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करना 2. रखना, घरना, स्थापित करना, लागू करना - पदं मूर्ध्नि समाधत्तं केसरी मत्तदन्तिनः पंच० १। ३२७ ३. जमाना, अभिषेक करना, राजगद्दी पर बिठाना रघु० १७३८ 4 समाश्वस्त होना, ( मन को. ) शान्त करना - मनः समाधाय निवृत्तशोकः --- रामा०, न शशाक समाधातुं मनो मदनवेपितम् - भाग० 5. सकेन्द्रित करना, (आँख या मन आदि को) एकाग्र करना, भग० १२०९, भर्तृ० ३१४८ 6. संतुष्ट करना, ( शंका का ) समाधान करना, आक्षेप का उत्तर देना इति समाधत्ते ( टीकाओं में) 7. मरम्मत करना, सुधारना, ठीक करना, हटा देना -न ते शक्याः समाधातुम् हि० ३।३७, उत्पन्नामापदं यस्तु समाधत्त स बुद्धिमान् ४1७ 8 विचार करना भट्टि० १२/६ 9 सौंपना, अर्पण करना, हस्तान्तरित करना 10. पैदा करना, कार्यान्वित करना, सम्पन्न करना ( निम्नांकित श्लोक में सोपसर्ग धा धातु के प्रयोगों का चित्रण किया गया है अधित कापि मुखे सलिलं सखी व्यधित कापि सरोजदलैः स्तनौ, व्यापि हृदि व्यजनानिलं व्यधितं कापि सुतनो स्तनों ने० ४।१११, इससे भी अच्छा निम्नांकित जगन्नाथ का श्लोक - निधानं धर्माण किमपि च विधानं नवदां प्रधानं तीर्थानाममलपरिवानं त्रिजगतः, समाधानं बुद्धेरथ खलु तिरोधानवियां श्रियामाधानं नः परिहरतु तापं तव वपुः - गंगा० १८ ) । धाकः [ धा+क उणा० तस्य नेत्वम् ] 1. बैल 2. आधार, आशय 3. आहार, भात 4. स्थूणा, खंभा, स्तंभ I
घाटी [ घट् + घञ + डीप् ] धावा, आक्रमण | धाणकः [श्रा -+- आणक] एक सोने का सिक्का ( दीनार का अंश)
धातुः [वा + तुन्] संघटक या मूल भाग, अवयव 2. मूल तत्व, मुख्य या तत्व मूलक सामग्री अर्थात् पृथिवी, आप, तेजस्, वायु और आकाश, 3. रस, मुख्य द्रव्य या रस, शरीर का अनिवार्य उपादान ( यह गिनती में सात माने जाते हैं - रसासृङ्गमांसमेदोऽस्थि मज्जाशुक्राणि in: कई बार केश, त्वच् और स्नायु को मिला कर दस मान लिये जाते हैं ) 4. शरीर के स्थितिविधायक तत्त्व ( अर्थात् वात, पित्त, कफत्रिदोष) 5. खनिज पदार्थ, धातु, कच्ची धातु न्यस्ताक्षरा वातुरसेन यत्र, कु० ११७, त्वामालिरूप प्रणयकुपितां धातुरागः शिलायां मेघ०१०५, रघु० ४७१, कु० ६/५१ 6 क्रिया का मूल भूवादयो धातत्र: पा० १।३।१, पश्चादव्ययनार्थस्य धातोरधिरिवाभवत् २० १५९ 7 आत्मा 8 परमात्मा 9. ज्ञानेन्द्रिय 10 पांच महाभूतों का गुण
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सम०
अर्थात् रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द 11. हड्डी । उपलः खड़िया, चाकू- काशीश, म्- कासीसम्कसीस, कुशल - (वि०) धातु के कायों में दक्ष-क्रिया धातुकामिकी, धातुकर्म, खानित्री, धातृविज्ञान - क्षयः शरीर के तत्त्वों का नाश, क्षयरोग, जम शिलाजीत, शैलज तेल, - ब्रावकः सुहागा, पः खाद्य, पौष्टिक रस, शरीर के सात मूल उपादानों में मुख्य उपादान -पाठः पाणिनि की व्याकरण पद्धति के अनुसार बनी धातुओं की सूकी ( पाणिनि के सूत्रों के परिशिष्ट के रूप में धातु पाठ, पाणिनि निर्मित एक आवश्यक सूची है), - भृत् (पुं० ) पहाड़, मलम् 1. शरीरस्थ धातुओं के मल के अपवित्र रूपांतर 2. सीसा,- माक्षिकम् 1. एक उपधातु सोनामक्खी 2. खनिज पदार्थ, -मारिन् (पुं०) गंधक, राजकः वीर्य, - वल्लभम् सुहागा, बाद: खनिज विज्ञान, धातुविज्ञान, वादिन् (पुं०) खनिज विज्ञाता - वैरिन् (पुं०) गंधक - शेखरम् कासीस, गंधक का तेजाब, शोधनम्, संभवम् सीसा, साम्यम् अच्छा स्वास्थ्य ( त्रिदोष समता ) ! धातुमत् (वि० ) [ धातु + मतुप् ] धातुओं से भरा हुआ, धातु
संपन्न । सम० - ता घातुओं का बाहुल्य, कु० ११४ । धातृ (पुं० ) [धा + तृच् ] 1. निर्माता, रचयिता, उत्पादक,
प्रणेता 2. धारण करने वाला, संधारक, सहारा देने वाला 3. सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का विशेषण -- मन्ये दुर्जनचित्तवृत्तिहरणे धातापि भग्नोद्यम:- हि० २।१६५, रघु० १३६, शि० १।१३, कु० ७४४ कि० १२।३३ 4. विष्णु का विशेषण 5 आत्मा 6. ब्रह्मा की प्रथम सृष्टि होने के कारण सप्तर्षियों के नाम, तु०कु० ६९ 7 विवाहित स्त्री का प्रेमी व्यभिचारी !
धात्रम् [ धा + ष्ट्र ] बर्तन, पात्र, ।
धात्री | धात्र + ङीप् ] 1. दाई, वाय, उपमाता उवाच
धात्र्या प्रथमोदितं वच: रघु० ३१२५ कु० ७१२५ 2. माता-याज्ञ० ३।८२, 3. पृथ्वी 4. आँवले का वृक्ष । सम० पुत्रः धाय का पुत्र, धर्म भाई 2. अभिनेता, - फलम् आँवला । धात्रेयिका, धात्रेयी [ धात्रेयो + कन् + टाप्, ह्रस्व:, धात्री ढक् ङीप् ] धात्रीपुत्री -- धात्रेयिकायाश्चतुरं वचश्च - मा० १३२, कथितमेव नां मालतीधात्रेय्या लबङ्गिकया -- मा० १2. धाय, दूध पिलाने वाली धाय । धानम्, -नी [ घा ल्युट् धान + ङीप् ] आधार, पात्र, गद्दी, स्थान, जैसा कि मसीधानी, राजधानी, धानी ।
यम
धानाः (स्त्री० ब० व० ) [ धान+टाप् ] भुने हुए जी या चावल, खीर 2. सत्तू 3. अनाज, अन्न 4. कली, अंकुर ।
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