________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्थः [ पृथा+अण] 1. युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का / पाश्वः,-श्वम् [ पशूनां समूहः ] 1. काँख से नीचे का शरीर मातकुलसूचक नाम, परन्तु अर्जुन का विशेषरूप से का भाग, स्थान जहाँ पसलियाँ है-शयने सन्निष---भग० श२५, और दूसरे अनेक स्थल 2. राजा। पणकपाश्र्वाम्--मेघ० 89 2. पांसू, कोख, (सजीव सम० - सारथिः कृष्ण का विशेषण / और निर्जीव पदार्थों का) पाल्ग--पिठरं क्वथदतिपार्थक्यम [ पृथक-+-व्यञ ] पृथकता, अलहदगी, अलग 2 मात्र निजपाश्र्वानेव दहतितराम् --पंच० 11324 होने का भाव, अकेलापन, अनेकता। 3. आस-पास, - इर्वः जिनका विशेषण, ---श्वम् 1. पसपार्थबम [पथ+-अण] विशालता, विस्तार, फैलाब, चौड़ाई। लियों का समूह 2. जालसाजी से भरी हई तरकीब, पार्थिव (वि०) (स्त्री०-वी) [ पथिवी--अण] 1. मिट्टी असम्मानजनक उपाय (पाश्वम् क्रियाविशेषण के का बना हुआ, पृथ्वी संबंधी, भूमिसंबंधी, घरती से रूप में प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ हैसंबंध रखने वाला---यतोरजः पाथिवमज्जिहीते-रघ० 'ने निकट' के पास में 'की ओर'--श० 78, इसी 13 // 64 2. धरती पर शासन करने वाला 3. गजमी, प्रकार पाति की ओर से' 'से दूर' पावें 'निकट' राजकीय,--वः 1. पृथ्वी पर रहने वाला 2. गजा, 'नज़दीक' 'पास में' न मे दुरे किंचित्क्षणमपि न पावें प्रभु--रघु० 8 / 1 3. मिट्टी का वर्तन / सम० रथजवात् -- 0 119, भर्तृ० 2 / 37) / सम. -नन्दनः---सुतः राजकुमार, राजपुत्र,-कन्या-नन्दिनी, -----अनुचरः टहलुआ, सेवक -रघु० २।९,-अस्थि -~-सुता राजा की पुत्री, राजकुमारी। (नपुं०) पसली,--आयात (वि०) जो बहुत निकट पाथिवी पार्थिव !-डीप | 1. सीता का विशेषण, धरती आ गया है, ....आसन्न (वि.) पास ही विद्यमान, की पुत्री-पाथिवीमदहद्रध्दहः-रघु०२११४५ 2. लक्ष्मी -उदरप्रियः केकड़ा,--11: टहलुआ, सेवक-रघु० का विशेषण / १११४३,—गत (वि०) पार्श्ववर्ती, पास ही स्थित, पार्परः (पुं०) 1. मुट्ठी भर चावल 2. क्षयरोग, तपेदिक / सेवा करने वाला 2. शरणागत,—चरः सेवक, टहलुआ पायंतिक (वि०) (स्त्री०-की) [पर्यन्त+ठक् ] अन्तिम, ----- रघु० 9 / 72, १४॥२२,-दः टहलआ, सेवक,-वेशः आखरी, निर्णायक / (शरीर की) कोख, पाँसू,--परिवर्तनम् 1. बिस्तर पर पार्वण (वि०) (स्त्री०-णी) [पर्वन्-+-अण् ] 1. पर्व करवट बदलना 2. भाद्रपदशुक्ल 11 में होने वाला संबंधी, रघु० 11382 2. वृद्धि की प्राप्त होना, पर्व (आज के दिन समझा जाता है कि विष्णु करवट बढ़ना (जैसे कि चन्द्रमा का), -म पर्व के अवसर बदलते हैं), भागः कोख, पांसू,--वतिन् (वि०) पर (अमावस्या के दिन) सभी पितरों के निमित्त 1. पास होने वाला, उपस्थित, सेवा में खड़ा हुआ आहुति देने का सामान्य संस्कार / 2. साथ ही लगा हुआ, शय (वि.) पास ही सोने पार्वत (वि.) (स्त्री०-ती) [पर्वत-|-अण | 1. पहाड़ पर वाला, वगल में सोने वाला,--शलः,--लम् कोख में होने या रहने वाला 2. पहाड़ पर उगने वाला, पहाड़ मीठा दर्द, सूत्रकः एक प्रकार का आभूषण-स्थ से प्राप्त होने वाला 3. पहाड़ी। (वि०) पाश्र्ववर्ती, नजदीकी, निकटवर्ती, समीपस्थ पार्वतिकम् | पर्वत+ठा ] पहाड़ों का समुच्चय, पर्वत (स्थः) 1. सहचर 2. सूत्रधार का सहायक-तु. शृंखला। पारिपार्श्वक। पार्वती [ पार्वत। डीप। 1. दुर्गा का नाम, हिमालय की पावकः (स्त्री०-की) [पार्श्व+कन | ठग, प्रवंचक, पुत्री के रूप में उत्पन्न (अपने पहले जन्म में वह सती चोर / थी-तु० कु०१२१) तां पार्वतीत्याभिजनेन नाम्ना | | पार्वतः (अव्य०) [पार्वतस] निकट, नजदीक, बंधुप्रियां बंधुजनो जुहाव ----कु० 1 / 26 2.. ग्वालिन समीप, पास रघ० 19131 / 3. द्रौपदी का विशेषण 4. पहाड़ी नदी 5. एक प्रकार | पाश्विक (वि.) (स्त्री०--की) [ पार्श्व+च ] पाँसू की सुगंधयक्त मिट्टी। सम० नन्दनः 1. कार्तिकेय से संबंध रखने वाला, --कः 1. पक्ष लेने वाला आदमी, की उपाधि 2. गणेश का विशेषण / साझीदार 2. साथी, सहचर 3. जादूगर / पार्वतीय (वि.) (स्त्री०-यी) [ पर्वत + छ ] पहाड़ में | पार्षत (वि०) (स्त्री०--ती) [पषत-+अण् ] चितकबरे रहने वाला,--यः 1. पहाड़ी 2. एक विशेष पहाड़ी हरिण से संबंध रखने वाला--मन० 3 / 269, याज्ञ० जाति का नाम (ब० ब०) तत्र जन्यं रघोोरं १२५७,--तः राजा द्रुपद और उसके पुत्र धृष्टद्युम्न पार्वतीयगणरभूत-घ०४७७ / का पितृकुलसचक नाम / पार्वतेय (वि०) (स्त्री०-यो) पार्वती हक पहाड़ | पार्षती पार्षत - डीप ] 1. द्रौपदी का विशेषण 2. दुर्गा पर उत्पन्न, --यम् अंजन, सुरमा / की उपाधि। पार्शवः [ पशु +-अण् | कुठार से सुसज्जित योद्धा / / पार्षद् (स्त्री०) [परिषद्, पृषो० ] सभा / For Private and Personal Use Only