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नरुक्तः [ निरुक्त+अण् ] जो शब्दों की व्युत्पत्ति जानता | नैष्ठिकम्-रधु० ८२५ 2. निर्णीत, निश्चायक, है, शब्दव्य त्पत्तिशास्त्रविद् ।
निर्णायक (उत्तर आदि) 3. स्थिर, दृढ़, संलग्न 4. नेरज्यम् [ निरुज+व्यञ ] स्वास्थ्य, आरोग्य ।
उच्चतम, पूरा 5. पूर्ण रूप से जानकार, या विज्ञ 6. नंतः [ निऋति+अणु ] एक राक्षस-भयमप्रलयोद्वेगा- निरन्तर त्यागमय शुद्ध पवित्र जीवन बिताने की
दाचरव्यु ब्रतोदधेः-रघु० १०॥३६, ११२१, १२। प्रतिज्ञा करने वाला,-कः वह शाश्वत छात्र जो ४३, १४१४, १५।२०।।
आण्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए निर्धारित नेती [ नैर्ऋत--डीप ] 1. दुर्गा का विशेषण 2. दक्षिण काल के पश्चात् भी सदैव गुरु की सेवा में रहे, और पश्चिमी दिशा।
जिनसे आजन्म ब्रह्मचारी तथा जितेन्द्रिय रहने की नर्गुण्यम् [ निर्गुण--ष्य ] गुणों या धर्मों का अभाव, _प्रतिज्ञा कर ली है-कु० ५।६२, तु० याज्ञ० ११४९ ।
2. श्रेष्ठता की कमी, अच्छे गुणों का अभाव-नैर्गुण्य- नैष्ठुर्यम् [ निष्ठुर+व्या | क्रूरता, कर्कशता, कठोरता।
मेव साधीयो विगस्तु गुणगौरवम्-भामि० ११८८। नैष्ठयम् [ निष्ठ+व्या ] स्थायित्व, दृढ़ता। नपुंण्यम् [ निघृण+-व्यञ् ] निर्ममता, क्रूरता-वैषम्य- नैसर्गिक (वि.) (स्त्री० की) [ निसर्ग+ठक् ] स्वाभा
नघृण्ये न सापेक्षत्वात् तथा हि दर्शयति-ब्रह्म० विक, अन्तर्जात, सहज, अन्तहित---नैसर्गिकी सुरभिणः २१११३४।
कुसुमस्य सिद्धा मूनि स्थितिन मुसलरवताडनानि नर्मल्यम् [ निर्मल-+ष्यन्न ] स्वच्छता, शुद्धता,
----मा० ९।४९, रघु० ५।३७, ६।४६ । निष्कलङ्कता।
नैस्त्रिशिकः [ निस्त्रिश+ठक ] कृपाणधारी, तलवार रखने नर्लज्ज्यम् [निर्लज्ज-ध्या ] निर्लज्जता, बेहयाई, वाला। _ ढीठपना।
नो (अव्य.) [न+उ ] नहीं, न, मत (प्रायः 'न' की नल्यम [ नील-ध्या नीलापन, गहरा नीला रंग । भांति प्रयुक्त) भग० १७।२८, पंच० ५।२४, अमरू नवि (बि) ड्यम् [ निवि (बि) ड+या ] संशक्तता, । ५,७,१०,६२।
सटा हुआ होने का भाव, घनापन, सधनता। नोचेत् (अव्य०) [नो+चेत+दू० स०] अन्यथा, वरना। नैवेद्यम् [ निवेद । व्यञ ] किसी देवता या देवमुति को नोदनम् [ नुद्+ल्युट ] 1. ठेलना, हांकना, आगे बढ़ाना भेंट देने के लिए भोज्य पदार्थ ।
2. हटाना, दूर करना, मिटाना। नेश (वि.) (स्त्री...शी) नैशिक (वि.) (स्त्री०-को) नोधा (अव्य०) [नो+धा ] नौ प्रकार, नौ गुणा ।
निशा-अण, ठत्र वा ] रात से संबंध रखने वाला, | नौः (स्त्री०) [नद्यते अनया--न+डौ] जहाज, नौका, रात्रि विषयक, रात को होने वाला-तन्नशं तिमिर
पोत महता पुण्यपण्येन क्रीतेयं कायनोस्त्वया--शा० ३। मपाकरोति चन्द्र:-श० ६।२९, नेशस्याचिर्तुतभुज
१ 2. एक नक्षत्रपुंज का नाम । सम०- आरोहः इवच्छिन्नभूयिष्ठधूमा-विक्रम० ११८, कि० ५२ 2.
(नावारोहः) 1. जहाज का यात्री 2. मल्लाह- कर्ण रात को मनाया जाने वाला।
धारः, नाविक, पोतचालक,--कर्मन् (नपुं०) मल्लाह नैश्चल्यम् [ निश्चल+व्यञ् ] स्थिरता, अचलता, दृढ़ता। की वृत्ति---मनु० १०॥३४,--धरः,--जीविकः मल्लाह नश्चित्यम [ निश्चित+व्या ] 1. निर्धारण, निश्चिति माँझी-.-रधु० १७१८१,--तार्य (वि.) जिसमें नाव 2. निश्चित समय पर होने वाला संस्कार।
चल सके, जो नाव से पार किया जा सके,-वंड डांड, नेषधः [ निषध+अण् ] 1. निषध देश का राजा 2. विशे- चप्पू,-यानम् पोत-कौशल, नौकायन,-यायिन (वि०)
षतः, राजा नल का विशेषण 3. निषध देश का वासी, नाव या जहाज से जाने वाला, नौयात्री--मनु०८। या जो निषध देश में उत्पन्न हुआ है।
४०९,-वाहः कर्णधार, कर्णी, पोतवाहक, केवट,-व्यनैष्कर्म्यम् [ निष्कर्म+ध्यञ् ] 1. अकर्मण्यता, क्रियाहीनता सनम् पोतभंग, नौका का टूट जाना-नौव्यसने
2. कर्म और उनके फलों से मुक्ति-भग० ३४, विपन्न:--श०६,-साधनम् जहाजी बेड़ा, नौसमूह, १८१४९ 3. वह मुक्ति जो कर्म न कर केवल भाव, पोतावली -- वंगानुत्खाय तरसा नेता नौसाधनोद्यतान् ध्यान आदि से प्राप्त की जाय (विप० कर्म भार्ग द्वारा --रघु०४१३६। । प्राप्त मुक्ति)।
नौका [ नौ+कन्+टाप् ] एक छोटी नाव, किश्ती--क्षण नष्किक (वि.) (स्त्री-की) [निष्क+ठक्] निष्क | मिह सज्जनसंगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका
देकर भोल लिया हुआ, या निष्क से बना हुआ-कः --- मोह०६ । सम० -दंडः चम्पू, पतवार । टकसाल का अध्यक्ष।
न्यक (अव्य०) [ नि+अंचू+ क्विन ] क्रियाविशेषण, धृणा नैष्ठिक (वि०) (स्त्री०--को) [ निष्ठा+ठक ] 1. अपमान एवं दीनता को द्योतन करने के लिए 'कृ'
अन्तिम, आखीर का, उपसंहारक-विदधे विधिमस्य । और 'भू' से पूर्व लगने वाला उपसर्ग । सम०--करणम्
तिमिर
२९, नेश
छन्नभूयिष्ठयमा
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