________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नाडि (डी) धम (वि०) [ नाडी धमति-नाडी+मा+ | नाना (अव्य०) [न+नाम.] 1. अनेक स्थानों पर,
खश, धमादेशः, ह्रस्वः, मुम च, प्रक्षे ह्रस्वाभावः ] विभिन्न रीति से, विविध प्रकार से, तरह तरह से (भय आदि) नलिकाकार अंगों को गति देने वाला, 2. स्पष्ट रूप से, अलग, पृथक रूप से, 3. विना नाडिघमेन श्वासेन-का० ३५३,–मः सुनार ।
(कर्म० करण० या अपा के साथ) नाना नारी माणकम् [न आणकम्, इति ] सिक्का, मोहर लगी हुई निष्फला लोक यात्रा-वोप०, (विश्वं) न नाना
कोई वस्तु, एषा नाणकमोषिका मकशिका-मच्छ० शंभुना रामात् बर्षेणाघोक्षजो वरः--तदेव 4. (समास ११२३, याज्ञ० २।२४० ।
के आरंभ में विशेषण के रूप में प्रयोग) विविध नातिचर (वि.) [न अतिचरः ] जो बहुत लंबी अवधि प्रकार का, तरह तरह का, नाना प्रकार का, विभिन्न, का न हो, जो दीर्घकालीन न हो।
विविध---नाना फलैः फलति कल्पलतेव भूमिः---भर्तृ० नातिदूर (वि०) [न अतिदूरः ] जो बहुत दूर न हो, २।४६, भग० ११९, मनु० ९।१४८ । सम० अत्यय अधिक दूरी पर न स्थित हो ।
(वि.) विभिन्न प्रकार का, बहपक्षी-अर्थ (वि.) नातिवादः [न अतिवादः ] दुर्वचन तथा अपशब्दों का
1. विविध उद्देश्य या लक्ष्यों वाला 2. विविध अर्थों परिहार करना।
वाला, (शब्द के रूप में) अनेकार्थक-फारम नाथ् (म्वा० पर० नाथति-कभी-कभी आ० भी)
(अव्य०) विविध प्रकार से करके,-रस (वि०) 1. निवेदन करना, प्रार्थना करना, किसी बात की
विविध रुचि से युक्त-मालवि०१४,--रुप (वि०) याचना करना (संप्र० अथवा द्विकर्म० के साथ),
विभिन्न रूपों वाला, विविध प्रकार का, बहुरूपी, मोक्षाय नाथते मुनि:- वोप०, नाथसे किम पति न
नाना प्रकार का,--वर्ण (वि.) भिन्न २ रंगों का, भूभतः—कि० १३१५९, संतुष्टमिष्टानि तमिष्टदेवं
-विध (वि.) विविध प्रकार का, तरह तरह का, नार्थति के नाम न लोकनाथम-नै० ३।२५ 2. शक्ति
बहुविध,--विधम् (अव्य०) विविध रीति से। रखना, स्वामी होना, छा जाना 3. तंग करना, कष्ट नानांद्रः [ननांद+अण ] ननद का पुत्र । देना 4. आशीर्वाद देना, मंगल कामना करना, शुभा- : नांत (वि.) [न० ब०] अन्तरहित, अनन्त । शोष देना (केवल इस अर्थ में आ०), नाथितशमे--: नांतरीयक (वि०) [न अन्तराविनाभव:-अन्तरा+छ, महावी० १११, (मम्मट निम्नांकित पंक्ति में +कन् ] जो अलग न किया जा सके, अनिवार्य रूप बतलाता है कि यहाँ 'नाथते' स्थान पर 'नाथति' होना से जुड़ा हुआ। चाहिए, क्योंकि यहाँ अर्थ केवल 'निवेदन या प्रार्थना नांत्रम् [नम् +ष्ट्रन् ] प्रशंसा, स्तुति । करना है--दीनं त्वामनुनाथते कुचयुगं पत्रावृतं मा | नांदिकरः, नांदिन् (पुं०) [ नान्दी करोति-कृ+, ह्रस्वः, कृथाः), सर्पिषो नाथते-सिद्धा०।
नन्द+णिनि ] नांदी पाठ करने वाला, (नाटक के नाथः [ नाथ् +अच् ] 1. प्रभु, स्वामो, रक्षक, नेन .. नाथे ।
आरम्भ में मांगलिक वचन बोलने वाला)। कुतस्त्वय्पशुभं प्रजानाम् --- रघु० ५।१३, ३।४५, । नांदी [ नन्दन्ति देवा अत्र नन्द+धा, पुषो० वृद्धि, डीप] त्रिलोक', कैलास आदि 2. पति 3. भारवाही बैल 1. हर्ष, संतोष, खुशी--2. समृद्धि 3. • धर्मानुष्ठान के
की नाक में डाला हुआ रस्स । सम० --हरिः पशु । आरम्भ में देवस्तुति 4. विशेषकर, नाटक के आरम्भ नायवत् (वि.) [नाथ --मतुप, वत्वम् ] 1. सनाथ, में मंगलाचरण के रूप में आशीर्वादात्मक लोक या
जिसका कोई स्वामी या रक्षक हो-नाथवंतस्तया इलोकों का पाठ, स्वस्त्ययन-आशीर्वचनसंयुक्ता नित्यं लोकास्त्वमनाथा विपत्स्यसे उत्तर० ११४३ 2. परा- । यस्मात्प्रयुज्यते, देवद्विजनपादीनां तस्मान्नांदीति संज्ञिता श्रयी, परवीन ।
या-देवद्विजनपादीनामाशीर्वचनपूर्विका, नंदति देवता नादः [नद्+घञ ] 1. ऊँची दहाड़, चिल्लाहट, चीख, यस्यां तस्मान्नान्दीति कीर्तिता। सम-करः दे०
गरजना, दहाड़ना---सिंहनादः, घन' आदि 2. ध्वनि 'नांदिन'-निनावः हर्षनार-महावी० २।४,–पट:
-मा० ५।२० 3. (योगशास्त्र में) अनुनासिक ध्वनि कुएँ का ढक्कन-मुख (वि.) (दिवंगत पूर्वज या जिसे हम चन्द्रबिन्दु (') के द्वारा प्रकट करते हैं। पितर) जिनके लिए नांदीमुख श्राद्ध किया जाय नादिन् (वि.) [नद् +णिनि ] ध्वनि या शब्द करने : (-खम्) धातुम् पितरों की पुण्यस्मति में किया
वाला, अनुनादो –अंबुदवृंदनादी रथः-रघु० ३।५९, जाने वाला श्राद्ध, विवाह आदि शुभ उत्सवों से पूर्व १९१५ 2. रांभने वाला, गरजने वाला-खर', सिंह की जाने वाली आरंभिक स्तुति (खः) कये का ढक्कन, आदि।
---वादिन् (पुं०) 1. नाटक में मंगलाचरण के रूप नादेय (वि.) (स्त्री-यो) [ नदी-+ठक् ] नदी में | में नान्दी पाठ करने वाला 2. ढोल बजाने वाला, उत्पन्न, जलीय, समुद्रीय,--यम् सेंधानमक ।
--श्रावम् दे० ऊपर 'नांदीमुखम् ।
For Private and Personal Use Only