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2. ( आ०) लुप्त होना, ओझल होना - अभिवृष्यमहत्सस्यं कृष्ण मेघस्तिरोदधे रघु० १०१४८, ११९१, तिरस् के नी० भी देखिये नि०, 1. रखना, धरना, जड़ देना- शिरसि निदधानोऽञ्जलिपुटम् भर्तृ ० ३।१२१, रघु० ३।५०, ६२, १२।५२ शि० १।१३ 2. भरोसा करना, सौंपना, देख-रेख में रखना - निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे - रघु० १२/४४, १४/३६ ३. देना, समर्पित करना, जमा कर देना-दिनान्ते निहितं तेजः सवित्रेव हुताशनः– रघु० ४।१ 4. दबा देना, शान्त करना, रोक देना-सलिलं निहितं रजः क्षिती घट० १5. दफन करना, (भूमि के अन्दर ) गाड़ देना, छिपाना - मनु० ५/६८, परि-, 1. ( वस्त्रादिक) पहनना, धारण करना - त्वचं स मेध्यां परिवाय रौवीं रघु० ३।३१ 2. अहाता बना लेना, घेरा डाल लेना 3, किसी की ओर संकेत करना, पुरस् -- सिर पर रखना या धारण करना - तुरासाहं पुरोधाय धाम स्वायंभुवं ययुः कु० २ १, रघु० १२।४३ 2. कुलपुरोहित बनाना, प्रणि, रखना, नोचे धरना या लिटा देना, साष्टांग प्रणत होना- प्रणिहितशिरसं वा कान्तमार्द्रापराधम् - मालवि० ३११२, तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायम् - भंग० ११।४४ 2. जड़ना, अन्दर रखना, अन्दर लिटाना, पेटी में बन्द करना - यदि मणिस्त्रपुणि प्रणिधीयते - पंच० १७५, अने० पा० 3. प्रयोग करना, स्थिर करना, किसी की ओर संकेत करना---भर्तृ प्रणिहितेक्षणाम् - रघु० १५/८४, भट्टि० ६।१४२ 4. फैलाना, विस्तार करना - मामाकाशप्रणिहितभुजं निर्दयाश्लेषहेतोः मेघ० १०६, नोवीं प्रति प्रणिहिते तु करे प्रियेण सख्यः शपामि यदि fafaaपि स्मरामि काव्य० ४ 5. (चर के रूप में ) बाहर भेजना, प्रतिवि, 1. प्रतीकार करना, संशोधन करना, मरम्मत करना, बदला लेना, उपाय करना, विरुद्ध पग उठाना - अर्थवाद एष:, दोषं तु मे कंचित्कथय येन स प्रतिविधीयेत उत्तर० १, क्षिप्रमेव कस्मान्नप्रतिविहितमार्येण मुद्रा० ३ 2. व्यवस्था करना, क्रम से रखना, सजाना 3. प्रेषित करना, भेजना, प्रदि, 1. बाँटना 2. करना, बनाना, वि, 1. करना, बनाना, घटित करना, प्रभावित करना, सम्पन्न करना, अनुष्ठान करना, पैदा करना, उत्पादन करना, उत्पन्न करना यथाक्रमं पुंसवनादिका: क्रिया घृतेश्च धीरः सदृशीयंधरा सः - रघु० ३।१० - तन्नोदेवा विषेयासुः -- भट्टि० १९/२, विधेयासुर्देवाः परमरमणीयां परिणतिम् - मा० ६ ७, प्रायः शुभं च विदधात्यशुभं च जन्तोः सर्वङ्कषा भगवती भवितव्यतैव १२३, ये द्वे कालं विधराः श० ११, पैदा करना, उत्पादन करना, समय का विनियमित करना
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—तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् भग० ७/२१, रघु० २।३८, ३६६, ( यह अर्थ 'विधा' के साथ जुड़ने वाले शब्द के अनुसार और भी अधिक अदल-बदल किए जा सकते हैं, तु० 'कृ' ) 2. निर्धारित करना, विधान बनाना, निर्दिष्ट करना, नियत करना, स्थिर करना, आदेश देना, आज्ञा देना- प्राङ्नाभिवर्धनात्पुंसो जातकर्म विधीयते मनु० २२९, ३।१९, याज्ञ० १।७२, शूद्रस्य तु सवर्णैव नान्या भार्या विधीयते ९।१५७, ३०११८ 3. रूप बनाना, शक्ल देना, सर्जन करना, निर्माण करना---तं वेधा विदधे नूनं महाभूतसमाधिना -- रघु० ११२९ अङ्गानि चम्पकदलैः स विवाय नूनं कान्ते कथं घटितवानुपलेन चेतः - श्रृंगार० ३ 4 नियुक्त करना, प्रतिनियुक्त करना ( मन्त्री आदि को ) 5. पहनना, धारण करना - पंच० १।२९ 6. स्थिर करना, ( मन आदि को ) लगाना -- भग० २४४, भर्तृ० ३।५४ 7 क्रमबद्ध करना, व्यवस्थित करना 8 तैयार करना, तत्पर करना, व्यव 1. बीच में रखना, बीच में डालना, हस्तक्षेप करना प्रेक्ष्य स्थितां सहचरी व्यवधाय देहम् रघु० ९।५७ 2 छिपाना, ढकना, पर्दा डालना - शापव्यव हितस्मृतः - श० ५. श्रद्, भरोसा करना, विश्वास रखना ( कर्म० के साथ ) - कः श्रद्धास्यति भूतार्थम् मृच्छ० ३।२४, श्रधे त्रिदशगोपमात्रके दाहशक्तिमत कृष्णवर्त्मनि - रघु० ११०४२, सम्-, 1. मिलाना, एकत्र लाना, संयुक्त करना, मिला देना, यानि उदकेन संधीयते तानि भक्षणीयानि कुल्लूक ० 2. बर्ताव करना, मित्रता करना, संधि करना- शत्रुणा न हि संदध्यात्सुलिष्टेनापि संधिना हि० ११८८, चाण० १९, काम० ९ ४१ 3. स्थिर करना, संकेत करना संदधे दृशमुदग्रतारकाम् – रघु० ११/६९ 4. ( किसी अस्त्र या तीर आदि को ) धनुष पर ठीकठीक बैठाना, या ठीक से जमाना --- धनुष्यमोघं समधत्त बाणम् - कु० ३।६६, रघु० ३५३, १२/९७5. उत्पादन करना, पैदा करना पर्याप्तं मयि रमणीयचमरत्वं संधत्ते गगनतलप्रयाणवेग: मा० ५३, संघते भृशमरतिं हि सद्वियोग: कि० ५।५१ 6 मुकाबला करना, मुकाबले में सामने आना, शतमेकोऽहि संधत्त प्राकारस्थो धनुर्धरः — पंच० १।२२९ 7 सुधारना, मरम्मत करना, स्वस्थ करना 8 कष्ट देना 9. ग्रहण करना, सहारा देना, वागडोर संभालना 10. अनुदान देना, संनि, 1. रखना, एकत्र रखना मनु०२।१८६ 2. निकट रखना - श० ३।१२, 3. स्थिर करना, निर्दिष्ट करना - रघु० १३ । १४४ 4. निकट जाना पहुँचना --- प्रेर० निकट लाना, एकत्र संग्रह करना, समा-- 1. एकत्र रखना या धरना, मिलाना, संयुक्त
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