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भट्टि० ९।५१, १०॥३१, १२।३९, शि० ४।५७, । करना, अभिवादन करना, विनम्र प्रणति करना अधीन होना, पराभव स्वीकार करना, झुक जाना (कर्म० या संत्र के साथ) न प्रणमंति देवताभ्यः -~~अशक्तः संधिमान् नमेत् --काम० ८५५ 3. __-का० १०८, तां प्रणनाम -का० २११, भग० झकना, दबाना, नीचा होना--अनसीदभवरेणास्प ११।४४, रधु० २।२१, (साष्टांग प्रणम् आठ अंगों से
-भट्टि० १५।२५ नेमः सर्वदिमा-का० ५५, उन्न- झुक कर प्रणाम करना ..दे० 'साष्टांग', दण्डवत् प्रणम् वति नमति वर्षति . . . . मेघ:-मृच्छ० ५।२६ 4. 8-1 डड की भांति पूर्ण रूप से भूमि पर लेट कर नमस्कार रना, झुकाव होना 5. झुका हुआ होना, वक्र होना 6. करना, सब अंगों से भूमि को स्पर्श करते हुए तु० ध्वनि निकालना। अभ्युद् --, उठाना, उन्नत होना दंडप्रणाम), वि -, 1. अपने आपको झुकाना, नम्र अव---, 1. झुकना, नम्र होना, नीचे को ढलना करना, विनीत होना -विनमंति चास्य तरवः प्रवये --शि० ९७४ 2. झुकाना, लटकाना - त्वय्यादातुं -कि० ६१३४. भर्त० १६७, भट्टि० ७.५२, दे० जलमबनते-मेध. ४५, उद्---, 1. (क) उदय 'विनत' विपरि--1. बदलना 2. बदल कर खराव होना, प्रकट होना, उगना --उन्नम्योन्नम्य लोयते होना सम्- 1. झुकना नीचे को होना, झुकाव होना दरिद्राणां मनोरथा:-पंच० २।२१, (ख) 1. लट- --संनतांगो कृ० ११३४, भट्रि० २।३१, पर्वसु संतता कना, समीप होना-उन्नमत्यकालदुर्दिनम् -मच्छ० ---विक्रम० ४।२६ 2. नम्र होना, विनीत होना ५ 2. उदय होना, चढ़ना, ऊपर उठना (आलं. - - संनमतामरीणाम्--रघु०१८।३४ । भी) उन्नमति नमति बर्षति गर्जति मेघः- मच्छ० नमत (वि०) नम्+अतच झका हुआ, विनीत, कुटिल, ५।२६, नम्रत्वेनोन्नमंतः...-भर्तृ० २१६९, ३३२४, शि० वक्र ---तः 1. अभिनेता 2. धुआँ 3. स्वामी, प्रभु ९१७९ 3. उठाना, उन्नति करना-कि० १६।३५, प्रेर० 4. बादल। ऊपर उठाना, सीधा खड़ा करना-उप---, आना आ नमनम् निम्ल्यू ट] 1. विनीत होना, झुकना, नम्र होना जाना, पहुंचना 2. होना, भाग्य में होना, बटित होना, 2. दबना 3. विनति, नमस्कार, अभिवादन । सामने आना (संप्र० के साथ या अकेला) कस्यात्यन्तं | नमस् (अव्य०) |नम् + असुन्] प्रामति, अभिवादन, सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा-मेघ० १०९, मत्सं- प्रणाम, पूजा (यह शब्द स्वयं सदैव संप्र० के साथ भोगः कथनपनयत् स्वप्नजोऽपि-- मेघ० ९१, यदेवो- प्रयुक्त होता है, तस्मै वदान्यगुरवे तरवे नमोऽस्तु पनतं दुःखात्सुख तद्रसवत्तरम्-विक्रम० ३।२१, ----भामि० १२९४, नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यम् कु० २।४, भर्त० २।१२१, मेघ० १०, रघु० १०॥३९ 3. उप- परन्तु 'कृ' के योग में कर्म के साथ मुनित्रय स्थित करना, देना, प्रस्तुत करना--परलोकोपनतं नमस्कृत्य-सिद्धा०, परन्तु कभी-कभी संप्र० के साथ जशंजलिम्--रघु० ८।६८, परि-, 1. नीचे को भी-नमस्कुर्मो नृसिंहाय-सिद्धा०, यह शब्द संज्ञा ढलना, झुकना (जैसे कि कोई हाथी अपने दांतों से
शब्द का अर्थ रखता परन्तु समझा जाता है अव्य०)। प्रहार करने के लिए) वाक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीय
सम०-कारः, -कृतिः (स्त्री०)----कारणम् प्रणानि, ददर्श-मेघ २, विपके नागः पर्यणंसोल स्व एवं
सादर प्रणाम, सादर अभिवादन ('नमग' शब्द के -शि० १८०२७ 2. झुकना, नमस्कार करना, झुकाव
उच्चारण के साथ),-कृत (वि०) 1. जिसे प्रणति होना...लज्जापरिणतः (वदनकमल:)...- भट्टि० १४,
दी गई है, जिसको प्रणाम किया गया है 2. सम्मानित, 3. परिवर्तित होना, रूपांतरित होना, रूप धारण
चित, पूजित,--गुरुः आध्यात्मिक गुरु, --बाकम् करना । करण के साथ ) लताभावेन
(अन्य०) 'नमस्' शब्द का उच्चारण करना, अर्थात् परिणतमस्या रूपम्-विक्रम० ४।२८, क्षीर
विनम्र अभिवादन करना - इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमाजलं वा स्वयमेव दपिहिमभावेन परिणमते वाकं प्रशास्महे-उत्तर० १११ । -~-शारी०, मेघ० ४५ 4. विकसित या परिपक्व होना, | नमस (वि.) नम्---असञ्] अनुकल, सानुग्रह व्यवस्थित । पकाना, परिणतपलस्य वाणोम् - उत्तर ७४२०, ममसित, नमस्थित (वि.) नमस्क्य च, नमस्य+का, मेष० १८, कि० ५/६७, भालवि० १८, ऋतु० विकल्पेन यलोपः। जिसे नमस्कार किया गया हो, ११२६ 5. (आयु में) बढ़ना, बड़ा होना, बूढ़ा होना, । सम्मानित, जिसे प्रणाम किया गया है। क्षीण होना, परिणत शरच्चन्द्रिकासु क्षपासु-मेघ० नमस्यति (ना० धा० पर०) नमस्कार करना, श्रद्धांजलि ११०, इसी प्रकार जरापरिणत' आदि 6. डूबना, । अर्पित करना, पूजा करना भर्तृ० २।९४ । (सूर्य आदि का) पश्चिम में छिपना अनेन समयेन नमस्य (वि.) [नमस्-+यत् | 1. अभिवादन प्राप्त करने का परिणतो दिवस:-का० ४७ 7. पच जाना, ग्रस्त ___अधिकारी, सम्मानित, आदरणीय, वन्दनीय 2. आदरपरिणमेच्च यत्---महा०, प्र (प्रणमति) नमस्कार | युक्त, विनीत,-स्था पूजा, अर्चना, श्रद्धा, भक्ति ।
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बाल
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