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पक्ष्मन् (नपुं० ) [ पक्ष + मनिन् ] 1. बरौनी-सलिलगुरुभिः पक्ष्मभिः - मेघ० ९०१४७, रघु० २।१९, ११३६, 2. फूल की पंखड़ी 3. धागे का सिरा, पतला धागा 4. बाजू ।
पक्ष्मल ( वि० ) ( पक्ष्मन् + लच् ] 1. दृढ़, लम्बी और सुन्दर बरौनी बाला - पक्षमलाक्ष्याः - श० ३।२५ 2. बालों वाला, लोमश, रोएंदार- मृदितपक्ष्मलरल्लकांगः - शि० ४।६१ ।
पक्ष्य ( वि० ) [ पक्ष + यत् ] 1. पखवारे में होने वाला, पाक्षिक 2 तरफदार 3. पक्षपाती, क्ष्यः हिमायती, अनुवायी मित्र, सखा ननु वज्रिण एव वीर्यमेतद्विजयंते द्विषतो यदस्य पक्ष्याः - विक्रम० १।१६ | पंक:, -कम् [पंच् विस्तारे कर्मणि करणे वा घञ्ञ, कुत्वम् ] गारा, लसदार मिट्टी, दलदल अनीत्वा पंकतां धूलि - मुदकं नावनिष्ठते शि० २१३४, किं० २२६, रघु० १६।३० 2. अतः मोटी राशि, स्थूल ढेर-कृष्णागुरुपंक का० ३० 3. दलदल, कीचड़, धंसन 4. पाप । सम० कीरः टिटहिरी, क्रीडः सूअर, ग्राहः, मगरमच्छ, घड़ियाल, छिद् (पुं०) रीठे का वृक्ष ( कतक, जिसके फल से गदले पानी को स्वच्छ किया जाता है) मालवि० २२८, जम् कमल, जः, 'जन्मन् (पुं० ) ब्रह्मा का विशेषण, नाभः विष्णु का विशेषण - २० १८१२०, जन्मन् ( नपुं०) कमल ( पुं० ) सारस पक्षी, मंडुकः द्विकोष शंख, रुह, ( नपुं०), रुहम् कमल, वासः केंकड़ा । पंकज [पंकज + इनि] 1. कमल का पौधा - कि० १०1३३ 2. कमलों का समूह 3. कमलों से भरा हुआ स्थान 4. कुमुद डंडो ।
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पंकण: [ पृषो० सा०] चांडाल की झोंपड़ी, दे० 'पक्कण' । पंकारः [ प + ऋ + अण् ] 1. सिवार 2. बाँध, मेंड़ 3. जीना, सीड़ी, पौड़ियाँ ।
पंकिल ( वि० ) [पंक + इलच्] गारे से भरा हुआ, गदला, मैला, मलिन शि० १७३८ ।
पंकेज [पंके जायते पंके + जन् + ड] कमल । पंकेरुह ( नपुं०), हम् [ पंके + रुह + क्विप्, क वा ] कमल, हः शारस पक्षी ।
पंकेश ( वि० ) [ पंके + शी + अच् ] दलदल में रहने
वाला |
पंक्ति: (स्त्री० ) [ पंच + क्तित्]. लाइन, कतार, श्रेणी, सिलसिला- दृश्येत चारुपदपंक्ति रलक्तकांका- विक्रम ० ४ ६, पक्ष्म पंक्ति - रघु० २११९, अलिपंक्तिः कु० ४।१५, रघु० ६।५ 2. समूह, संग्रह, रेवड़, दल 3. ( एक ही जाति के लोगों की लाइन जो खाने पर बैठी हो, एक ही जाति के सहभोजियों का समुदाय तु० पंक्तिपावन 4 जीवित पीढ़ी 5. पृथ्वी 6. यश, प्रसिद्धि
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)
7. पाँच का संग्रह, पाँच की संख्या 8. दस की संख्या जैसा कि 'पंक्तिरथ' और 'पंक्तिग्रीव' में है । सम०ग्रीवः रावण का विशेषण, चरः समुद्री उकाब, कुरर पक्षी, दूषः, दूषकः, जिसके साथ बैठकर भोजन करने में दूषण लगे, ऐसा समाज को दूषित करने वाला व्यक्ति, - पावनः आदरणीय या सम्मानित व्यक्ति, एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण जो विद्वान् होने के साथ २ अपनी उपस्थिति से भोज की पंक्ति को पवित्र कर देता है, पंक्तिपावनाः पंचाग्नयः - मा० १, यहाँ जगद्धर कहता है पंक्तिपावना: पंक्ती भोजनादिगोष्ठयां पावनाः, अग्निभोजिनः पवित्रावा; यद्वा यजुषां पारगो यस्तु साम्नां यश्चापि पारगः, अथर्वशिरसोऽध्येता ब्राह्मण: पंक्ति पावनः । या--- अस्याः सर्वेषु वेदेषु सर्व प्रवचनेषु च यावदेते प्रपश्यंति पंक्तयां तावत्पुनंति च । ततो हि पावनात्पंक्तचा उच्यते पंक्तिपावनाः । मनु इस शब्द की व्याख्या इस प्रकार करते हैं: --- अपक्तियोषहताः पंक्तिः पाव्यते द्विजोत्तमैः, तान्निबोधन कार्त्स्न्येन द्विजाय्चान् पंक्तिपावनान् । मनु० ३।१८४ - दे० ३।१८३, १८६ भी, - रथः दशरथ का नाम रघु० ९।७४ ।
पंगु
( वि० ) ( स्त्रिी० -गू - ग्भी ) [ खञ् + कु, खस्य पत्वे जस्य गादेशः, नुम् ] लंगड़ा, लड़खड़ाता, विकलांग - गुः 1. लंगड़ा, आदमी, मूकं करोति वाचलं पंगु लंघयते गिरिम् 2. शनि का विशेषण । सम० ग्राहः 1. मगरमच्छ 2. दसवीं राशि मकरराशि |
( वि० ) [ पङ्ग, + लच्] लङ्गड़ा, विकलांग | (भ्वा० उभ० पचति ते, पक्व ) 1. पकाना, भूनना, भोजन बनाना ( वह धाते द्विकर्मक बतलाई जाती है -- उदा० तच्छुलानोदनं पचति परन्तु इस प्रकार का प्रयोग लौकिक संस्कृत में विरल है ), यः पचत्यात्मकारणात् मनु० ३।११८, शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन् दुर्बलान् बलवत्तराः - ० २०, भर्तृ० १८५ 2. पकाना, ( ईंट आदि) पकाना, दे० पक्व 3. ( भोजन आदिक) पचाना -- पंचाम्यन्नं चतुविधम्-भग० १५।१४ 4. पकना, परिपक्व होना 5. पूर्णता को पहुंचाना, ( समझ आदि का ) विकास करना 6. ( धातु आदि का) गलाना 7. ( अपने लिए) पकाना ( आ० ) - कर्मवा० पच्यते, 1. पकाया जाना 2. पक्का होना, परिपक्व या विकसि होना, पकना ( आलं० ) फल देना, पूर्णता को प्राप्त करना - रघु० ११:५०, पाचयति - ते पकवाना, पक्का कराना, विकसित कराना, पूर्णता को पहुँचाना - सन्नंत पिपक्षति - पकाने की इच्छा करना - परि-, पकना, परिपक्व होना, विकसित होना, वि- 1. परिपक्व होना, विकसित होना पकना, फल देना - रघु० १७/५३ 2. पचाना 3. भलीभांति पकाना ।
पंगुल
पच्
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