________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D प्रत्युपलब्ध (भू० क.कृ.) [प्रति+उप+लभ् + क्त ] | [प्रथ् + अमच् ] 1. पहला, सबसे आगे का-रघु० वापिस प्राप्त, फिर लिया हुआ। 3 / 44, हि० 2 / 36, कि० 2 / 44 2. प्रमुख, मुख्य, प्रत्युपदेशः,-वेशनम् [प्रति+उप+विश+णिच्+घन, प्रधान, श्रेष्ठतम, बेजोड़, अनुपम-शि० 15142, ल्युट् वा ] आज्ञा-पालन कराने के लिए किसी को मनु० 3.147 3. आदि कालीन, अत्यंत प्राचीन, घेरना। प्राक्कालीन, प्राथमिक 4. पहले का, पूर्वकालीन, प्रत्युपस्थानम् [प्रति+उप+स्था+ ल्युट् ] आसपास, पहला, इससे पूर्व का-प्रथमसुकृतापेक्षया-मेघ० पड़ोस / 17, रघु० 10 // 67 5. (व्या० में) प्रथम पुरुष प्रत्युप्त (50 क. कृ.) [प्रति+व+क्त 11. जड़ा (-अन्य पुरुष या पाश्चात्यपदविज्ञान के अनुसार हुआ, या जमाया हुआ, जटित, भरा हुआ 2. बोय) तृतीय पुरुष), मः 1, प्रथम ( अन्य ) पुरुष 2. वर्ग हुआ 3. स्थिर किया हुआ, गाड़ा हुआ, दृढ़ता पूर्वक का प्रथम व्यंजन,-मा कर्तकारक,--मम् (अव्य०) टिकाया हुआ, या जमाया हुआ-मा० 5 / 10, उत्तर 1. पहले, प्रथमतः, सर्वप्रथम, कु० 724, रघु० 3 / 4 3 / 35, 46 / 2. पहले ही, पहले ही से, पूर्वकाल में-- रघु० 3 / 68 प्रत्युषः, प्रत्युषस् (नपुं०)[प्रत्योषति नाशयति अन्धकारम 3. तुरन्त, तत्काल 4. पहले - यात्रायै चोदयामास त -प्रति+उष्-क, प्रति+उ+असि] प्रभात, शक्तेः प्रथमं शरत्--रघु० 4 / 24, उत्तिष्ठेत्प्रथम भोर, तड़का। चास्य चरम चव संविशेत- मनु० 21194 5. अभी प्रत्यूषः, षम् [प्रति+ऊ नक] भोर, प्रभात, तड़का अभी, हाल में,-प्रथमम्, अनन्तरम्, ततः, पश्चात् -----प्रत्युषेषु स्कुटितकमलामौदमैत्रीकषायः–मेघ० 31, पहले, इसके बाद / सम० अर्धः, - धम् पूर्वाध, --ब: 1. सूर्य 2. आठ वस्तुओं में से एक वस्तु --आश्रमः चार आश्रमों में से पहला आश्रम अर्थात् का नाम / ब्रह्मचर्य आश्रम,--इतर (वि०) 'प्रथम की अपेक्षा प्रत्यूषस् (नपुं०) [प्रति+ऊष+असि ] भोर, प्रभात, | और' अर्थात् दुसरा,--उदित (वि.) पहले उच्चारण तड़का। किया हुआ-उवाच धाश्या प्रथमोदितं वच:---रधु० प्रत्यूहः [प्रति+ऊह+घञ्] रुकावट, बाधा, विघ्न, ३१२५,-कल्पः चलने के लिए बढ़िया मार्ग, प्रथम "-विस्मयः सर्वथा हेयः प्रत्यूहः सर्वकर्मणाम्-हि० 2 / 15 / नियम,-कल्पित (वि.) 1. पहले सोचा हुआ 2. पद प्रप। (भ्वा० आ०-प्रथते, प्रथितम्) 1. (ऐश्वर्य का) या महत्त्व की दृष्टि से सर्वोच्च,-ज (वि.) बढ़ाना 2. (कीति, अफवाह आदि का) फैलाना-तथा सबसे पहले पैदा हुआ,-दर्शनम् पहला दर्शन,-दिवसः यशोऽस्य प्रथते -- मनु० 11115 3. सुविख्यात होना, सबसे पहला दिन--मेध० २,--पुरुषः प्रथम पुरुष, प्रसिद्ध होना ---अतस्तदाख्यया तीर्थ पावनं भुवि पप्रथे अन्य पुरुष (अंग्रेजी पद्धति के अनुसार 'तृतीय पुरुष'), -----रषु० 15 / 101, अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः ---यौवनम् युवावस्था का आरंभ, किशोरावस्था, पुरुषोत्तमः-भग० 1518, शि० 9 / 16, 15 / 23, कु० -वयस् (नपुं०) बचपन, शैशव,—विरहः पहली बार 5 / 7, मेघ 24, रघु० 5 / 65, 976 4. प्रकट होना, का वियोग,-वैयाकरण: 1. अत्यंत पूज्य वैयाकरण उदय होना, प्रकाश में आना-श्रमो नु तासां मदनो 2. व्याकरण में शिशिक्षु, साहसः दण्ड को निम्नतम न पप्रथे-कि० 8 / 53 1 (चुरा० उभ०-प्रथयति या प्रथम स्थिति,-सुकृतम् पूर्वकृपा या सेवा। ते, प्रथित) 1. फैलाना, उद्घोषणा करना-सज्जना प्रथा [प्रथ+अ+टाप् ] ख्याति, प्रसिद्धि-शि० 15 / 27 / एव साधूनां प्रथयन्ति गुणोत्करम्-दृष्टान्त० 12, भट्टि. प्रथित (भू० क० कृ०) [प्रथ्+क्त] 1. बढ़ाया हुआ, 17.107 2. दिखलाना, प्रकट करना, प्रदर्शन विस्तार किया हुआ 2. प्रकाशित, उद्घोषित, फैलाया करना, प्रकाशित करना, सूचित करना -परमं वपुः हआ, घोषणा की हई, प्रथितयशसां भासकविसौमिल्लप्रथयतीव जयम् -कि० 635, 5 / 3, शि० 1025, कविमिश्रादीनाम-मालवि० 1 3. दिखाया गया, रत्न०४।१३, श० 3 / 16 3. बढ़ाना विस्तृत करना, प्रदर्शन किया गया, प्रकट किया गया, प्रकाशित किया ऊंचा करना, अधिक करना, बड़ा करना-भर्तृ० | गया 4. विख्यात, प्रसिद्ध, विश्रुत (दे० 'प्रथ्' भी)। 2 / 45 4. खोलना। प्रथिमन् (पुं०) [ पृथोर्भाव:-पथ+इमनिच] चौड़ाई, प्रवनम् [प्रथल्यट] 1. फैलाना, विस्तार करना विशालता, विस्तार, महत्ता--प्रथिमानं दधानेन जधनेन 2. बखेरना 3. फेंकना, आगे की और बढ़ाना घनेन सा--भट्टि० 4 / 17, (गुणाः) प्रारंभसूक्ष्माः 4. बतलाना, प्रकाशित करना, प्रदर्शन करना 5. वह प्रथिमानमापु:---रघु० 18 / 48 // स्थान जहाँ कोई चीज फैलायी जाय। प्रथिविः (स्त्री०) [ पृथिवी, पृषो०] पृथ्वी, धरती। प्रथम (वि.) (पुं०, कर्तृ०, ब०व०-प्रथमे या प्रथमाः) | प्रथिष्ठ (वि.) [पृथु / इष्ठन्, प्रथादेशः] सबसे बड़ा, For Private and Personal Use Only