________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 625 ) पराक्रम (विप० देव) ...एवं पुरुषकारेण विना देवं न / चली गई। इस प्रकार उर्वशी ने क्रमशः पांच पुत्रों सिध्यति हि० प्र० 32, देवे पुरुषकारे च कर्मसिद्धि- को जन्म दिया। परन्तु पुरूरवा उसे अपनी जीवन यवस्थिता-याज्ञ० 11349, तु० 'भगवान उनकी संगिनी बनाना चाहता था अतः उसने गंधों के सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते निर्देशानुसार यज्ञ का अनुष्ठान किया जिसके फलहैं' पंच० 5 / 30, कि० 5 / 52 2. पौरुष, वोर्य, स्वरूप उसका मनोरथ पूरा हुआ। विक्रमोर्वशीय -कुणपः, -पम् मानवशव- केसरिन् (पुं०) 'नर- में दी गई कहानी कई अंशों में भिन्न प्रकार से बताई सिंह' विष्णु का चौथा अवतार---गुरुपकेसरिणश्च गई है इसी प्रकार ऋग्वेद के आधार पर शतपथ पुरा नखः-श० 7 / 3, ...ज्ञानम् मानवजाति का ज्ञान ब्राह्मण में दिया गया वृत्तान्त भी भिन्न प्रकार का ---दघ्न,--द्वयस (वि०) मनुण्य की ऊँचाई के है, जहाँ कि यह बतलाया गया है कि उर्वशी ने दो बराबर लंबा द्विष् (पु०) विष्णु का शत्रु, नायः शर्तों पर पुरूरवा के साथ रहना स्वीकार किया। 1 चमपति, सेनापति 2. राजा, पशुः नरपश, कर- पहली शर्त यह कि उसके दो मेंढे जिनको वह पुत्रवत् व्यक्ति --तु० नरपशु, पुंगवः, -पुंडरीकः अाठपुरुष, / प्यार करती है, उसके पलंग के पास ही बंधेगे तथा प्रमुख व्यक्ति,-बहमानः मनुष्यजाति की प्रतिष्ठा उससे कभी दूर नहीं ले जाये जायंगे; और दूसरे यह ....-भर्त० 319, --मेघः नरमेध, पुरुषयज्ञ,...- वरः कि वह उर्वशी को कभी भी नंगा दिखाई न दे। विष्णु का विशेषण,--वाहः 1. गरुड़ का विशेषण 2. उसके पश्चात एक बार गंधर्व मेंढों को उठा कर ले 2. कुबेरं को उपाधि,--व्याघ्रः, शार्दूलः, सिंहः गये, अतः उर्वशी भी अन्तर्धान हो गई)। 1. 'मनुष्यों में शेर' पूज्य या प्रमुख व्यक्ति 2. शूर-पुरोटिः पूरम ---अट+इन] 1. नदी का प्रवाह 2. पत्तों वीर, बहादुर आदमी,--समवायः मनुष्यों का समूह, की सरसराहट या मर्मरध्वनि, पत्र शब्द / / .-सक्तम ऋग्वेद के दसवें मण्डल का ९०वाँ सूक्त | परोडास. परोधस आदि-- दे० 'पूरस्' के अन्तर्गत / (यह बहुत ही पावन माना जाता है)। पूर्व (म्वा० पर०-पूर्वति) 1. भरना 2. बसना, रहना पुरुषकः,-कम् [पुरुष+कन्] मनुष्य की भांति दो पैरों 3. निमंत्रित करना (अन्तिम दो अर्थों में चुरा० पर० पर बड़ा होने वाला, घोड़े का पालना.....श्रीवृक्षकी | मानी जाती है। पुरुपकोनमितानकाय:--शि० 5/56 / पुल (वि.) [पूल-क महान् विशाल, व्यापक विस्तृत, पुरुषता, स्वम् [ पुरुष तल टाप, त्व वा ] 1. पुरुषत्व. .ल: रोमाञ्च होना / मर्दानगी, पराक्रम 2. वीर्य / पुलकः [तुल--कन्] 1. शरीर के बालों का सीधा खड़ा पुरुषायित (वि०) पुरुष-क्यङक्त मनुष्य को भांति होना, ( भय या हर्प से ) शिहरन, रोमांच--चारु आचरण करने वाला, तम् 1. मनुष्य का अभिनय च चंब नितंबवती दयितं पुलकैरनकले-- गीत० 1, करना, मनुष्यपात्र का अभिनय, संचालन 2. एक मृगमद तिलकं लिखति सपूलकं मगमिव रजनीकरे-- प्रकार का स्त्रीमैथुन जिससे स्त्री पुरुषवत् आचरण 7, अमर 57,77 2. एक प्रकार का पत्थर या रत्न करती है-आकृतिमवलोक्य कयापि वितकितं पुरुया- 3. रत्न में दोप 4. एक प्रकार का खनिज पदार्थ वितं अमिलतालेखनेन वैदग्ध्यादभिव्यक्तिमपनीतम् - 5. अनपिड जिससे हाथी पलते हैं 6. हरताल 7. शराब काव्य 10 / पीने का गिलाम 8. एक प्रकार की सरसों, राई / पुरूरवस् (10) [पुरु प्रत्रं यथास्यात्तथा रौति--पूरु-1- सम० ---अंगः वरुण का जाल, आलयः कुवेर का र असि नि० साधुः। बुध और इला का पुत्र, चन्द्र विशेषण, उद्गमः शरीर के रोंगटों का खड़ा होना, वंशी राजकुल का प्रवर्तक, (मित्र और वरुण के शाप रोमांच होना। के कारण इस पृथ्वी पर उतरती हई उर्वशी को पुलकित (वि.) [पुलक+इतच] जिसके रोंगटे खड़े हो पुरूरवा ने देखा और उस पर आसक्त हो गया। गये है, रोमांचित, गद्गद, आनन्दित, हर्षोत्फुल्ल / उर्वशो भी उस राजा को देख कर उस के लोकविश्रुत | पुलकिन् (वि०) (स्त्री०-नो) पुलक-|-इनि] रोमांचित, सौन्दर्य तथा सवाई, भक्ति, उदारता आदि गणों के जिसके शरीर के रोंगटे खड़े हो गये है,-पुं० कलम्ब कारण उस पर मुग्ध हो गई, फलनः उसकी पत्नी बन वृक्ष का एक प्रकार / गई। बहुत दिनों तक वह मुख पूर्वक रहे, एक पुत्र | पुलस्तिः , पुलस्त्यः [पुल + क्विप्=पुल+अस्+-ति, पुलको जन्म देने के पश्चात् उर्वशी फिर स्वर्ग चली गई। नि-यत एक ऋषि का नाम, ब्रह्मा का एक मानस राजा ने उसके वियोग के शोक में वदा विलाप किया। | पुत्र मनु० 235 / उर्वशी प्रसन्न हो दोबारा उसके पास आकर फिर पुला | पुल+टाप् ] मदु ताल, गले का कौव्वा, तालु रहने लगी और एक पुत्र को जन्म देकर फिर स्वर्ग ! जिह्वा। For Private and Personal Use Only