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( ५४७ )
(वि०) बिना अधिकार का,-प्रयोजन (निष्प्रयोजन)। जहाँ मार्ग उपलब्ध न हो, जहाँ मार्ग अवरुद्ध हो (वि.) 1. निरुद्देश्य, जो किसी प्रयोजन से प्रभावित (–तः) आधीरात का अँधेरा, गप अंधरा, घना न हो 2. निष्कारण, निराधार 3. व्यर्थ 4. अनपयोगी, अंधकार,-संबाध (निःसंबाध) (वि.) जो संकीर्ण अनावश्यक (अव्य-नम्) बिना कारण या हेतु के, न हो, प्रशस्त, विस्तृत,-संसार (निःसंसार) (वि.) बिना किसी मतलब के-मद्रा० ३,-प्राण (निष्प्राण) 1. नीरस, सारहीन, बिना गूदे का 2. निकम्मा, (वि०) प्राणहीन, निर्जीव, मृतक,--फल (निष्फल) असार,-सोम (निःसीम), सीमन् (निःसीमन्) (वि.) 1. जिसका कोई फल न निकले, फलहीन, (वि०) अपरिमेय, सीमारहित-अहह महतां निः (आलं० भी) असफल--निष्फलारंभयत्ना:--मेघ० सीमानश्चरित्रविभूतयः-भर्तृ० २।३५, निःसीमशर्म५४ 2. अनुपयोगी, बिना लाभ का, निरर्थक-कू० पदम् -३।९७,-स्नेह (निःस्नेह) (वि.) जो ४।१३ 3. बाझ, ऊसर 4. (शब्द) निरर्थक 5. बिना चिकना न हो, बिना चिकनाई का, शुष्क 2. स्नेहबीज का, निर्वीर्य (--लाली) स्त्री जिसके सन्तान रहित, भावनाशून्य, कृपाहीन, उदासीन 3. जिससे होना बन्द हो गया हो,---फेन (निष्फेन) (वि०) कोई प्यार न करता हो, जिसकी कोई देखभाल न बिना झागों का,--शब्द (निःशब्द) (वि.) जो करता हो-पंच० १२८२, --स्पंद (निःस्पंद या शब्दों में व्यक्त न किया गया हो, शब्दरहित-11. निस्स्पंद) (वि०) गतिहीन, स्थिर-रधु० ६।४०, शब्दं रोदितुमारेभे--का. १४३,--शलाक (निः -~-स्पृह (निःस्पृह) (वि.) 1. कामनाशून्य 2. लाशलाक) (वि.) अकेला, एकांतसेवी, निवृत्त--(कम्) परवाह, उदासीन-ननु वक्तविशेषनिःस्पृहा--कि० निर्जन स्थान, एकान्तस्थान-अरण्ये निःशलाके वा २।५, रघु० ८.१० 3. सन्तुष्ट, डाह न करने वाला मंत्रयेदविभावितः--मनु० ७।१४७, -शेष (निः शेष)। 4. सांसारिक बन्धनों से मुक्त-स्व (निःस्व) (वि०) (वि०) बिना कुछ शेष रहे, पूर्ण, समस्त, पूरा,
निर्धन, दरिद्र-निःस्वो वष्टि शतम् --शा० २१६, निः शेषविश्राणितकोशजातम् - रघु० ५।१,-शोध्य
----स्वादु (निःस्वादु) (वि०) स्वादरहित, बिना स्वाद (नि.शोध्य) (वि०) धोया हुआ, स्वच्छ,---संशय
का, बदमजा । (निःसंशय) (वि०) 1. असन्दिग्ध, निश्चित 2. सन्देह
निसंपात दे० निःसंपात । रहित, आशंकारहित, संदेहशून्य-रघु० १५४७९ निसर्गः [ नि+सज्+घा ] 1. प्रदान करना, अनुदान (अव्य... यम) निस्सन्देह, असन्दिग्ध रूप से, निश्चित देना, उपहार देना, पुरस्कार देना--मनु०८।१४३ 2. रूप से, अवश्य, -संग (निःसग) (वि०) 1. अना- अनुदान 3. मलोत्सर्ग, शून्यीकरण, मलत्याग 4. त्याग, सक्त, भक्तिरहित, अनपेक्ष, उदासीन-यन्निःसंगस्त्वं तिलांजलि देना 5. सष्टि-निसर्गदुर्बोधम् ---कि० ॥ फलस्यानतेभ्यः-कि० १८०२४ 2. सांसारिक आस- ६, १८।३१, रघु० ३।३५, कु० ४।१६,-निसर्गतः, क्तियों से मुक्त 3. निलिप्त, वियुक्त, अनुरागशून्य निसर्गण प्रकृति से, स्वभावत. 7. अदला-बदली, विनि4. अबाध (अम-गम्) निस्स्वार्थ भाव से-संश मय । सम०-ज,--सिद्ध (वि०) सहज, अन्तर्जात, (निःसंज्ञ) (वि०) बेहोश,-सत्त्व (निःसत्त्व) (वि०) स्वाभाविक,-भिन्न (वि०) स्वभावतः और प्रकार 1. सत्त्वरहित, दुर्वल, पुंस्त्वहीन 2. नीच, नगण्य, का-निसर्ग भिन्नास्पदमेकसंस्थम् --रघु० ६२९, अधम 3. सत्ताहीन, असार 4. जीवित प्राणियों से -विनीत (वि०) 1. स्वभावतः विवेको 2. स्वभावंचित (.-त्वम्) 1. शक्ति या ऊर्जा का अभाव | वतः विनम्र । 2. सत्ताहीनता 3. नगण्यता,-संतति (निस्संतति), | निसारः [नि+स+घञ ] समुच्चय, समूह । संतान (निस्सन्तान) (वि०) जिसके कोई सन्तान | निसूदन (वि०) [ नि+सूद् + ल्युट् ] मारने वाला, नष्ट न हो, सन्ततिरहित,-संदिग्ध (निस्सन्दिग्ध),-संदेह
करने वाला,-नम् बध, हत्या । (निस्सन्देह) (वि.) दे० नि:संशय,- सन्धि (निस्संधि, । (भ० क० कृ०) [नि+सज+न्त ] 1, सौंपा निःसन्धि) (वि.) जिसमें दिखाई देने वाली कोई गया, दिया गया, अपित 2. छोड़ा गया, त्यक्त 3. गांठ न हो, संहत, सधन, सटा हुआ,-सपत्न (निः विजित 4. अनुज्ञात, अनुमत 5. केन्द्रवर्ती, मध्यस्थ । सपत्न) (वि०) 1. जिसका कोई शत्रु न हो-धन- सम० ---अर्थ (वि.) जिसे किसी कार्य का प्रबन्ध रुचिरकलापो निःसपत्नोऽद्य जात:--विक्रम० ४।१० सौंपा गया हो 2. दूत, अभिकर्ता-दे० सा० ८०८६, 2. जिसका कोई और दावेदार न हो, जो सर्वथा एक ८७, दूती वह स्त्री जो नायक और नायिका के प्रेम ही का हो 3. अजातशत्रु,-- समम् (निस्समम्) को जान कर स्वयं उनको मिलाती है तन्निपूर्ण निस(अव्य.) 1. बिना ऋतु के, अञ्चित समय पर स्टार्थदूतोकल्पः सूचयितव्यः ---मा० १ (यहां जगद्धर 2. दुष्टता के साथ, --संपात (निःसंपात) (वि०) । 'निसृष्टार्थदूती' शब्द की व्याख्या इस प्रकार करता है
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