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प्राप्त होना' 2. (नियमित वस्तुओं की) पंक्ति, । सुन अत्यंत क्षुब्ध हुआ, उसी समय उसने समस्त कतार, संग्रह समूह-तोयांतर्भास्करालीव रेजे मुनि क्षत्रिय जाति का उन्मलन करने की भीपण प्रतिक्षा परंपरा--कु०६।४९, रघु० ६।५, ३५,४०, १२५०, की। वह अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करने में सफल 3. प्रणाली, क्रम, सुव्यवस्था 4. वंश, कुटुंब, कुल हुआ, करते है कि उसने इस पृथ्वी को इक्कीस बार 5. क्षति, चोट, मार डालना।
क्षत्रिय जाति से मुक्त किया। वह क्षत्रिय जाति का परंपराक (वि.) [परंपरया कायेत प्रकाशते---कै--क] नाशकर्ता बाद में दशरथ के पुत्र राम के द्वारा जब यज्ञ में पशु का वध करना।
कि वह केवल सोलह ही वर्ष के थे (दे० रघु० ११॥ परंपरीण (वि.) [परंपर+ख ] उत्तराधिकार में प्राप्त, । ६८,९१) परास्त किया गया। कहते हैं कि कार्तिकेय
आनुवंशिक -- लक्ष्मी परंपरीणां स्वं पुत्रपौत्रीणतां नय- की शक्ति से ईर्ष्या होने के कारण उसने क्रौंच पर्वत भट्टि० ५.१५ 2. परंपराप्राप्त ।
को भी एक बार तीरों से बींध दिया--तु० मेघ ० परवत् (वि०) [पर+मतुप मस्य वः ] 1. पराधीन, दूसरे
५७; सात चिरजीवियों में इनकी भी गिनती है, के वश में, आज्ञापालन के लिए तत्पर--सा बाला
विश्वास किया जाता है कि परशराम अब भी महेन्द्रपरवतीति में विदितम्-श० ३२, भगवन्परवानयं
पर्वत पर बैठ तपस्या कर रहे हैं—तु० गीत०१, जन:-रघु० ८१८१, २।२६, (प्रायः करण० या
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापं स्नपयसि पयसि शमितअधि० के साथ) भ्रात्रा यदित्थं परवानसि त्वं-- रघु०
भवतापम्, केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे॥ १४१५९ 2. शक्ति से वंचित, निःशक्त परवानिव | परश्व (स्व) धः | पर+श्वि+ड-परश्वः, तंदधाति शरीरोपतापेन-मा० ३ 3. पूर्णरूप से (दूसरे के) अधीन --धा+क; नि० शस्य सत्वम् ] कुल्हाड़ी, कुठार, जो स्वयं अपना स्वामी न हो, विजित, पराभूत- फरसा--धारां शितां रामपरश्वधश्य संभावयत्युत्पलविस्मयेन परवानस्मि-उत्तर० ५, आनंदेन परवानस्मि पत्रसाराम्--रघु ० ६।४२ । ----उत्तर. ३, साध्वसेन-~मा०६।
परस् (अव्य०) [ पर+असि] (श्रेण्य संस्कृत में इसका परवत्ता [ पखत्+तल+टाप ] दूसरे की अधीनता, परा- स्वतंत्र प्रयोग विरल है) 1. परे, आगे, और भी घीनता, विक्रम० ५।१७ ।
2. इसके दूसरी ओर 3. दूर, दूरी पर 4. अपवाद रूप परशः [स्पृशति इति पृषो०] पारसमणि जिसके स्पर्श से,
से। सम० -- कृष्ण (वि०) अत्यन्त काला,--पुरुषः कहा जाता है कि लोहा आदि दूसरी घातुएँ सोना
(वि०) मनुष्य से लंबा या ऊँचा-शत (वि.) सौ बन जाती है, संभवतः यह दार्शनिकों का पारस
से रोधिक कि० १२०२६. शि० १२।५०,---श्वस् पत्थर है।
(अव्य) आगामी परसों,... सहस्र (वि.) एक हजार परशुः परं शृणति--शृ+कु ङिच्च ] कुल्हाड़ा, कुल्हाड़ी,
से अधिक—परः सहस्राः शरदस्तपांसि तप्त्वा-उत्तर० कुठार फरसा--तजितः परशुधारया मम-रघु० ११॥
१११५, परः सहस्रः पिशाचैः--महावी० ५।१७ । ७८ 2. शस्त्र, हथियार ३. बज्र । सम-धरः परस्तात् (अव्य०) [पर+अस्ताति ] 1. परे, के दूसरी 1. परशुराम का विशेषण 2. गणेश की उपाधि ओर, और आगे (संब० के साथ)-आदित्यवर्ण 3. कुठारधारी सैनिक,-रामः 'कुठारधारी राम' एक तमसः परस्तात--भग०८।९ 2. इसके पश्चात्, बाद विख्यात ब्राह्मणयोद्धा जो जमदग्नि का पुत्र और बाद में 3. अपेक्षाकृत ऊँचा। विष्णु का छठा अवतार था (इसने अपनी बाल्या- परस्पर (वि०) [परः परः इति विग्रहे समासवद्भावे पूर्ववस्था में ही अपने पिता की आज्ञा से जब कि उसके पदस्य सुः ] आपस में--परस्परां विस्मयवन्ति लक्ष्मीभाइयों में से कोई भी तैयार न हुआ, अपनी माता मालोकयांचऋरिवादरेण-भट्टि० २।५, (सर्व० वि०) रेणुका का सिर काट डाला-दे० जमदग्नि। इसके अन्योन्य, एक दूसरा (केवल ए० व०, में प्रयुक्त पश्चात् एक बार राजा कार्तवीर्य, जमदग्नि के आश्रम -प्रायः समास में) परस्परस्योपरि पर्यचीयत में आये और उसकी गौ को खोलकर ले गये। परन्तु -रघ० ३१२४, ७३५, अविज्ञातपरस्परैः अपसर्पः घर आने पर जिस समय परशराम को पता लगा -१७१५१, परस्पराक्षिसादश्यम-११४०, ३२४, तो वह कार्तवीर्य से लड़ा और उसे मयलोक पहुँचा विशे० 'एक दूसरे के विरुद्ध' 'आपस में' 'एक दूसरे से दिया। जब कार्तवीर्य के पूत्रों ने सुना तो वह बड़े 'एक दूसरे के द्वारा' 'इतरेतर के रूप में' 'आपस में' ऋद्ध हए-फलत: वे आश्रम में आये और जमदग्नि आदि अर्थों को प्रकट करने के लिए इस शब्द के कर्म को अकेला पाकर उसे मार डाला। जब परशुराम-- करण और अपा० के एक वचन के रूप क्रियाविशेषण जो कि इस घटना के समय आश्रम में नहीं था, की भाँति प्रयक्त होते है--दे० भग०३।११, १०९. वापिस आया, तो अपने पिता के वध का समाचार | रघु० ४१७९, ६।४६, ७।१७, ५१, १२।१४ ।
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