________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 681 ) 5. व्यस्त, लगा हआ 6, फूर्तीला तेज 7. सुशील, विनीत 6. (छन्द० में) संभावित भेदों समेत छन्द की ह्रस्व -तः हाथ की खुली हथेली, अंजलि,-तः,-तम् दो तथा दीर्घ मात्राओं की धोतिका तालिका / / पल का माप,---ता टांग / सम०-जः पुत्रों का विशिष्ट / प्रस्ताव: [प्रस्तु +घञ ] 1. आरंभ, शुरू 2. आमुख वर्ग, व्यभिचार जनित पुत्र, कुंडगोलकरूप / 3. उल्लेख, संकेत, संदर्भ -नाममात्रप्रस्तावः . श० प्रसृतिः (स्त्री०) [प्र+स+क्तिन् ] 1. आगे जाना, 7 4. अवसर, मौका, समय, ऋतु, उपयुक्तकाल प्रगति 2. बहना 3. फलाये हए हाथ की हथेली, --स्वराप्रस्तावोऽयं न खल परिहासस्य समय:--भा० अंजलि 4. मट्ठी भर (यही दो पल की माप समझी 9 / 44, शिष्याय बहतां पत्य: प्रस्तावमदिशशा जाती है)--परिक्षीणः कश्चित्स्पृहयति यवानां प्रसतये ---शि० 28 5. प्रवचन का प्रयोजन, विषय, शीर्षक ... भर्तृ० 2 / 45, याज्ञ० 21112 / 6. नाटक की प्रस्तावना दे० 'प्रस्तावना' नीचे / सम० प्रसृत्वर (वि०) [प्र+-स-क्वरप्, तुकागमः ] इधर उधर ----यज्ञः ऐसा वार्तालाप जिसमें प्रत्येक अन्तर्वादी फैलने वाला--भामि० 4 / 1 / भाग ले। प्रसृमर (वि.) [प्र+सृ+क्मरच् ] बहता हुआ, चूने प्रस्तावना [प्रस्तु+णिच् +युच्+टाप् ] 1. प्रशंसित वाला, टपकने वाला। या उल्लिखित होने का कारण बनना, प्रशंसा,सराहना प्रसृष्ट (भू० क. कृ.) [प्र सज्+क्त ] 1. एक ओर 2. शुरू, आरंभ-आर्यबालचरितप्रस्तावनाडिण्डिमः डाला हुआ, त्यागा हुआ 2. घायल, क्षतिग्रस्त,-ष्टा महावी०-१५४ 3. परिचय, भूमिका, आमुख-प्रस्ताफैलाई हुई अंगुली (अगुल्यः प्रसृता यास्तु ताः प्रसृष्टा वना इयं कपटनाटकस्य-मा० 2 4. नाटक के उदीरिताः)। आरंभ में सूत्रधार तथा किसी एक पात्र के बीच में प्रसेकः [ प्र+सिच+घन ] 1. बहना, रिसना, टपकना हआ परिचयात्मक वार्तालाप (इसमें नाटककार तथा 2. छिड़कना, आई करना 3. उगिरण, प्रस्रवण उसकी योग्यता का परिचय देकर श्रोताओं के सम्मुख -ऋतु० 3 / 6 4. उद्वमन, कै। नाटक की घटनाओं को रक्खा जाता है) परिभाषा के प्रसेदिका [ =प्रसीदिका, पृषो०] छोटा उद्यान, वाटिका / लिए दे० 'आमुख'। प्रसेवः, प्रसेवकः प्र-सित् +घञ, प्रसेव+कन् ] | प्रस्तावित (वि.) [प्र-+स्तु+णिच्+क्त ] 1 आरंभ 1. थैला, (अनाज के लिए) बोरी 2. चमड़े को बोतल किया हुआ, शुरू किया हुआ 2. उल्लिखित, इङ्गित 3. काष्ठ का बना छोटा उपकरण जो वीणा की गर्दन ---मा० 3 / 3 / के नीचे लगाया जाता है जिससे कि उसका स्वर अपेक्षा- | प्रस्तिरः =प्रस्तरः नि० इत्वम् ] पर्णशय्या, पुष्पशय्या। कृत कुछ गहरा हो जाय / प्रस्तोत,-म (वि.) [प्र-+-स्त्यै क्त, संप्र०, पक्षे तस्य प्रस्कन्दनम् [ प्रस्किन्द +ल्युट ] 1. कूद जाना, छलांग मः] 1. कोलाहल करने वाला, शब्दायमान 2. भीड़लगाना 2. विरेचन, जुलाब, अतिसार,- नः शिव का भड़क्का, झुण्ड बनाते हुए। विशेषण / प्रस्तुत (भू० क. कृ.) [प्र+स्तु-क्ति] 1. जिसकी प्रस्कन्न (भू० क कृ०) [प्र+स्कन्द --क्त ] 1. फलांगा प्रशंसा की गई हो, या स्तुति की गई हो 2. आरंभ हुआ, छलांग लगाकर पार किया हुआ 2. पतित, किया हुआ, शुरू किया हुआ 3. निष्पन्न, कृत, कार्याटपका हुआ 3. परास्त,-न्न: 1. जातिबहिष्कृत न्वित 4. घटित 5. उपागत 6. प्रस्तुत किया गया, 2. पापी, अतिक्रमणकारी। उद्घोषित, विचाराधीन या विचारणीय (दे० प्रपूर्वक प्रस्कुन्दः [ प्रगतः कुन्दं चक्रम् -प्रा० स०] गोलाकार स्तु), तम् 1. उपस्थित विषय, विचाराधीन विषय वेदी। --अधुना प्रस्तुतमनस्रियताम् 2. (अलं० शा०) प्रस्खलनम् [प्रसवल + ल्युट ] 1. लड़खड़ाना 2. डगम- विचार के विषय की रूपरेखा बनाना, उपमेय, दे० गाना, गिर जाना। 'प्रकृत'; अप्रस्तुतप्रशंसा सा या सैव प्रस्तुताश्रया प्रस्तरः [प्रस्तु-अच् ] 1. पर्णशय्या, पुष्पशय्या ---काव्य० 10 / सम०-अकुरः एक अलंकार जिसमें 2. पर्यक, खटिया 3. समतल शिखर, हमवार, समतल श्रोता के मन में निहित किसी बात को प्रकाशित 4. पत्थर, चट्टान 5. मूल्यवान् पत्थर, रत्न / करने के लिए संचारी परिस्थिति का उल्लेख किया प्रस्तरणम्,--णा [ प्रस्तु ल्यद ] 1. पलंग 2. शय्या जाता है, दे० चन्द्रा० 5 / 64, और कुव० (प्रस्तुतांकुर 3. बिछौना। के नीचे)। प्रस्तारः [प्रस्तुघा ] 1. बखेरना, फैलाना, आच्छा - | प्रस्थ (वि०) [प्र+स्था+क] 1. जाने वाला, दर्शन करने दित करना 2. पुष्पशय्या, पर्णशय्या 3. पलंग, खाट वाला, पालन करने वाला--यथा 'वानप्रस्थ' में 4. चपटी सतह, समतल हमवार 5. बनस्थली, जंगल | 2.यात्रा पर जाने वाला 3.फैलाने वाला, विस्तार करने For Private and Personal Use Only