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उन्होंने भी प्रशंकु ने
उन्होंने
---पुटा दुर्गा का विशेषण,--पुण्डम,-पुण्डकम् चन्दन, राख या गोबर से बनाई हई तीन रेखाएँ, पुरं 1. तीन नगरों का समूह 2. धुलोक, अन्तरिक्ष और भूलोक में मय राक्षस द्वारा बनाये गये सोने, चाँदी और लोहे के ३ नगर (देवताओं की प्रार्थना पर यह तीनों नगर--- उनमें रहने वाले राक्षसों समेत शिव जी द्वारा जला दिये गये)--कु० ७१४८, अमरु २, मेघ० ५६ भर्तृ० २१२३, (रः) इन नगरों का अधिपति राक्षस °अन्तकः
अरिः, नः, दहनः द्विष्, (पुं०) हरः शिव के विशेषण-भर्तृ० २।१२३, रघु० १७.९४, दाहः | तीन नगरों का जलाया जाना-कि० ५।१४, (-री) जबलपुर के निकट एक नगर जो पहले चेदिदेश के राजाओं की राजधानी था-2. एक देश का नाम,-पौरुष (वि०) तीन पीढ़ियों से सम्बन्ध रखने वाला, या तीन पीढ़ियों तक जलने वाला,—प्रस्तुतः वह हाथी जिससे मद का स्राव हो रहा हो,-फला तीन फलों (हरड़, बहेड़ा और आँवला) का संघात, बलि:,-बली,
-वलिः, ---वली स्त्री की नाभि के ऊपर पड़ने वाले तीन बल (जो सौन्दर्य का चिह्न समझे जाते हैं) -झामोदरोपरिलसत्त्रिवलोलतानाम्-भर्तृ० १.९३, ८१, तु. कु० १२३९,भवम् स्त्रीसहवास, मैथुन, स्त्रीसम्भोग,-भुजम् त्रिकोण,-भुवनम् तीन लोक -पुण्यं या यास्त्रिभुवनगुरोर्धाम चण्डीश्वरस्य---मेघ० ३३, भर्तृ० १२९९,---भूमः तिमंजिला महल,-मार्गा गंगा ---कु० ११२८, -मुकुटः त्रिकूट पहाड़,-मुखः बुद्ध का एक विशेषण, --मूर्तिः हिन्दुओं के त्रिदेव--ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त रूप--कु० २।४,-यष्टि: तीन लड़ों का हार,-यामा रात्रि (तीन पहर वाली --आरम्भ और अन्त का आधा आधा पहर इससे पृथक है)-संक्षिप्येत क्षण इव कथं दीर्घयामा त्रियामा --मेघ० १०८. कु०७।२१, २६, रघु० ९।७०, विक्रम ३।२२,--योनिः तीन कारणों (क्रोध, लोभ, और मोह) से होने वाला अभियोग,-रात्रम् तोन रातों (तथा दिनों) का समय,-रेखः शंख,-लिंग (वि.) तीनों लिंगों में प्रयुक्त अर्थात् विशेष, (गः) एक देश जिसे तैलंग कहते हैं, (गी) तीनों लिंगों की समष्टि, लोकम् तीनों संसार, ईशः सूर्य नाथः तीनों लोकों का स्वामी, इन्द्र का विशेषण रघु० ३।४५ 2. शिव का विशेषण ----कु० ५।७७ (—को) तीनों लोकों को समष्टि, विश्व ---सत्यामेव त्रिलोकी सरिति हरशिरश्चम्बिनी विच्छटायाम् --भर्त० ३।९५, शा० ४।२२, वर्ग: 1. सांसारिक जीवन के तीन पदार्थ-- अर्थात धर्म, अर्थ
और काम--कु० ५।३८ 2. तीन स्थितियाँ हानि, स्थिरता और वृद्धि-क्षय' स्थानं च वृद्धिश्च त्रिवर्गो नीतिवेदिनाम----अमर०,--वर्णकम पहले तीन वर्णों ।
(ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) का समाहार,-वारम् (अव्य०) तीन वार, तीन मर्तबा,-विक्रमः वामनावतार विष्णु,-विद्यः तीनों वेदों में व्युत्पन्न ब्राह्मण -विष (वि०) तीन प्रकार का, तेहरा,--विष्टपम्, -पिष्टपम् इन्द्रलोक, स्वर्ग,—त्रिविष्टपस्येव पति जयन्त:-रघु० ६।७८, सद् (पुं०) देवता-वेणिः,
--णी (स्त्री) प्रयाग के निकट त्रिवेणी संगम जहाँ गंगा यमुना और सरस्वती मिलती है,--वेवः तीनों वेदों में निष्णात ब्राह्मण,-शडकः अयोध्या का विख्यात सूर्य वंशी राजा, हरिश्चन्द्र का पिता (त्रिशंकु बुद्धिमान् धर्मात्मा और न्याय-परायण राजा था, परन्तु उसमें यह एक बड़ा दोष था कि वह अपने व्यक्तित्व को बहुत प्रेम करता था। उसने इसी शरीर से स्वर्ग जाने की इच्छा से यज्ञ करना चाहा, फलतः उसने अपने कूलगरु वशिष्ठ से यज्ञ कराने की प्रार्थना की, परन्तु जब उन्होंने इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो उसने उनके १०० पुत्रों से प्रार्थना की, परन्तु उन्होंने भी इसके प्रस्ताव को बेहूदा बता कर ठुकरा दिया। त्रिशंकु ने उन सबको कायर और नपुंसक कहा, और इसके बदले उन्होंने उसे 'चाण्डाल बनने' का शाप दे दिया। जब त्रिशंकू की ऐसी दुर्दशा हई तो विश्वामित्र ने जिसका परिवार एक दुर्भिक्ष के समय त्रिशंकु का आभारग्रस्त हो गया था---उसका यज्ञ सम्पन्न कराना स्वीकार कर लिया। उसने यज्ञ में देवताओं का आवाहन किया-जब देवता यज्ञ में न आये तो विश्वामित्र ने क्रुद्ध हो अपनी शक्ति से त्रिशंकु को इसी शरीर से ऊपर स्वर्ग में भेजा। त्रिशंकु ऊपर ही ऊपर उड़ता चला गया और आकाशमण्डल से जा टकराया। वहाँ इन्द्र तथा दूसरे देवताओं ने उसे सिर के बल धकेल दिया। तो भी तेजस्वी विश्वामित्र ने नीचे आते हुए त्रिशंकु को बीच ही में 'त्रिशंकु वहीं ठहरों' कह कर रोक दिया। फलतः भाग्यहीन राजा सिर के बल वहीं दक्षिणगोलार्ध में नक्षत्रपुंज के रूप में अटक गया। इसीलिए यह लोकोक्ति ('त्रिश
कूरिवान्तरा तिष्ठ श०२ प्रसिद्ध हो गई) 2. चातक पक्षी 3. बिल्ली 4. टिड्डा 5. जुगण, जः हरिश्चन्द्र का विशेषण, याजिन् (पुं०) विश्वामित्र का विशेषण,
-शत (वि०) तीन सौ (तम्) 1. एक सौ तीन 2. तीन सौ, -शिखम् 1. त्रिशूल 2. (त्रिशाख) किरीट या मुकुट,--शिरस् (पुं०) एक राक्षस जिसको राम ने मारा था,---शूलम् तिरसूल, अंकः धारिन् (पु०) शिव का विशेषण,---शलिन (पुं०) शिव का विशेषण,
--शृङ्गः त्रिकूट नाम का पहाड़,- षष्टिः (स्त्री०) तरेसठ, सन्ध्यम, सन्ध्यी दिन के तीन काल अर्थात प्रातः, मध्याह्न और सायम्,-सन्ध्यम् (अव्य०) तीनों
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