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( ५५८ ) 15. नपनापितपुत्रन्यायः [ राजा और नाई के पुत्र वह सभी बातें आ जाय जो एक व्यक्ति चाहता है।
को न्याय ] कहते हैं कि एक नाई किसी राजा के महाभाष्य में कथा आती है कि एक बुढ़िया कुमारी यहाँ नौकर था, एक बार राजा ने उसे कहा कि मेरे को इन्द्र ने कहा कि एक ही वाक्य में जो वरदान राज्य में जो लड़का सब से सुन्दर हो उसे लाओ। चाहो मांगो, तब बुढ़िया बोली-पुत्रा मे बहुक्षीरनाई बहुत दिनों तक इधर उधर भटकता रहा परन्तु घृतमोदनं कांचनपाच्यां भुजीरन् (अर्थात् मेरे पुत्र उसे ऐसा कोई बालक न मिला जैसा राजा चाहता सोने की थाली में घी दूध युक्त भात खायँ)। इस था। अन्त में धककर और निराश होकर वह घर एक ही वरदान में बुढ़िया ने पति, पुत्र, धन-धान्य, लौट आया-तब उसे अपना काला-कलटा लड़का पशु, सोना चाँदी सब कुछ माँग लिया। अतः जहाँ ही अत्यंत सुन्दर लगा। वह उसी को लेकर राजा के एक की प्राप्ति से सब कुछ प्राप्त हो वहाँ इस न्याय पास गवा पहले तो उस काले कलटे बालक को देख का प्रयोग होता है। कर राजा को बड़ा क्रोध आया परन्तु यह विचार
शाखाचंद्रन्यायः [ शाखा पर वर्तमान चन्द्रमा का कर कि मानव मात्र अपनी वस्तु को ही सर्वोत्तम
न्याय ] जब किसी को चन्द्रमा का दर्शन कराते हैं समझता है, उसे छोड़ दिया --तु० सर्व: कांतमात्मीयं
तो चन्द्रमा के दूर स्थित होने पर भी हम यही कहते पश्यति-हिन्दी-अपनी छाछ को कौन खट्टा बताता है।
हैं 'देखो सामने वृक्ष की शाखा के ऊपर चांद दिखाई 16. पंकप्रक्षालनन्यायः [ कीचड़ धोकर उतारने का देता है'। अतः यह न्याय उस समय प्रयक्त होता है
न्याय ] कीचड़ लगने पर उसे धो डालने की अपेक्षा जब कोई वस्तु चाहे दूर ही हो, निकटवतीं किसी यह अधिक अच्छा है कि मनष्य कीचड़ लगने ही न पदार्थ से संसक्त होती है। देवे। इसी प्रकार भयग्रस्त स्थिति में फंस कर उससे ! 23. सिंहावलोकनन्यायः [ सिंह का पीछे मड़ कर देखना निकलने का प्रयत्न करने की अपेक्षा यह ज्यादह यह उस समय प्रयुक्त होता है जब कोई व्यक्ति आगे अच्छा है कि उस भयग्रस्त स्थिति में कदम ही न चलने के साथ २ अपने पूर्वकृतकार्य पर भी दृष्टि रक्खे-तु०-'प्रक्षालनाद्धि पंकस्य दूरादस्पर्शनं वरम्'- डालता रहता है-जिस प्रकार सिंह शिकार की 'सौ दवा से एक परहेज़ अच्छा ' ।
तलाश में आगे भी बढ़ता जाता है परन्तु साथ ही 17. पिष्टपेषणन्यायः [ पिसे को पीसना ] यह न्याय उस | पीछे मुड़कर भी देखता रहता है।
समय प्रयुक्त हाता ह जब कोई कय हुए काय का | 24. सूचीकटाहन्यायः। सूई और कडाही का न्याय ] यह ही दुबारा करने लगता है, क्योंकि पिसे को पीसना
उस समय प्रयुक्त किया जाता है, जब दो बातें एक फाल्तू और व्यर्थ कार्य है-तु० कृतस्य करणं वथा।
कठिन और एक अपेक्षाकृत आसान- करने को हों, 18. बीजांकुरन्यायः [बीज और अकूर का न्याय |
तो उस समय आसान कार्य को पहले किया जाता कार्य कारण जहाँ अन्योन्याश्रित होते हैं वहाँ इस
है, जैसे कि जब किसी व्यक्ति को सूई और कड़ाही न्याय का प्रयोग होता है (बीज से अडकूर निकला,
दो वस्तुएँ बनानी है तो वह सूई को पहले वनावेगाऔर फिर समय पाकर अंकूर से हो बीज की उत्पति
क्योंकि कड़ाही की अपेक्षा सूई का बनाना आसान हुई) अतः न बीज के बिना अङकुर हो सकता है
या अल्पश्रमसाध्य है। और न अंकुर के बिना बीज ।
25. स्थूणानिखननन्यायः [ गढ़ा खोदकर उसमे थूणी 19. लोहचुम्बकन्यायः [ लोहे और चुवक का आकर्षण जमाना ] जब किसी मनुष्य को कोई थणी अपने घर न्याय ] यह प्रकृति सिद्ध बात है कि लोहा चुंबक की में लगानी होती है तो मिट्टी कंकड़ आदि बार बार ओर आकृष्ट होता है, इसी प्रकार प्राकृतिक घनिष्ट डाल कर और कूटकर वह उस थूणी को दृढ़ बनाता संबंध या निसर्गवृत्ति की बदौलत सभी वस्तुएँ एक है, इसी प्रकार वादी भी अपने अभियोग की पुष्टि में दूसरे की ओर आकृष्ट होती है।
नाना प्रकार के तर्क, और दष्टान्त उपस्थित करके 20. वहिधमन्यायः [धुएँ से अग्नि का अनुमान] धूएँ अपनी बात का और भी अधिक समर्थन करता ह ।
और अग्नि की अवश्यंभावी सहवर्तिता नैसर्गिक है, 26. स्मामिभूत्यन्यायः [ स्वामी और सेवक का न्याय] अतः (जहाँ धूआँ होगा वहाँ आग अवश्य होगी) । इसका प्रयोग उस समय किया जाता है जब पायल यह न्याय उसी समय प्रयुक्त होता है जहाँ दो पदार्थ और पाल्य, पोषक और पोष्य के संबन्ध को बतलाना कारण-कार्य या दो व्यक्तियों का अनिवार्य संबंध होता है या ऐसे ही किन्हीं दो पदार्थों का संबंध बतबताया जाय।
लाया जाता है। 21. वृजकुमारीवाक्य (बर)न्यायः [बूढ़ी कुमारी को | न्याय्य (वि०) [ न्याय-+ यत् ] 1. ठीक, उचित, सही,
वरदान न्याय ] इस प्रकार का वरदान मांगना जिसमें । न्यायसंगत, उपयुक्त. योग्य-न्याय्यात्पथः प्रविचलंति
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