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७३ 3. दिव्य अन्तर्ज्ञान या अन्तविवेक 4. किसी गया दे० गीत०) 8. समय, काल, युग 9. ब्रह्मा का देवता की व्यक्तिगत उपाधियों का मानसिक चिन्तन- विशेषण, 10. विष्णु और 11. शिव की उपाधि इति ध्यानम् । सम-गम्य (वि.) केवल मनन 12. उत्तानपाद के पुत्र और मन के पौत्र का नाम [ध्रुव द्वारा प्राप्य, - तत्पर,--निष्ठ पर (वि.) विचारों उत्तर दिशा में स्थित एक तारा है, परन्तु पुराणों में में खोया हुआ, मनन में लीन, चिन्तनशील,-स्थ उत्तानपाद के पुत्र के रूप में इसका वर्णन उपलब्ध है। (वि.) मनन में लीन, विचारों में खोया हआ।
सामान्य मर्त्य का ध्रुव तारे के उच्च पद को प्राप्त ध्यानिक (वि.) [ध्यान+ठका सूक्ष्म मनन और पवित्र करने का वर्णन इस प्रकार है--उत्तानपाद के सुरुचि चितन के द्वारा अनुसंहित या प्राप्त ।
और सुनीति नाम की दो पत्नियां थीं, सुरुचि के पुत्र ध्याम (वि०) [ध्य+मक ] अस्वच्छ, मैला, काला, का नाम उत्तम था, तथा ध्रुव का जन्म सुनीति से __ मलिन -भट्टि० ८७१,- मम् एक प्रकार का घास । हुआ था। एक दिन ध्रुव ने अपने बड़े भाई उत्तम ध्यामन् (पुं०) [ध्ये+मनिन् ! माप, प्रकाश (नपुं०)
की भांति पिता की गोद में बैठना चाहा, परन्तु उसे मनन ('ध्यामन्' कम शुद्ध)।
राजा और सुरुचि दोनों ने दुत्कार दिया । 1. ध्रुव ध्य (भ्वा० पर० ध्यायति, ध्यात, इच्छा० दिध्यासति,
सुबकता हुआ अपनी माता सुनीति के पास गया, कर्मवा० ध्यायते) सोचना, मनन करना, विचार
उसने बच्चे को सांत्वना दी और समझाया, कि संपति करना, चिंतन करना, विचार विमर्श करना, कल्पना
और सम्मान कठोर परिश्रम के बिना नहीं मिलते। करना, याद करना- ध्यायतो विषयान पुंसः संगस्तेषुप
इन बचनों को सुन कर ध्रुव ने अपने पिता के घर जायते-- भग० २।६३, न ध्यातं पदमीश्वरस्य--भर्त.
को छोड़ कर जंगल की राह ली। यद्यपि वह अभी ३।११, पितृन् ध्यायन् - मनु० ३१२२४, ध्यायन्ति
बच्चाही था, तो भी उसने घोर तपस्या की जिसके फलचान्यं धिया-पंच० १११३६, मेघ० ३, मनु० ५।४७,
स्वरूप विष्णु ने उसको ध्रुव तारे का पद प्रदान ९।२१, अनु - 1. सोचना, ध्यान लगाना 2. याद
किया),--वम् 1. आकाश, अन्तरिक्ष 2. स्वर्ग,-वा करना 3. मंगलकामना करना, आशीर्वाद देना,
1. (लकड़ी का बना) यज्ञ का श्रुवा 2. साध्वी स्त्री, अनुग्रह करना, रघु० १४।६०,१७।३६, अप-, बुरा
----बम् (अव्य०) अवश्य, निश्चित रूप से, यकीनन सोचना, मन से शाप देना, अभि---, 1. कामना
- रघु०८।४९, श० १११८ । सम०-अक्षरः विष्णु करना, इच्छा करना, लालच करना---याज्ञ० ३।१३४
की उपाधि,-आवर्तः सिर पर रक्खे मुकुट का वह 2. सोचना अव--, अवहेलना करना, निस् - सोचना,
स्थान जहां से बाल चमकते हैं, तारकम्-तारा मनन करना, वि--, 1. सोचना, मनन करना, याद
ध्रुव तारा। करना----भट्टि० १४०६५ 2. गहन मनन करना,
ध्रुवक: [ ध्रुव+कन् ] 1. गीत का आरम्भिक पद (जो टकटकी लगाकर देखना--अंगलीयकं निध्यायन्ती
समवेत गान की भांति दोहराया जाय, टेक 2. तना, मालवि० १, शि० ८।६९,१२।४, कि० १०॥४६।।
भूत 3. स्थूणा। ध्राडिः [ धाड्+इन् ] फूल चुनना।
ध्रौव्यम् [ ध्रुव-प्या ] 1. स्थिरता, दृढ़ता, स्थावरता
2. अवधि 3. निश्चय ।। ध्रुव (वि.) [ध्रुक] (क) स्थिर, दृढ़, अचल,
ध्वस् (भ्वा० आ० ध्वंसते, ध्वस्त) 1. नीचे गिरना, गिर स्थावर, स्थायी, अटल, अपरिवर्तनीय-इति ध्रुवेच्छा
कर टुकड़े २ होना, चूर २ हो जाना-भट्टि० १५। मनुशासती सुताम्- कु० ५।५, (ख) शाश्वत, सदैव
९३, १४१५५ 2. गिरना, डूबना, हताश होना --मा० रहने वाला, नित्य --- ध्रुवेण भर्ना-कु० ७८५, मनु०
९।४४ 3. नष्ट होना, बर्बाद होना 4. ग्रस्त होना ७।२०८ 2. स्थिर (ज्योतिष में) 3. निश्चित,
-मुद्रा० ३१८, प्रेर०-नष्ट करना, प्र---, नष्ट होना, अचूक, अनिवार्य-जातस्य हि ध्रुधो मृत्यधुवं जन्म
मिट जाना, वि-, 1. गिरकर टुकड़ २ होना 2. तितरमृतस्य च - भग० २।२७ यो ध्रुवाणि परित्यज्य
वितर हो जाना, बिखर जाना 3. नष्ट होना, मिट अधूवाणि निषेवते-चाण० ६३ 4. मेधावी, धारण
जाना बर्बाद होना। शील-जैसा कि 'ध्रुवा स्मृति' में 5. मजबूत, स्थिर, (दिन की भांति) निश्चित-व: 1. ध्रव तारा, रथः । ध्वंसः, ध्वंसनम् [ध्वंस्+घा , ल्युट वा ] 1. नीचे गिर १७।३५, १८।३४, कु० ७।८५ 2. किसी बड़े वृत्त के
जाना, डूबना, गिर कर टुकड़े २ हो जाना 2. हानि, दोनों सिरे 3. नाक्षत्र राशिचक्र के आरंभ से ग्रह की
नाश, बर्बादी,-सी सूर्य की किरण में धूलिकण । दुरी, ध्रवीय देशांतर रेखा 4. बटवक्ष 5. स्थाण,
ध्वंसिः [ध्वंस्। इन् मुहूर्त का शतांग। खूटा 6. (कटे हुए वक्ष का) तना 7. गीत का आरं- ध्वजः [ ध्वज |-अच् ] 1. ध्वज, झण्डा, पताका, वैजयन्ती, भिक पाद, टेक (समवेत गान की भांति दोहराया | रघु० ७।४०, १७१३२, पंच० ११२६ 2. पूज्य या
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