृत, जातिबहिष्कृत, हाः 1. अप- इच्छा / | विभीषणः [भी+सन् +ल्युट] एक राक्षस का नाम, रावण बाहर की ओर, बाहरी ढंग से। का भाई (यद्यपि वह जन्म से राक्षस था परन्तु तोभी वाह वृष्यम् [ बह वृच--ष्यत्र ] ऋग्वेद का परम्परागत सीता के अपहरण के कारण वह बड़ा खिन्न था, अध्यापन / उसने रावण को इस दुष्कृत्य के लिए बहुत बुरा भला विट् (भ्वा० पर०-बेटति) 1. शपथ लेना 2. अभिशाप कहा। सने बार-बार रावण को समझाया कि देना 3. चिल्लाना, जोर से बोलना। यदि जीवित रहना चाहते हो तो सीता को राम के बिटकः, -कम्, बिटका [=पिटक, पृषो० ] फोड़ा, पास वापिस पहुँचा दो। परन्तु उसने विभीषण की फुसी। चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया। अंत में जब बिडम् | बिड़+क] एक प्रकार का नमक / उसने देखा कि रावण का विनाश अवश्यंभावी है तो बिडालः [बिड़+कालन] 1. बिस्ला, बिलाब 2. आँख वह राम के पास चला गया और उनका पक्का मित्र का डेला। सन--पदः,-परकम 16 माशे के तोल बन गया। रावण की मृत्य के पश्चात् राम ने विभीका बट्टा। षण को लंका की राजगद्दी पर बिठा दिया। बिभीविडालक: बिडाल+कन् ] 1. बिलाव 2. आँख के बाहरी षण सात चिरंजीवियों में गिना जाता है-दे. भाग पर मल्हम लगाना,--कम् पीली मल्हम / 'चिरंजीविन्')। बिद्योजस (पं० [वेवेष्टि विट व्यापकमोजो यस्य विडोजाः, बिभ्रक्षः, विभ्रज्जिसुः [भ्रस्+सन ---उ, विकल्पेन इट] पृषो० वृद्धिः] इन्द्र का विशेषण, -श० -7 / 34 / / आग। For Private and Personal Use Only