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तद् (सर्व० वि० ) [ कर्तृ० ए० व० – सः (पुं० ), सा | ( स्त्री०), तत् (नपुं० ) ] 1. वह, अविद्यमान वस्तु का उल्लेख ( तदिति परोक्षे विजानीयात् ) 2. वह (प्रायः 'यद्' का सहसम्बन्धी ) – यस्य बुद्धिर्बलं तस्य पंच० १ 3. वह अर्थात् प्रख्यात-सा रम्या नगरी महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च तत् - भर्तृ० ३।३७, कु० ५/७१ 4. वह (किसी देखे हुए या अनुभूतार्थ का उल्लेख ) । उत्कम्पनी भयपरिस्खलितांशुकांन्ता ते लोचने प्रतिदिशं विधुरे क्षिपन्ती - काव्य ० ७, भामि० २५ 5. वही, समरूप, वह, विल्कुल वही, ( प्रायः 'एव' के साथ ) - तानीन्द्रियाणि सकलानि तदेव नाम - भर्तृ० २/४० कभी कभी 'तद्' के रूप उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष के सर्वनामों के साथ प्रयुक्त होते हैं, साथ ही बल देने के लिए निर्देशक तथा सम्बन्धबोधक सर्वनामों के साथ भी ( इसका अनुवाद प्राय: 'इसलिए' 'तो' करते । हैं ) - सोहमिज्याविशुद्धात्मा - रघु० १।६८, ( मैं वही व्यक्ति, अतः मैं, मैं अमुक व्यक्ति), स त्वं निवर्तस्व विहाय लज्जाम् २।४०, 'अत: तुम्हें वापिस आ जाना चाहिए'; जब 'तद्' की आवृत्ति की जाय तो इसका अर्थ होता है " कई ' 'भिन्न २” – तेषु तेषु स्थानेषु का० ३६९, भग० ७१२०, मा० ११३६, तेन तद् का करण० रूप, क्रिया विशेषण केवल के साथ 'इसलिए 'इस कारण ' ' इस विषय में' 'इसी कारण' अर्थों को प्रकट करता है, तेन हि यदि ऐसा है तो फिर ( अव्य० ) 1. वहाँ, उवर 2. तब उस अवस्था में, उस सम 3. इसी कारण, इसीलिए, फलस्वरूप - तदेहि विमर्दक्षमां भूमिमवतरावः - उत्तर० ५, मेघ० ७ ११०, रघु० ३।४६ 4. तब ( 'यदि' का सहसम्बन्धी ) तथापि -- यदि महत्कुतूहलं तत्कथयामि - का० १३६, भग० १।४५ । सम० - अनन्तरम् ( अव्य० ) उसके पश्चात् तुरन्त, तो फिर, अनु (अव्य० ) उसके पश्चात्, बाद मैं ---सन्देशं मे तदनु जलद श्रोष्यसि श्रोत्र पेयम् - मेघ० १३, रघु० १६/८७, मा० ९१२६ - अन्त ( वि० ) उसी में नष्ट होने वाला, इस प्रकार समाप्त होने वाला अर्थ, अर्थीय ( वि० ) 1. उसके निमित्त अभिप्रेत 2. उस अर्थ से युक्त, अहं (वि०) उस योग्यता से युक्त, अवधि ( अव्य० ) 1. वहाँ तक, उस समय तक, तब तक - तदवधि कुशली पुराणशास्त्रस्मृति | शतचारुविचारजो विवेक:- भामि० २।१४ 2. उस समय से लेकर तब से श्वासो दीर्घस्तदवधि मुखे पाण्डिमा - भामि० २०६९ – एकचित्त ( वि० ) उस पर ही मन को स्थिर करने वाला, कालः विद्यमान क्षण, वर्तमान समय, घी (वि०) समाहित, प्रत्युत्पन्नमति, -- कालम् (अव्य० ) अविलम्ब, तुरन्त, क्षण: 1. इस क्षण, फ़िलहाल 2. विद्यमान या वर्तमान समय रघु०
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तदा
( अव्य० ) [ तस्मिन् काले तद्+दा ] 1. तब, उस समय 2. फिर उस मामले में ('यदा' का सहसंबंधी ) भग० २५२, ५३, मेघ० ११५२, ५४-५६, यदा यदा - तदा तदा 'जब कभी' तदा प्रभृति तब से, उस समय से लेकर - कु० १।५३ | सम० मुख ( वि० ) आरब्ध, उपक्रांत या शुरू किया हुआ, (खम् ) आरम्भ | तदात्वम् [ तदा + त्व | मौजूदा समय, वर्तमान काल । तदानीम् ( अव्य० ) [ तद् + दानीम् ] तब, उस समय ।
१५१, - क्षणम्, क्षणात् ( अव्य० ) तुरन्त, प्रत्यक्षतः, फ़ौरन - रघु० ३।१४, शि० ९०५, याज्ञ० २।१४, अमरु ८३, - - क्रिया ( वि० ) बिना मजदूरी के काम करने वाला, गत ( वि०) उस ओर गया हुआ या निदेशित, तुला हुआ, उसका भक्त, तत्सम्बन्धी, गुणः एक अलंकार (अलं० ) - स्वमुत्सृज्य गुणं योगादत्युज्ज्वलगुणस्य यत् वस्तु तद्गुणतामेति भण्यते स तु तद्गुणः -- काव्य० १०, दे० चन्द्रा० ५।१४१ - ज ( वि० ) व्यवधानशून्य, तात्कालिक, – ज्ञः जानने वाला, प्रतिभाशाली, बुद्धिमान्, दार्शनिक, तृतीय (त्रि०) उसी कार्य को तीसरी बार करने वाला, धन (वि०) कंजूस, दरिद्र, -- पर ( वि० ) 1. उसका अनुसरण करने वाला, पश्चवर्ती, घटिया 2. उसी को सर्वोत्तम पदार्थ मानने वाला, बिल्कुल तुला हुआ, नितान्त संलग्न, उत्सुकतापूर्वक व्यस्त ( प्रायः समास में प्रयोग ) -सम्राट् समाराधनतत्परोऽभूत् रघु० २५, १६६, मेघ० १०, याज्ञ० ११८३, मनु० ३१२६२, परायण ( वि० ) पूर्णतः संलग्न या आसक्त, पुरुष: 1. मूल पुरुष, परमात्मा 2. एक समास का नाम जिसमें प्रथम पद प्रधान होता है, या जिसका उत्तरपद पूर्वपद द्वारा परिभाषित या विशिष्ट कर दिया जाता है, शब्द की मूल भावना भी स्थिर रहती है - यथा, तत्पुरुषः, तत्पुरुष कर्मधारय येनाह् स्यां बहुव्रीहिः उद्भट - पूर्व ( वि० ) पहली बार घटने वाला, या होने वाला, -- अकारि तत्पूर्वनिबद्धया तथा कु० ५११०, ७३०, रघु० २४२, १४।३८ 2. पूर्व का, पहला, प्रथम (वि०) पहली बार ही उस कार्य को करने वाला, -बल: एक प्रकार का बाण, भावः उसके अनुरूप, --मात्रम् 1. केवल वह, सिर्फ़ मामूली, अत्यन्त तुच्छ मात्रा युक्त 2. ( दर्शन ० ) सूक्ष्म तथा मूलतत्त्व (उदा० शब्द, रस, स्पर्श, रूप और गन्ध), --- वाचक (वि०) उसी को संकेतित या प्रकट करने वाला, विद् (वि०) 1. उसको जानने वाला 2. सचाई को जानने वाला, - विध (वि०) उस प्रकार का, रघु० २१२२, कु० ५/७३, मनु० २।११२, हित (वि०) उसके लिए अच्छा, ( : ) एक प्रत्यय जो प्रातिपदिक शब्दों के आगे व्युत्पन्न शब्द बनाने के लिए लगाया जाता है ।
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