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का पुत्र, अर्घ दिव्य पक्षी [ यह दशरथ का घनिष्ठ -याज्ञ० २।२५, मनु० २।११० 4. मन्दीकृत, उदासीन मित्र था, जब रावण सीता का अपहरण करके ले या चेतनाशून्य किया हुआ, गुणविवेचनशून्य अरसिक जा रहा था तो जटायु ने सीता का रुदन और करुण- ---वेदाभ्यासजडः कथं नु विषयव्यावृत्तकौतुहल: क्रन्दन सुना, फलत: वह बेधड़क हो रावण से भिड़ --विक्रम० ११९ 5. हड़बड़ा देने वाला, जड बना देने गया, घमासान युद्ध हुआ, परन्तु वह सीता को रावण वाला, संज्ञाशन्य करने वाला 6. गंगा 7. वेद (दायभाग) के पजे से न छुड़ा सका और स्वयं घायल हो पढ़ने के अयोग्य,-डम् 1. पानी 2. सीसा। सम० प्राणान्तक पीड़ा से तड़पता रहा। अन्त में सीता -क्रिय (वि.) मन्थर, दीर्घसूत्री।। की खोज करते हुए राम उसके पास से निकले तो ।
जउता,-स्वम् [जड+तल-टाप, जड+त्व वा] 1. मन्दता, उस दयाल जटायु ने राम को यह बतला कर कि
कार्य में अरुचि, आलस्य 2. अज्ञान, बुद्धपन 3. (अल. सीता को रावण उठा कर ले गया है, अन्तिम श्वास
___ शा० में) ३३ संचारी भावों में एक-मन्दता, सा० लिया। राम और लक्ष्मण ने उसका विधिपूर्वक
द० १७५ । अन्त्येष्टि संस्कार किया ] 1
जडिमन् (पुं०) [ जड+ इमनिच् ] 1. ठण्डक 2. जडता जटाल (वि.) [जटा+लच] 1. जटाजूटधारी 2. (चिपके
3. मन्दता, उदासीनता 4. मूर्छा, संज्ञाहीनता। हुए बालों की भांति) एक स्थान पर इकट्ठे किये हुए | जत (नपं०) [जायते वृक्षादिभ्यः जन्+उ त आदेशः] --भामि० ११३६,-ल: गूलर का पेड़ ।
लाख । सम०--अश्मकम् शिलाजीत,-पुत्रकः शतरंज जटिः (टी) (स्त्री०) [जट+-इन्, जटि+ ङीष्] 1. गूलर __ का मोहरा,-रसः लाख, महावर । __ का पेड़ 2. उलझ पुलझ कर चिपके हुए 3. संघात, | जतुकम् [जतु कन्] लाख, महावर । समुच्चय।
जतुका [जतुक+टाप्] 1. लाख 2. चमगादड़ । जटिन् (वि०) (स्त्री०-नी) [जटा+इनि ] जटाधारी, जतुकी, जतूका [जतुक+डीष, जतुका नि० दीर्घः]
(५०) 1. शिव का विशेषण 2. प्लक्ष का वृक्ष, पाकड़ । चमगादड़। का पेड़।
जत्रु (नपुं०) [जन्+रु तोऽन्तादेशः] ग्रीवास्थि, हंसुली। जटिल (वि.) [जटा+इलच्] 1. (संन्यासियों की भांति)।
| जन (दिवा० आ०-जायते, जात-क० वा. जन्यते या जटाधारी,-विवेश कश्चिज्जटिलस्तपोवनम्-कु० जायते) पैदा होना, उत्पन्न होना (अपा० के साथ), ५।३०, (यहाँ 'जटिल' शब्द 'संज्ञा' भी है और इसका
अजनि ते वै पुत्र:-ऐत०, मनु० ११९, ३।३९, ४१, अर्थ है 'संन्यासी') 2. पेचीदा, अव्यवस्थित, अन्तर्मि
प्राणाद्वायुरजायत- ऋग्० १०१९०११२, मनु०१०१८, श्रित, गडमड किया हुआ-विजानन्तोऽप्येते वयमिह
३।७६, ११७५ 2. उठना, फूटना (पौधे की भांति) विपज्जालजटिलान्, न मुञ्चामः कामानहह गहनो उगना 3. होना, बन जाना, आ पड़ना, 'घटित होना, मोहमहिमा--भर्तृ० ३।२१ 3. सघन, अभेद्य,-ल:
घटना-अनिष्टादिष्ट लाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा 1. सिंह 2. बकरा।
-हि० ११६, रक्तनेत्रोऽजनि क्षणात्-भट्टि०६।३२, जठर (वि०)[ जायते जन्तुर्गर्भो वास्मिन् ... जन+अर ठान्त याज्ञ० ३।२२६, मनु० १२९९, प्रेर० जनयति जन्म
देश:-तारा०] कठोर. सख्त, दृढ़,--:,-रम् पेट, देना, पैदा करना, उत्पन्न करना-अन-1. बाद में उदर-जठरं को न बिभर्ति केवलम्--पंच० १।२२ पैदा होना-पुत्रिकायां कृतायां तु यदि पुत्रोऽनुजायते-- 2. गर्भाशय 3. किसी वस्तु का भीतरी भाग। सम. मनु० ९।१३४ 2. समरूप पैदा होना-असौ कुमारस्त---अग्निः पेट में स्थित अग्नि जो आहार को पचाने मजोऽनुजात:-रघु० ६१७८ (तस्माज्जातः-मल्लि.), का काम करती है, आमाशय की गिल्टियों से निकलने अभि-, 1. पैदा होना, उत्पन्न होना, उदय होना, वाला रस, -आमयः जलोदर रोग,-ज्वाला, -व्यथा फुटना-कामाक्रोधोऽभिजायते--भग० २।६२० हि. उदर-ज्वाला, भूख का कष्ट, शूल -यंत्रणा, -यातना श२०५ 2. होना, घटित होना 3. परिणत होना गर्भवास का कष्ट ।
4. उच्चकुल में जन्म होना 5. उत्पन्न होना-भग० जड (वि०) [जलति घनीभवति जल+अच, लस्य ड: ] १६१३, उप-, 1. पैदा होना, उत्पन्न होना, निकलना,
1. शीतल, जमा हुआ या ठंडा, शीत या ठिठुरा देने उगना-ऊष्मणश्चोपजायते-मनु० ११४५, सङ्गस्तेषवाला 2. मन्द, लूला-लंगड़ा, गतिहीन, जडीकृत पजायते-भग० २१६२, १४|११ 2. फिर जन्म लेना,
-चिन्ताजडं दर्शनम् - श० ४।५, परामशन हर्षजडेन याज्ञ० ३।२५६, भग० १४१२, 3. होना, घटित होना। पाणिना--रघु० ३२६८, २१४२ 3. निश्चेतन, । प्र-, वि-, सम्-, 1. उगना, निकलना, फूटना 2. पैदा चेतनारहित, विवेकशून्य, मन्दबुद्धि-जडानन्धान पंगुन् होना, उत्पन्न होना। ..'त्रातुम-गंगा० १५, इसी प्रकार जडघी, जडमति | जनः [जन्+अच् ] 1. जीवजन्तु, जीवित प्राणी, मनुष्य
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