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ii (भ्वा० आ०-पचते) स्पष्ट करना, विशद करना।। पचतः [पच् + अत] 1. अग्नि 2. सूर्य 3. इन्द्र का नाम । | पचर (वि०) [पच्+ल्युट] पकाना, भोजन बनाना, परि
पक्व करना-नः अग्नि-नम् 1. पकाना, भोजन बनाना, परिपक्व करना 2. पकाने के उपकरण, बर्तन,
इन्धन आदि । पचपचः [प्रकारे पच इत्यस्य द्वित्वम्] शिव जी की उपाधी। पचा [ पच्+अड्-+टाप् ] पकाने की क्रिया। पचिः [पच+इन् ] अग्नि । पचेलिम (वि०) [पच+एलिमच ] 1. शीघ्र ही पकने
वाला 2. परिपक्व होने के योग्य 3. स्वतः या नैसर्गिक रूप से पकने वाला - ददर्श मालरफलं पचेलिमम्
नै०१३९४,--मः 1. अग्नि 2. सूर्य । पचेलुकः [पच्+एलक] रसोइया। पसटिका (स्त्री०) एक छोटी घंटी। पंचक (वि.) [पंच+कन् ] 1. पाँच से युक्त 2. पाँच से
संबद्ध 3. पाँच से निर्मित 4. पांच से खरीदा हुआ 5. पाँच प्रतिशत लेने वाला,-कः,-कम् पाँच वस्तुओं |
का संग्रह, 'अम्लपंचक' । पंचत् (स्त्री०) पंच, पंचसमुदाय, पंचायत ।। पंचता, स्वम् [पंचन्+तल+टाप, त्व वा] 1. पाँचगुना
स्थिति 2. पाँच का संग्रह 3. पाँच तत्त्वों की समष्टि
--अतः पंच-तां-वं-म-या उन पाँच तत्त्वों में घुलमिल जाना जिनसे शरीर बना है, मरना, नष्ट होना, पंचता-स्वं नो मार डालना, नष्ट करनापंचभिनिमिते देहे पंचत्वं च पूनर्गते, स्वां स्वां योनि
मनुप्राप्ते तत्र का परिदेवना। रत्न० ३।३ । पंचथुः [पञ्चन् +अथुच् ] 1. समय 2. कोयल । पंचधा (अव्य०) [पंचन् । धा ] 1. पाँच भागों में 2. पाँच
प्रकार से। पंचन् (सं० वि०) [पंच+ कनिन् ] (सदैव बहुवचनांत,
कर्त० कर्म .....पंच) पांच (समास में पूर्वपद होने के स्थिति म पंचन के 'न' का लोप हो जाता है)। सम० अंशः पाँचवाँ भाग, पांचवां-अग्निः 1. पाँच यज्ञाग्नियों का समूह (अर्थात्-अन्वाहार्य पचन या दक्षिण, गार्हपत्य, आहवनीय, सभ्य और आवसथ्य) 2. पंचाग्नियों को स्थापित रखने वाला गृहस्थ-. पंचाग्नयो धृतव्रताः-मा० १, मनु० ३।१८५--अंग (वि.) पाँच - सदस्यीय, पाँच अंगों वाला, जैसा कि पंचागः प्रणामः (अर्थात् बाहुभ्यां चैव जानुभ्यां शिरसा वक्षसा दशा), कृतपंचांगविनिर्णयो नयः-. कि० २।१२, (दे० मल्लि. और कादंबक) (गः) 1. कट्वा 2. एक प्रकार का घोड़ा जिसके शरीर के विभिन्न भागों पर पांच चिह्न हों (गी) लगाम का दहाना, मुखरी (गम) 1. पाँच भागों का संग्रह या ।
समष्टि 2. भक्ति के पाँच प्रकार 3. पंचांग, तिथिपत्र, जंत्री-तिथिरिश्च नक्षत्र योगः करणमेव च, चतुरंगबलो राजा जगतीं वशमानयेत्, अहं पंचांग बलवानाकाशं वशमानये-सुभा० गप्तः एक प्रकार का समुद्री कछुवा शुद्धिः (स्त्री०) तिथि, वार, नभत्र, योग, और करण (ज्योतिष), इन पाँच आवश्यक अंगों की अनुकूल स्थिति,-अंगुल (वि०) (स्त्री० --ला,-ली) पाँच अंगुल को माप, ----अ (आ) जम् बकरी से प्राप्त होने वाले पाँच पदार्थ, - अप्सरम् (नपुं०) मंडकर्णी ऋषि द्वारा निर्मित कहा जाने वाला सरोवर-तु० १३३३८,--अमृतम् देवपूजा के लिए पाँच मिष्ट पदार्थों का संग्रह (दुग्धं च शर्करा चैव धृतं दधि तथा मधु),- अचिस् (पुं०) बुधग्रह, ---अवयव (वि०) पांच अंगों वाला (जैसे कि अनुमान प्रक्रिया -इसके प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन, यह पाँच अंग है),-अवस्थः शव, (क्योंकि यह पांचों तत्त्वों में घुल मिल जाता है) तु० 'पंचत्व' से,-अविकम् भेड़ से प्राप्त पाँच प्रकार के पदार्थ - अशीतिः (स्त्री०) पचासी,--अहः पाँच दिन का समय,--आतप (वि०) पंचाग्नियों (चारों ओर चार अग्नि, तथा ऊपर सूर्य) से तपस्या करने वाला-.. तु० रघु० १३१४१,----आननः,---आस्यः ,--मुख-वक्तः 1. शिव का विशेषण 2. सिंह (क्योंकि इस मुख प्रायः खूब खुला होता है, चार पंजे भी मुख जैसा काम करते हैं-पंचम् आननं यस्य) (अत्यधिक विद्वत्ता तथा प्रतिष्ठा को प्रकट के लिए प्रायः विद्वानों के नामों के अन्त में लगाया जाता है-न्याय, तर्क० आदि-उदा० जगन्नाथ तर्कपंचानन),--इंद्रियम् पाँच अंगों की समष्टि (ज्ञानेन्द्रिय या कर्मेद्रिय-दे० इन्द्रियम्), इषुः-बाणः-शरः कामदेव का विशेषण (क्योंकि इसके पाँच बाण है-अरविंदमशोक च चतं च नवमल्लिका, नीलोत्पलं च पंचते पंचबाणस्य सायकाः),-उष्मन् (पुं०, ब० व०) शरीर में रहने वाली पांच अग्नियाँ,-कर्मन् (नपुं०-आयु. में) पाँच प्रकार की चिकित्साएँ अर्थात् 1. वमन-'उल्टी कराने वाली औषधियाँ देना' 2. रेचन-शौच लाने वाली औषधियों का सेवन 3. नस्य-छींक लाने वाली औषधियाँ--नसवार-देना 4. अनुवासन
-तैलयुक्त बस्तिकर्म 5. निरूह-बिना तेल का बस्तिकर्म,--कृत्वस् (अव्य०) पांच बार,-कोणम् पांच कोण की आकृति,-कोलम् पाँच मसालों (पीपल, पिप्परामूल, चई, चित्रकमूल और सोंठ) का चूर्ण,
-कोषाः (पुं०, ब० ब०) पाँच प्रकार का परिधान 1. अन्नमय कोष या स्थूल शरीर 2. प्राणमय कोष 3. मनोमय कोष 4. विज्ञानमय कोष (२, ३, व ४ से
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